अनंत ने राजनीति में नाम कमाया
दक्षिण भारत के कई नेताओं ने राष्ट्रीय राजनीति में नाम कमाया है उन्हीं में से एक अनंत कुमार थे। नरेन्द्र मोदी सरकार के मंत्री अनंत कुमार का लम्बा संसदीय जीवन रहा है। वह 1996 से 6 बार संसद भवन में अपने क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। उन्हें असाध्य बीमारी ने घेर लिया था और कुछ दिनों से वेंटीलेटर पर थे। गत 11 नवम्बर की रात में उन्होंने अंतिम सांस ली। उनकी साफ-सुथरी राजनीति को पक्ष-विपक्ष के सभी नेता याद कर रहे हैं। मानव जीवन की शायद यही सबसे बड़ी उपलब्धि भी होती है कि इस दुनिया से नश्वर शरीर जब विदा ले, तब उसे कितने लोग याद करते हैं। संसदीय कार्य, रसायन और उर्वरक मंत्रालय का कार्य वे बड़ी जिम्मेदारी से संभाल रहे थे और जब बीमार पड़े तब भी उन्हें अपने मंत्रालय की चिंता थी। इस तरह अपनी लगन और धुन के पक्के नेता ने राजनीति में जो रिक्तता छोड़ी है, उसे भरना आसान नहीं होगा।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की मजबूत विचारधारा से ओतप्रोत, अदभुत संगठन क्षमता और बेंगलुरू के सर्वप्रिय सांसद अनंत कुमार की कितनी ही बातें आज याद आती है और देश भर में इसकी चर्चा हो रही है। संयुक्त राष्ट्र संघ में सबसे पहली कर्नाटक की आवाज अनंत कुमार की ही गूंजी थी। भाजपा में वह बहुत ही लोकप्रिय नेता के रूप में स्थापित हो चुके थे। उन्होंने कर्नाटक में भाजपा को मजबूती से स्थापित किया था। उनका साथ वरिष्ठ नेता बी एस येदियुरप्पा ने दिया था। अनंत कुमार का जन्म 22 जुलाई 1959 को कर्नाटक के बेंगलुरू में हुआ था। उनके पिता का नाम एचएन नारायण शास्त्री और माता का नाम गिरिजा शास्त्री था। पिता नारायण शास्त्री का राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से लगाव था। इसका प्रभाव अनंत पर भी पड़ा। प्रारंभिक शिक्षा से ही वह संघ के अनुशासन से जुड़ गये थे। उन्होंने हुबली में के एस. आर्ट कालेज से बीए की उपाधि हासिल की थी। यह कालेज भी कर्नाटक यूनिवर्सिटी से सम्बद्ध था। इसके बाद अनंत कुमार ने इसी यूनिवर्सिटी से सम्बद्ध जे.एस.एस.ला. कालेज से बैचलर्स इन ला (एलएलबी) की डिग्री अच्छे अंकों से हासिल की। छात्र जीवन में आरएसएस के लिए सक्रिय रूप से काम करने के लिए ही संघ की छात्र शाखा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़ गये।
अनंत कुमार की राजनीतिक सक्रियता उस समय विशेष रूप से दिखाई पड़ी जब श्रीमती इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लागू कर दिया। आपातकाल का विरोध विभिन्न स्तरों से हो रहा था। परिवार नियोजन पर विशेष रूप से जिस तरह सख्ती की गयी थी, उसमें ग्रामीण जनता में भी आक्रोश था। कर्नाटक कांग्रेस का गढ़ रहा है लेकिन आपातकाल में वहां भी कांग्रेस सरकार के प्रति आक्रोश था। अनंत को अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का स्टेट सेक्रेटरी बनाया गया था। इसके बाद 1985 में वह विद्यार्थी परिषद के राष्ट्रीय मंत्री भी बने। भारतीय जनता पार्टी को अनंत कुमार के अंदर नेतृत्व की भरपूर क्षमता दिखाई पड़ी और उन्हें विद्यार्थी परिषद से भाजपा में शामिल कर लिया गया। उन्हें भाजपा की युवा शाखा भारतीय जनता युवा मोर्चा में भेजा गया और 1996 में अनंत कुमार भारतीय जनता युवा मोर्चा के राष्ट्रीय मंत्री बन गये।
उसी वर्ष देश में 11वीं लोकसभा के लिए चुनाव हो रहे थे। अनंत कुमार को भाजपा ने बेंगलुरू दक्षिण लोकसभा क्षेत्र से प्रत्याशी बनाया और जनता ने इस युवा नेता को अपना प्रतिनिधि चुन लिया। अनंत कुमार तकनीकी शिक्षा के बहुत समर्थक थे। दो साल बाद अर्थात 1998 में फिर से लोकसभा के चुनाव हुए और अनंत कुमार पहले राजनेता थे जिन्होंने अपनी स्वतंत्र बेवसाइट बनायी थी। जनता ने उन्हें फिर से अपना संसदीय प्रतिनिधि चुना और अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार में उन्हें सिविल एविएशन मंत्री बनाया गया। वह सरकार में सबसे युवा कैबिनेट मंत्री थे। अनंत कुमार को 1999 में तीसरी बार सांसद चुना गया और भाजपा नीत गठबंधन राजग में उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया गया। उन्होंने विभिन्न मंत्रालयों का कार्यभार कुशलता से संभाला। पर्यटन, स्पोर्ट्स एण्ड युवा मामले, संस्कृति, शहरी विकास एवं गरीबी उन्मूलन व संसदीय कार्य मंत्रालय के दायित्व को भी अनंत कुमार ने बखूबी निभाया था।
अनंत कुमार में गजब की संगठन क्षमता थी। भाजपा ने इसी के चलते 2003 में उन्हें कर्नाटक राज्य इकाई का अध्यक्ष बनाया था। इसका नतीजा यह रहा कि उस वर्ष विधान सभा चुनाव में भाजपा सबसे बड़ी सिंगल पार्टी बनकर उभरी थी। यह अलग बात है कि कांग्रेस और जनता दल (एस) ने मिलकर सरकार बनायी थी। इस गठबंधन सरकार को भाजपा ने कुमार स्वामी के माध्यम से गिरवा दिया था। भाजपा ने 2004 में लोकसभा चुनाव में भी सबसे ज्यादा सीटें जीती थीं। उसी वर्ष अनंत कुमार को भाजपा का राष्ट्रीय महामंत्री बनाया गया था। उन्हें मध्य प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़ और अन्य राज्यों में पार्टी को मजबूत करने का दायित्व भी दिया था। उनकी लोकप्रियता का प्रमाण इससे बड़ा और क्या हो सकता है कि दक्षिण बेंगलुरू से 1996 से ही लोकसभा में प्रतिनिधित्व कर रहे थे।
अनंत कुमार इस नश्वर शरीर को छोड़कर चले गये हैं। उनके राजनीतिक जीवन को उनकी पत्नी डा. तेजस्विनी से बहुत समर्थन मिला था और उनकी दो बेटियां ऐश्वर्या और विजेता हैं। अनंत कुमार के निधन पर दलगत राजनीति से परे होकर विभिन्न नेताओं ने श्रद्धा सुमन अर्पित किये हैं। महज 59 साल की उम्र में वह चले गये तो देश को गहरा आधात लगा है। केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने पूरे देश में राष्ट्रध्वज आधा झुकाने का निर्देश दिया। राष्ट्रपति रामनाथ कोबिन्द ने कहा है कि अनंत कुमार का निधन देश के सार्वजनिक जीवन में बहुत बड़ी क्षति है। उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने भी शोक जताया और कहा कि ऐसा होगा, यह हमने सोचा तक नहीं था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने शोक को कुछ इस तरह से व्यक्त किया। उन्होंने लिखा अहम सहयोगी और दोस्त के निधन से दुखी हूं। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी अनंत कुमार के निधन पर दुख व्यक्त किया। उन्होंने कहा- अनंत कुमार जी के निधन से मैं दुखी हूं। भगवान उनकी आत्मा को शांति दे। कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमार स्वामी ने भी अनंत कुमार को भावभीनी श्रद्धांजलि दी है। उन्होंने शोक संदेश में कहा- मैंने अपना परम मित्र खो दिया है। वे आदर्शों वाले राजनेता थे जिन्होंने एक सांसद और मंत्री के तौर पर देश को बहुत कुछ दिया, भगवान उनकी आत्मा को
शांति दे।
इस संसार में जो आया, उसे एक न एक दिन जाना ही पड़ता है लेकिन जिसे अपने और विरोधी दोनों श्रद्धा सुमन अर्पित करें उसे अमरत्व प्राप्त हो जाता है। ऐसे ही अमर नेता बन गये है अनंत कुमार। उन्हें हमारी मार्मिक श्रद्धांजलि।