स्वतंत्रता के बाद भी देश बना हुआ है ‘अंग्रेजों’ का गुलाम: मिल्की राम
मसूरी : मसूरी देश को आजाद हुए 70 साल हो चुके हैं, बीते कुछ दशकों में देश ने खासी तरक्की भी की है। आज विश्व की प्रमुख ताकतों में देश की गिनती है, लेकिन अब भी स्वतंत्रता से पूर्व देखा गया आधुनिक भारत का सपना कोसों दूर नजर आता है। आजादी के इतने सालों बाद भी देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा नजर आता है। वर्तमान स्थिति पर गौर करें तो अहसास होता है कि देश नौकरशाही का गुलाम बन चुका है। ये गुलामी भले ही नजर न आए, लेकिन देश को अंदर ही अंदर खोखला कर रही है। इसी गुलामी के चलते भ्रष्टाचार की बीमारी ने देश को जकड़ लिया है। समय रहते ठोस कदम न उठाए गए तो इस बीमारी का इलाज बेहद मुश्किल हो जाएगा।
यह पीड़ा बयां की है 88 वर्षीय स्वतंत्रता सेनानी मिल्की राम अग्रवाल ने। लखवाड़ स्थित अपने आवास पर दैनिक जागरण से विशेष बातचीत में मिल्की राम अग्रवाल ने अपने स्वतंत्रता संग्राम के अनुभव और देश की वर्तमान स्थिति पर अपने विचार साझा किए। बकौल मिल्की राम, आजादी की लड़ाई देशवासियों के हक, उनके विकास और उनकी खुशियों के लिए लड़ी गई थी। लेकिन, आज जब देश के हालात देखता हूं तो आंखे छलक जाती हैं। देश का सिस्टम नौकरशाही का गुलाम बन गया है, अंग्रेजों के समय भी तो ऐसा ही था।
उनका कहना है कि नेता चुनाव तो जीतते हैं, लेकिन जानकारी के अभाव में विभिन्न कार्यों के लिए नौकरशाही पर ही निर्भर रहते हैं। जिसका फायदा नौकरशाह उठा रहे हैं और भ्रष्टाचार में लिप्त होकर देश को अंदर से खोखला कर रहे हैं। नेता भी जनता के पैसे की लूट-खसूट में जुटे हैं। न नौकरशाहों पर कोई नकेल कसने वाला है, न ही भ्रष्ट नेताओं को ही कोई रोकने वाला। जिस दिन देश से भ्रष्टाचार की बीमारी जड़ से समाप्त हो जाएगी, सही मायनों में उसी दिन देश को पूरी तरह आजाद माना जाएगा।
मिल्की राम स्वतंत्रता में योगदान
1942 में मिल्कीराम अग्रवाल जब कालसी में पढ़ाई कर रहे थे तो उस दौरान स्वतंत्रता आंदोलन चरम पर था। गांधी जी के साथी धर्मदत्त शास्त्री उनके सिद्धांतों का प्रचार करने के लिए मिल्की राम और उनके साथियों का सहयोग लेते थे। जेलों में बंद स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के परिवारों की मदद के लिए वे व उनके साथी प्रत्येक रविवार व छुट्टी के दिन गावों में जाकर धन व राशन एकत्रित करते थे। साथ ही ग्रामीणों को आंदोलन में शामिल होने के लिए प्रेरित करते थे। उन्होंने बताया कि 1946 में जब गांधी जी मसूरी आए तो वह 15 दिनों तक गांधी जी के साथ रहे थे और प्रभात फेरियां निकाल कर लोगों को जागरूक करते थे।
नाश्ते में खाते थे नीम की चटनी
मिल्की राम बताते हैं कि गांधी जी के साथ मसूरी प्रवास के दौरान सुबह के नाश्ते में नीम की चटनी अवश्य खानी पड़ती थी, क्योंकि गांधी जी रोज सुबह नाश्ते में नीम की चटनी खाना पसंद करते थे। उन्होंने बताया कि स्वतंत्रता आंदोलन में उनके साथ गांव के रूपराम सिंह, सेवक सिंह, गुलाब सिंह, पंचराम सेमवाल ने भी बहुत सहयोग किया, आज वह हमारे बीच नहीं हैं।