प्रद्युम्न मर्डर में फिर नया मोड़, नए कानून के पेंच में फंस सकता है आरोपी छात्र

नई दिल्ली । प्रद्युम्न हत्याकांड में आरोपी 11वीं का छात्र 16 साल की उम्र पार कर चुका है ऐसे में वह नए जुविनाइल जस्टिस कानून के पेंच फंस सकता है। जो गंभीर अपराध में आरोपी 16 से 18 साल के किशोर पर सामान्य अदालत में मुकदमा चलाने का रास्ता खोलता है।

प्रद्युम्न के मामले में कानूनविदों का कहना है कि एक असहाय बच्चे की निर्मम हत्या हुई है जो गंभीर अपराध है इसमें आरोपी पर सामान्य अदालत में हत्या का मुकदमा चलना चाहिए।

2016 में संशोधित किए गए किशोर न्याय कानून में गंभीर अपराध में संलिप्त किशोर पर सामान्य अदालत में बालिग की तरह मुकदमा चलाने का रास्ता खोलते समय ये तय करने का अधिकार जेजे बोर्ड को ही दिया गया है।

बोर्ड आरोपी किशोर की मानसिक क्षमता यानी अपराध की प्रकृति और परिणामों के प्रति उसकी समझ, अपराध की परिस्थितियां और मंशा आदि जांचने के बाद ये फैसला करेगा कि मुकदमा बोर्ड में चलना चाहिए या सामान्य अदालत में।

इलाहाबाद हाईकोर्ट के सेवानिवृत न्यायाधीश एसआर सिंह कहते हैं कि जैसा कि खबरों में आ रहा है कि आरोपी छात्र चाकू लेकर स्कूल गया था और उसने एक छोटे असहाय बच्चे की हत्या की। जिस बच्चे की हत्या की गई उससे आरोपी की कोई दुश्मनी नहीं थी।

ये सारी चीजें और परिस्थितियां अपराध को गंभीर अपराध की श्रेणीं में लाती हैं। उनकी बात से सहमति जताते हुए सुप्रीम कोर्ट के वकील डीके गर्ग कहते हैं कि जो मामला निकल सामने आया है उससे ये सुनियोजित हत्या लगती है।

अचानक अपराध नहीं घटित हुआ है। आरोपी ने अपराध के लिए वह वक्त चुना जिस समय बाथरूम खाली हो वहां कोई न हो। उसने वहां ठहर कर बच्चे के आने का इंतजार किया।

इसमें अपराध के साथ उसकी साजिश और इरादा शामिल है जो जघन्य अपराध की परिभाषा में पूर्ण रूप से फिट बैठता है। ये केस सामान्य अदालत में ही मुकदमा चलने का है।

हालांकि वकील डीके गर्ग मानते हैं कि आरोपी छात्र को जेल में दुर्दांत अपराधियों के साथ नहीं रखा जाना चाहिए। उत्तर प्रदेश सरकार की एडीशनल एडवोकेट जनरल ऐश्वर्या भाटी भी मामले में नए कानून के प्रावधानों को लागू किए जाने की पैरवी करते हुए कहती हैं कि जिस उद्देश्य से कानून में संशोधन किया गया था उसमें यह केस पूरी तरह फिट बैठता है।

उनका कहना है कि सिर्फ खुंखार अपराधी ही जघन्य अपराध नहीं करता। इस मामले में किस बर्बरता से अपराध को अंजाम दिया गया है। जेजे बोर्ड में मामलें की गंभीरता को जांचते समय यह देखा जाएगा कि हत्या के पीछे आरोपी किशोर की मंशा क्या थी।

यहां एक ऐसे असहाय मासूम की हत्या हुई है जो अपना बचाव नहीं कर सकता था। ये जघन्य अपराध है। अगर यहां नया कानून लागू नहीं हुआ तो कानून में संशोधन करने का उद्देश्य ही निष्फल हो जाएगा।

मालूम हो कि दिल्ली सामूहिक दुष्कर्म कांड में जब अपराध में महती भूमिका निभाने वाला नाबालिग 18 वर्ष से कम होने के कारण गंभीर सजा से बच गया था।

तब किशोर कानून में संशोधन कर बच्चे की उम्र घटा कर 18 से 16 वर्ष करने की मांग उठी थी। सरकार ने काफी सोच विचार के बाद संशोधन किया और इस आयु वर्ग के गंभीर अपराध में आरोपी किशोर पर सामान्य अदालत में मुकदमा चलेगा या जेजे बोर्ड में यह तय करने का हक बोर्ड को दे दिया है।

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