एडॉप्शन के मामले में महाराष्ट्र अव्वल, बेटियों को लेकर लोगों की सोच में बदलाव
मुंबई । देश में बेटियों को लेकर लोगों की सोच में बदलाव आ रहा है. हाल ही में आए सरकारी आंकड़े बताते हैं कि अप्रैल 2019 से लेकर 31 मार्च 2020 तक कुल 3,531 बच्चों को गोद लिया गया, जिनमें 2,061 लड़कियां शामिल हैं. हालांकि कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि ज्यादा लड़कियां इसलिए गोद ली जा रही हैं क्योंकि ऐसे बच्चों में लड़कियों की संख्या ज्यादा है।केंद्रीय दत्तक-ग्रहण संसाधन प्राधिकरण के आंकड़ों के अनुसार एक अप्रैल 2019 से 31 मार्च 2020 के बीच 1,470 लड़कों और 2,061 लड़कियों को गोद लिया गया. आकंड़ों के अनुसार सभी राज्यों में से महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा बच्चे गोद लिए गए।देशभर में बेटों को प्राथमिकता देने के चलन को लेकर एक अधिकारी ने कहा कि अब लोगों की मानसिकता धीरे-धीरे बदल रही है और वे लड़कियों को गोद लेने में ज्यादा रुचि दिखा रहे हैं. अधिकारी ने कहा, श्हम उन्हें तीन विकल्प देते हैं- वे लड़का या लड़की में से एक को चुनें या कोई प्राथमिकता न रखें. बहुत से लोग बच्ची को गोद लेने में रुचि दिखाते हैं।गैर लाभकारी संगठन ‘सेंटर फॉर एडवोकेसी एंड रिसर्च’ की कार्यकारी निदेशक अखिला शिवदास ने कहा, श्किसी गोद लेने वाली संस्था में आप ऐसे ही चले जाइये तो पता चल जाएगा कि गोद लेने के लिए लड़कों से ज्यादा लड़कियां हैं. इसलिए इसे प्रगतिशील मानसिकता से जोड़कर देखना अतिशयोक्ति होगी या समस्या का कुछ ज्यादा ही सरलीकरण करना होगा।उन्होंने कहा कि बहुत से परिवारों में लड़कों को ही प्राथमिकता दी जाती है और वे बच्चा पैदा होने से पहले उसके लिंग का पता कर गर्भ में लड़की होने पर गर्भपात कराने की सीमा तक चले जाते हैं. उन्होंने कहा कि बहुत से लोग लड़की पैदा होने पर उसे छोड़ तक कर देते हैं।आंकड़ों के अनुसार पिछले साल अप्रैल से लेकर इस साल मार्च के बीच 0-5 साल की आयु के 3,120 बच्चों को गोद लिया गया. इस दौरान 5-18 साल की आयु के 411 बच्चों को गोद लिया गया. आंकड़ों के अनुसार महाराष्ट्र में सर्वाधिक 615 बच्चों को गोद लिया गया. इसके अलावा कर्नाटक में 272, तमिलनाडु में 271, उत्तर प्रदेश में 261 और ओडिशा में 251 बच्चों को गोद लिया गया. अधिकारी ने कहा कि सामान्य तौर पर महाराष्ट्र में गोद लिए गए बच्चों की संख्या सबसे ज्यादा इसलिए होती है क्योंकि वहां 60 से अधिक एजेंसियां हैं, जबकि अन्य राज्यों में ऐसी औसतन 20 एजेंसियां हैं।