नक्सली निराश हो रहे

यह खबर सुनने में अच्छी लगी कि नक्सलवाद से प्रभावित छत्तीसगढ़ में अब सरकार की विकासवादी नीतियों के चलते नक्सली निराश हो रहे हैं लेकिन झारखण्ड में नक्सलियों का जमावड़ा चिंता पैदा करता है। नक्सलवादी और अलगाववादी हमारे देश के विकास में बाधा ही नहीं डाल रहे हैं बल्कि देश की एकता को भी कमजोर कर रहे हैं। दूसरे देशों से प्रायोजित आतंकवाद का मुकाबला तो हम हर तरह से कर सकते हैं। उनके खिलाफ कठोर से कठोर कार्रवाई करते हैं लेकिन नक्सलवादी हमारे अपने देश के नागरिक हैं जो निजी स्वार्थ में सीधे-सादे लोगों को बहकाकर उनके हाथ में बंदूक पकड़ा देते हैं। नक्सलवादी संगठन अब काफी मजबूत हो चुका है और पैसे की कमी तो उसके पास है ही नहीं, साथ ही उनके पास अत्याधुनिक हथियार भी पहुंच गये हैं। गरीब आदिवासियों को वे भड़काते हैं लेकिन छत्तीसगढ़ में आदिवासी क्षेत्रों में विशेष योजनाएं चलाई गयीं, जिससे आदिवासियों का नक्सलियों से मोहभंग हो गया। झारखण्ड में मुख्यमंत्री रघुबर दास ने अराजक गतिविधियों में शामिल पापुलर फ्रंट आफ इंडिया पर इसी साल की शुरुआत में प्रतिबंध लगाया था लेकिन इस संगठन की गतिविधियां बंद नहीं हुईं हैं। इसी प्रकार की रिपोर्ट खुफिया एजेंसी ने केन्द्र सरकार को दी है।
झारखण्ड में मुख्यमंत्री रघुबर दास ने पापुलर फ्रंट आफ इंडिया पर फरवरी 2018 में प्रतिबंध लगा दिया था लेकिन इसके बाद आदिवासियों के हित में जिस तरह के कार्य करने थे, वे नहीं किये गये। राज्य में देवता की तरह पूजे जाने वाले बिरसा मुंडा के वंशज ही अपनी नाराजगी जता रहे हैं। अंग्रेजों के खिलाफ जोरदार क्रांति करने वाले आदिवासी योद्धा बिरसा मुंडा के वंशज और उनके गांव के लोग आठ महीने से पक्के मकान का इंतजार कर रहे हैं। इन लोगों ने सरकार के उस प्रस्ताव को ठुकरा दिया जिसके तहत इन्हें मकान देने की बात कही गयी थी। सरकार ने यह प्रस्ताव 17 सितम्बर को पिछले साल दिया था और बिरसा मुंडा के गांव में एक समारोह भी हुआ, जिसमें भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह भी गये थे लेकिन नौकरशाही ने उसमें इस तरह अड़ंगे लगाये कि अब गांव वालां ने ही इस योजना का बहिष्कार कर दिया है। झारखण्ड मुख्य रूप से आदिवासियों का ही राज्य है और नक्सली इन आदिवासियों को यही सपना दिखाते हैं कि सरकार कोई भला नहीं कर सकती। पापुलर फ्रंट आफ इंडिया ने अपना नाम बदलकर संगठन को फिर से मजबूत कर लिया है।
दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ में अब आतंकवादी पस्त हो गये हैं। केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह गत दिनों रायपुर में केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) की बस्तारिया बटालियन की पासिंग आउट परेड का निरीक्षण करने पहुंचे थे। राज्य का बस्तर जिला नक्सलवाद से सबसे ज्यादा प्रभावित माना जाता था लेकिन यहां के आदिवासी नक्सलवाद के खिलाफ खड़े हो गये। इस प्रकार बस्तारिया के नाम से एक बटालियन बनायी। इनको शस्त्र चलाने की ट्रेनिंग भी दी गयी है। राज्य के नक्सल प्रभावित जिलों से आये जवानों को शामिल करके बनी इस बटालियन में दक्षिणी छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र से ही ज्यादा जवान शामिल हैं। केन्द्रीय गृहमंत्री ने इन्हें सीआरपीएफ में शामिल किया है। नक्सली गतिविधियों पर लगाम लगाने में सीआरपीएफ और राज्य पुलिस की सराहना करते हुए श्री राजनाथ सिंह ने कहा था कि इन्हेंने एक बड़ी सफलता हासिल की है। बस्तर क्षेत्र की सीमा पड़ोसी राज्यों- आंध्र प्रदेश, ओडिशा और तेलंगाना से जुड़ी है, इसलिए यहां पर नक्सलियों को नियंत्रित कर पाना मुश्किल काम होता है। बस्तारिया बटालियन ने इस मुश्किल काम को भी कर दिखाया।
केन्द्रीय गृहमंत्री ने कहा था कि यहां पर अब माओवादियों के हमले में हताहत होने वाले जवानों की संख्या में भी कमी आयी है। जवानों की जिन्दगी की भरपाई मुआवजे में नहीं हो सकती लेकिन उनके प्रति सरकार के दायित्व को ध्यान में रखकर प्रतीक के तौर पर यह तय किया गया है कि शहीदों के परिजनों को एक-एक करोड़ से कम मुआवजा नहीं मिलेगा। श्री राजनाथ ने कहा कि नक्सलवाद और चरमपंथ एक चुनौती है लेकिन मैं यह कहना चाहूंगा कि यह खतरा अब कम हो रहा है और इसका आधार सिकुड़ रहा है। उन्हांने कहा कि यह संतोष की बात है कि नक्सलियों के भौगोलिक फैलाव में 40 से 45 फीसद की गिरावट दर्ज की गयी है।
छत्तीसगढ़ में बस्तर के अलावा दंतेवाड़ा, बीजापुर और सुकमा में भी नक्सलवाद अप्रासांगिक हो चुका है। यहां पर हाट-बाजारों का चलन फिर से लौट आया है। एक समय था जब यहां पर नक्सलवादियों ने हाट-बाजार पर ही प्रतिबंध लगा दिया था। अब ग्रामीणों को जीविका का साधन मिला तो सरकार के प्रति उनमें विश्वास जागृत हुआ है। वास्तव में देखा जाए तो छत्तीसगढ़ में 2005 में डा0 रमन सिंह ने जब नक्सलवाद के खिलाफ ग्रामीणों का आंदोलन शुरू किया था, जिसे सलवा जुडुम कहा गया, तभी से नक्सलवाद की नींव हिल गयी थी। झारखण्ड में मुख्यमंत्री रघुबर दास ने इस तरफ पर्याप्त ध्यान नहीं दिया। ऐसा नहीं कि श्री दास ने राज्य में वहां के मूल निवासियों को आगे बढ़ाने के लिए कोई प्रयास ही नहीं किया बल्कि उन्हें रोजगार और नौकरी देने का संविधान के तहत पूरा प्रयास किया है। सरकार की तरफ से कई जनकल्याणकारी योजनाएं भी चलायी गयी हैं लेकिन इन योजनाओं का लाभ जनता को नहीं मिल पाता है। स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा के परिजनों और गांव वालों की समस्या इसका एक उदाहरण है। इसी प्रकरण में राज्य के बैंकों की भूमिका को भी देखा जा रहा है। पिछले दिनों मुख्यमंत्री रघुबर दास ने बैंक अधिकारियों को जमकर खरी-खोटी सुनाई थी।
मुख्यमंत्री रघुबर दास को गरीबों से जुड़ी योजनाओं को लेकर बैंकों का रुख नागवार गुजरा। झारखण्ड मंत्रालय में सभी बैंकों के राज्य स्तरीय प्रमुखों के साथ बैठक में उन्हांने कहा था कि गरीबों से जुड़ी योजनाओं को तेजी से लागू किया जाए। उन्होंने गरीबों के लिए आवास बनाने के कार्य को तेजी से पूरा करने के लिए कहा था। इस प्रकार की ढिलाई के चलते
जनता नाराज होती है और इसका फायदा नक्सली उठाते हैं। खुफिया एजेंसियों ने इसीलिए केन्द्र सरकार के माध्यम से रघुबर दास को सचेत
किया है।

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