बाबा केदारनाथ से है मोदी का लगाव

बारह ज्योतिर्लिंगों में सर्वोच्च केदारनाथ धाम की अनोखी कहानी है। कहते हैं कि केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग के प्राचीन मंदिर का निर्माण पांडवों ने कराया था। पुराणों के अनुसार केदार महिष अर्थात भैंसे का पिछला अंग (भाग) है। यहां भगवान शिव भूमि में समा गए थे। स्कंद पुराण में भगवान शंकर माता पार्वती से कहते हैं, हे प्राणेश्वरी! यह क्षेत्र उतना ही प्राचीन है, जितना कि मैं हूं। मैंने इसी स्थान पर सृष्टि की रचना के लिए ब्रह्मा के रूप में परब्रह्मत्व को प्राप्त किया, तभी से यह स्थान मेरा चिर-परिचित आवास है। यह केदारखंड मेरा चिरनिवास होने के कारण भू-स्वर्ग के समान है। केदारखंड में उल्लेख है, अकृत्वा दर्शनम् वैश्वय केदारस्याघनाशिनरू, यो गच्छेद् बदरी तस्य यात्रा निष्फलताम् व्रजेत अर्थात् बिना केदारनाथ भगवान के दर्शन किए यदि कोई बदरीनाथ क्षेत्र की यात्रा करता है तो उसकी यात्रा व्यर्थ हो जाती है। इसी केदारनाथ धाम से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी विशेष लगाव है।पुराण कथा के अनुसार हिमालय के केदार श्रृंग पर भगवान विष्णु के अवतार महातपस्वी नर और नारायण ऋषि तपस्या करते थे। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शंकर प्रकट हुए और उनके प्रार्थनानुसार ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा वास करने का वर प्रदान किया। यह स्थल केदारनाथ पर्वतराज हिमालय के केदार नामक श्रृंग पर अवस्थित है।
केदारनाथ और बदरीनाथ धाम के विकास के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गंभीर हैं। पीएम मोदी ने गत 10 जून को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए केदारनाथ धाम के पुनर्निर्माण प्रोजेक्ट का जायजा लिया। प्रधानमंत्री ने इस दौरान केदारनाथ के साथ-साथ बदरीनाथ धाम के लिए भी डेवलपमेंट प्लान बनाने को कहा है। पीएम मोदी ने कहा कि अगले 100 साल तक की परिस्थितियों का आकलन कर विकास की यह कार्ययोजना तैयार की जाए। वीडियो कॉन्फ्रेंस के बारे में ट्वीट कर पीएम मोदी ने लिखा कि केदारनाथ के पुनर्विकास में इस बात पर जोर है कि वह इको-फ्रेंडली हो और तीर्थयात्रियों के साथ-साथ पर्यटकों के लिए भी सुविधाजनक हो। केदारनाथ में पुनर्विकास के अलावा रामबन से केदारनाथ तक हेरिटेज सेंटर और ब्रह्म कमल वाटिका समेत दूसरी जगहों के विकास पर भी विचार-विमर्श किया गया। पीएम मोदी ने कहा कि इन प्रयासों से जहां हमारा सांस्कृतिक जुड़ाव गहरा होगा, वहीं पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा।पीएम मोदी की वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के बारे में जानकारी देते हुए उत्तराखंड के सूचना विभाग ने कहा कि प्रधानमंत्री ने ड्रोन के माध्यम से केदारनाथ में चल रहे विभिन्न कार्यों का अवलोकन किया। उन्होंने केदारनाथ मंदिर परिसर, आदि गुरु शंकराचार्य की समाधि, सरस्वती घाट पर बने पुल एवं आस्था, केदारनाथ में बन रही गुफाओं, मंदाकिनी नदी पर बन रहे पुल, मंदाकिनी एवं सरस्वती के संगम पर बन रहे घाटों के बारे में भी जानकारी प्राप्त की। इसके अलावा रामबाड़ा से केदारनाथ के बीच स्थित छोटे-छोटे पैच को भी इस स्थान की स्मृतियों से जोड़ने का निर्देश दिया।पीएम मोदी ने कहा कि इस क्षेत्र में आध्यात्म से संबंधित भी कई काम किए जा सकते हैं। इससे श्रद्धालुओं को केदारनाथ के दर्शन के साथ ही यहां से जुड़े धार्मिक एवं पारंपरिक महत्व के स्थलों के बारे में भी जानकारी मिलेगी।बाबा केदारनाथ के आस-पास जो गुफाएं बनाई जा रही हैं, उनको सुनियोजित तरीके से विकसित किया जाए तो इनका स्वरूप और अधिक आकर्षक होगा।मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत भी इस देव धरती के महत्व को अच्छी तरह समझते हैं। उनकी सरकार के तीन साल बिना किसी बाधा के पूरे हो गये। उत्तराखंड में भाजपा सरकार में मुख्यमंत्री पूरे कार्यकाल तक कुर्सी पर नहीं बैठ पाया। त्रिवेन्द्र रावत के सामने इस तरह के संकट की परछाईं नहीं दिख रही है। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस को भी सरकार के खिलाफ कोई मुद्दा नहीं मिल रहा है। राज्य की राजधानी को लेकर भी भाजपा आगे निकल गयी है। त्रिवेन्द्र रावत की सरकार ने गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बना दिया है। उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के पहले से ही गैरसैंण प्रदेश की जन भावनाओं का केंद्र बन चुका था। यही वजह थी कि राज्य की आंदोलनकारी ताकतों ने इसे वीर चंद्र सिंह गढ़वाली की याद में चंद्रनगर नाम से राजधानी बनाने का ऐलान कर दिया था लेकिन, 9 नवंबर 2000 को अस्तित्व में आए उत्तराखंड की अस्थाई राजधानी देहरादून बन गई, तभी से सूबे की सियासत राजधानी के इर्द-गिर्द ही घूमती दिखाई दे रही है। देहरादून को अस्थाई राजधानी बनाने का विरोध भी शुरू से ही व्यापक स्तर पर हुआ है। ऐसे में बढ़ते जन दबाव से बचने के लिए अंतरिम सरकार के मुखिया नित्यानंद स्वामी ने दीक्षित आयोग का गठन किया था। बाद के सालों में स्थाई सरकारों ने इस आयोग के कार्यकाल को आगे बढ़ाने में खासी रुचि दिखाई। नतीजा ये रहा कि पूरे 11 सालों तक दीक्षित आयोग काम करता रहा। एक दशक से भी अधिक समय तक काम करने वाले आयोग की रिपोर्ट पर कभी भी सदन में चर्चा तक नहीं हुई। आखिरकार 2013 में विजय बहुगुणा के कार्यकाल में गैरसैंण फिर चर्चाओं के केंद्र में आया। कांग्रेस की बहुगुणा सरकार ने पहली बार यहां विधानसभा सत्र आयोजित करने के साथ ही विधानसभा भवन की नींव रखी। अब जब वर्तमान भाजपा सरकार ने गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बना दिया है, तो फिर से सूबे की सियासत इसी के इर्द-गिर्द केंद्रित नजर आ रही है। पूर्व सीएम हरीश रावत ने मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत को इस फैसले के लिए बधाई तो दी है, लेकिन साथ ही सवाल किया है कि आखिर स्थाई राजधानी है कहां? जबकि इकलौता क्षेत्रीय दल यूकेडी इस फैसले के खिलाफ लॉकडाउन के बावजूद सड़कों पर उतरा है। फैसले पर विरोध जताते हुए यूकेडी के शीर्ष नेता और पूर्व विधायक काशी सिंह ऐरी कहते हैं कि सरकार ने वो किया है जिसकी मांग कभी की ही नहीं गई। गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने का कदम पूरी तरह राज्य आंदोलन की भावना के खिलाफ है। साथ ही ऐरी भाजपा सरकार से सीधा सवाल कर ये भी पूछ रहे हैं कि आखिर उत्तराखंड की स्थाई राजधानी है कहां? जानकार भी 13 जिलों के छोटे से उत्तराखंड में दो राजधानियों को पैसे की बर्बादी मान रहे हैं। हालांकि, भाजपा से जुड़े राज्य आंदोलनकारी महेंद्र लुंठी को उम्मीद है कि ग्रीष्मकालीन राजधानी बनने से गैरसैंण को स्थाई राजधानी बनाने का रास्ता तैयार होगा।इसलिये त्रिवेन्द्र सरकार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सलाह पर अमल करते हुए बाबा केदारनाथ और उससे जुड़े धार्मिक एवम ऐतिहासिक स्थलों के विकास पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए। (हिफी)

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