भारत विभिन्न परंपराओं का देश , होली का उत्सव भी इससे अछूता नहीं
भारत विभिन्न परंपराओं का देश है। इस देश की भिन्नता ही इसके आकर्षण का केन्द्र है। आलम यह है कि देश के विभिन्न राज्यों में एक ही उत्सव को एक अलग स्वरूप के साथ मनाया जाता है। होली का उत्सव भी इसे अछूता नहीं है। यूं तो ब्रज की होली पूरे देश में आकर्षण का बिन्दु होती है, लेकिन इससे अलग भी देश के विभिन्न राज्यों में इसे मनाने का तरीका बेहद अलग है। तो चलिए जानते हैं इसके बारे में−
ब्रज की होली
जब भी होली खेलने की बात होती है तो सबसे पहले ब्रज की होली की ही याद आती है। यहां पर पूरे नौ दिनों तक होली का आनंद लिया जाता है। वैसे बरसाने की लठमार होली भी बेहद अनूठे तरीके से मनाई जाती है। बसराने की लट्ठमार होली फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाई जाती है। इस दिन नंदगांव के ग्वाल बाल होली खेलने के लिए राधा रानी के गांव बरसाने जाते हैं और मंदिरों में पूजा−अर्चना के पश्चात बरसाना गांव में होली खेलते हैं। इसके बाद अगले दिन दसवीं तिथि को लट्ठमार होली नंदगांव में खेली जाती है। जिसमें पुरूष महिलाओं पर रंग डालते हैं, तो वहीं महिलाएं लाठियों और कपड़ें से बने कोड़ों के जरिए उन्हें मारती हैं। वहीं मथुरा व वृंदावन में फूलों की होली भी बेहद प्रसिद्ध है। वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में भक्त अपने भगवान के साथ होली खेलते हैं। मंदिर के कपाट खुलते ही श्रद्धालु अपने प्रभु पर रंग बरसाने के लिए टूट पड़ते हैं। इस होली के तुरंत बाद मथुरा में होली का जुलूस निकलता है, जो देखते ही बनता है। मथुरा और वृंदावन में होली खेलने का यह सिलसिला करीबन 15 दिनों तक चलता है।
बंगाल की होली
बंगाल की होली का रंग बेहद अलग होता है। वहां पर होली को डोल पूर्णिमा कहा जाता है। बंगाल में होली के दिन राधा और कृष्ण की प्रतिमाओं को डोली में बैठाकर उसकी झांकी पूरे शहर में निकालते हैं। वहीं उड़ीसा में भी होली को डोल पूर्णिमा कहकर ही बुलाया जाता है और वहां पर होली के दिन भगवान जगन्नाथ जी को डोली में बिठाकर पूरे शहर में घुमाया जाता है।
इंदौर की होली
इंदौर में होली का उत्सव पांच दिन का होता है और इस उत्सव का समापन रंगपंचमी के रूप में होता है। इंदौर में होली का उत्साह लोगों में देखते ही बनता है। यहां पर लोग होली खेलने के लिए सड़कों पर उतर आते हैं और जमकर मस्ती करते हैं।
राजस्थान की होली
वहीं राजस्थान की होली में कई तरह के रंग देखने को मिलते हैं। जहां बाड़मेर में पत्थर मार होली खेली जाती है तो वहीं अजमेर की कोड़ा होली काफी प्रसिद्ध है। इसी तरह, सलंबर कस्बे में आदिवासी गेर खेलकर होली मनाते हैं। इस दिन यहां के युवक हाथ में एक बांस जिस पर घूंघरू और रूमाल बंधा होता है, जिसे गेली कहा जाता है लेकर नृत्य करते हैं। इस दिन युवतियां फाग के गीत गाती हैं।
मणिपुर की होली
मणिपुर में होली का उत्सव छह दिन का होता है। इस उत्सव की शुरूआत एक घास की कुटिया जलाने से होती है। इसके बाद शहरों में छोटे−छोटे बच्चे घर−घर जा कर कुछ पैसे या उपहार लेते हैं। वैसे मणिपुर में लोग होली के दौरान एक स्थानीय नृत्य तबल चांगबल का भी भरपूर आनंद उठाते हैं। लोक नृत्य और लोक गीतों का यही सिलसिला छह दिनों तक यूं ही चलता है।
कर्नाटक की होली
कर्नाटक में होली के त्योहार को कामना हब्बा के रूप में मनाया जाता है। वहां पर लोगों की मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव ने कामदेव को अपने तीसरे नेत्र से जला दिया था। इसलिए, इस दिन लोग कूड़ा−करकट फटे वस्त्र, एक खुली जगह एकत्रित करके उन्हें अग्नि को समर्पित करते हैं।
मध्यप्रदेश की होली
मध्यप्रदेश में भील होली को भगौरिया कहा जाता है। इस दिन युवक मांदल की थाप पर नृत्य करते हैं। नृत्य करते−करते जब युवक किसी युवती के मुंह पर गुलाल लगाता है और बदले में वह भी यदि गुलाल लगा देती है तो मान लिया जाता है कि दोनों विवाह के लिए सहमत हैं। यदि वह प्रत्युत्तर नहीं देती तो वह किसी और की तलाश में जुट जाता है।
गुजरात की होली
गुजरात में भील जाति के लोग बेहद अलग अंदाज में होली मनाते है। वह होली को गोलगधेड़ों के नाम से मनाते हैं। इसमें किसी बांस या पेड़ पर नारियल और गुड़ बांध दिया जाता है उसके चारों और युवतियां घेरा बनाकर नाचती हैं। युवक को इस घेरे को तोड़कर गुड़, नारियल प्राप्त करना होता है। इस प्रक्रिया में युवतियां उस पर जबरदस्त प्रहार करती हैं। यदि वह इसमें कामयाब हो जाता है तो जिस युवती पर वह गुलाल लगाता है वह उससे विवाह करने के लिए बाध्य हो जाती है।
हरियाणा की होली
हरियाणा की होली में देवर−भाभी के अनूठे व प्रेम भरे रिश्तों के रंग देखने को मिलते हैं। यहां पर धुलंडी में भाभी द्वारा देवर को सताए जाने की प्रथा है।
पंजाब की होली
पंजाब की होली में अमूमन शक्ति प्रदर्शन के रंग देखने को मिलती है। पंजाब में दौड़ते हुए घोड़ों पर सवार हथियार बंद सिख योद्धा देखने को मिलते है। पंजाब के होला मोहल्ला द्वारा यह त्यौहार 1701 से कुछ इसी अंदाज में मनाया जाता रहा है। होला मोहल्ला दो से तीन दिन तक लगातार मनाया जाता है। आखरी दिन चरण गंगा नदी के किनारे इस त्यौहार को मानाने के लिए कई सिख युवा आते हैं जो अपने युद्धकौशल का परिचय देते हैं।