हिमालयी क्षेत्रों में लेवेंडर की खेती यहां के किसानों के लिए बहुत उपयोगी

मसूरी,। मसूरी वन प्रभाग के सभागार में लेवेंडर के फूलों की खेती करने के लिए एक गोष्ठी का अयोजन किया गया जिसमें बताया गया कि हिमालयी क्षेत्रों में लेवेंडर की खेती यहां के किसानों के लिए बहुत उपयोगी है क्यों कि इसे न ही कोई जंगली जानवर नुकसान पहुंचाता है न ही कोई खाद पानी या मेहनत करनी पड़ती है। गोष्ठी में जम्मू कश्मीर से लेवेंडर की खेती करने वाले काश्तकार भारत भूषण ने बताया कि उत्तराखंड के खेत लैवंडर की खेती के लिए माकूल हैं क्योंकि यहां का वातावरण, व आबोहवा कश्मीर की तरह है। यहां पर्याप्त मात्रा में लेवेन्डर की खेती की जा सकती है। लेवेंडर के फूल की आजकल देश-विदेश में बहुत मांग है। उन्होंने बताया कि पहले कश्मीर के किसान भी अनाज की खेती करते थे लेकिन उसमें पर्याप्त मात्रा में कड़ी मेहनत करने के बाद भी अपने परिवार का भरण पोषण करने का अनाज भी नहीं हो पाता था। उसके बाद उन्होंने लैवंडर की खेती शुरू की जिसमें उनकी अच्छी खासी आय होने लगी उसके बाद उन्होंने अन्य किसानों को भी लैवेंडर की खेती के लिए प्रेरित किया और आज इससे वे अच्छी खासी आय अर्जित कर रहे हैं। उन्होंने कार्यक्रम में आए किसानों को लैवेंडर की खेती के बारे में विस्तार से जानकारी दी और बताया कि जम्मू कश्मीर हिमाचल उत्तराखंड में लैवंडर की खेती के लिए माकूल मौसम है और ऊंचाई वाले क्षेत्रों में जहां बर्फ पड़ती है इसकी भरपूर मात्रा में खेती हो सकती है। उन्होंने बताया कि एक बार लैवंडर के पौधे लगाने के बाद 15 साल तक पौधे फूल देते हैं और इससे निकलने वाले तेल की कीमत बाजार में दस से बारह हजार रुपए प्रति किलो है। इन फूलों से साबुन, शैंपू, पेस्ट, केक, बिस्किट आदि भी बनाए जाते हैं। इस मौके पर वनस्पति विशेषज्ञ डा. ज्योति मारवाह ने बताया कि मसूरी में भी इन फूलों की खेती के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है और उन्होंने अपनी संपत्ति पर इसका प्लांट भी लगाया गया है ताकि इसकी खेती करने वालों को बाजार उपलब्ध कराया जा सके। वह पहले से ही औषधीय पौधों की खेती करती है व उसका तेल निकालती है लेकिन गत वर्ष से वह लेवेंडर की खेती कर रही हैं व लोगों को प्रोत्साहित कर रही हैं। उन्होंने बताया कि यह उत्तराखंड की तकदीर बदल सकती है, अगर यहां के काश्तकारों ने इस नगदी फसल पर ध्यान दिया तो आने वाले समय में उत्तराखंड में लेवेंडर की फसलों से खेत लहलहायेंगे व यहां के किसान आर्थिक रूप से मजबूत हांेगे व उनकी आय दुगनी होगी।

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