कितना खूबसूरत था मालपा, आज यकीन नहीं होता
हल्द्वानी : कैलास मानसरोवर यात्रा से लौटे 13वें दल के सदस्यों के जेहन में मालपा से जुड़ी यादें हमेशा ताजा रहेंगी। मालपा आपदा में भले ही तबाह हो चुका है, लेकिन आज भी मालपा में स्थानीय लोगों से मुलाकात के दौरान अपनेपन के एहसास ने यात्रियों को भीतर तक छुआ।
शनिवार को काठगोदाम दल में शामिल मुंबई निवासी कल्पेश रजनीकांत पीसे और उनकी पत्नी अपर्णा कल्पेश पीसे यात्रा के दौरान मालपा में बिताए लम्हों को याद करते हुए भावुक हो जाते हैं। उन्होंने बताया कि तीस जुलाई को हम दिल्ली से काठगोदाम पहुंचे थे।
इसके बाद अल्मोड़ा में रात्रि विश्राम के बाद अगले दिन पिथौरागढ़ पहुंचे। यहां से हम धारचूला और उसके बाद तवाघाट से आगे की यात्रा पर निकले। जाते समय हम मालपा में डेढ़ घंटे के लिए रुके थे। दिन ठीक से याद नहीं है, लेकिन मालपा में हमने दोपहर को भोजन किया था। दो-तीन दुकानें थे। यात्रियों के आने से इस छोटे से बाजार में चहल-पहल नजर आ रही थी।
हमारे साथ चल रहे गाइड ने हमें बताया कि मालपा वही जगह है, जहां 1998 में भी आपदा में सबकुछ तबाह हो गया था। यहां पर एक स्मारक भी बनाया गया है। दल में शामिल फरीदाबाद निवासी लवदीप मल्होत्रा बताते हैं कि वापसी में हमें पता चला कि मालपा आपदा से तबाह हो गया। इसलिए अब यात्रियों को हेलीकॉप्टर से बूंदी से धारचूला और पिथौरागढ़ लाया जाएगा।
हमने अपने ग्रुप की एक लिस्ट बना ली। जिसमें तय किया गया कि हेलीकॉप्टर से सबसे पहले बीमार, बुजुर्ग और महिला यात्रियों को भेजा जाएगा। क्योंकि मौसम लगातार खराब चल रहा था, जिससे उड़ान भरने में हेलीकॉप्टर भी सक्षम नहीं था। मालपा हादसे से यात्रियों को दुख तो बहुत हुआ, लेकिन आपदा भी यात्रियों के हौसले का डिगा नहीं पाई। हममें से कई यात्री अगले वर्ष होने वाली यात्रा में दोबारा आएंगे।