आईआईटी रुड़की ने प्रोफेसर आनंद स्वरूप आर्या (1931-2019) की स्मृति में इंस्टीट्यूट चेयर प्रोफेसरशिप की स्थापना की
रुड़की। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), रुड़की ने 1 सितंबर 2020 को अपने दिवंगत प्रोफेसर आनंद स्वरूप आर्या की पहली पुण्यतिथि के अवसर पर उनके सम्मान और स्मृति में एक इंस्टीट्यूट चेयर प्रोफेसरशिप की स्थापना की घोषणा की। दिवंगत प्रोफेसर की पत्नी श्रीमती कौशल्या देवी आर्या और उनके बच्चों अरुण, पूनम, अंजलि और अंशुली द्वारा दिए गए दान से इस चेयर की स्थापना की गई है, ताकि पेशेवर जीवन में डॉ. आर्या के योगदान आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करते रहें।डॉ. आर्या का जन्म 13 जून 1931 को भारत में उत्तर प्रदेश राज्य के सहारनपुर जिले के अंबेहटा गाँव में हुआ था। अपनी प्रारंभिक शिक्षा के बाद, उन्होंने रुड़की विश्वविद्यालय (अब आईआईटी रुड़की) में प्रवेश लिया और 1953 में बी.ई. (सिविल इंजीनियरिंग) और 1954 में एम.ई. (स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग) में डिग्री हासिल की और एक संकाय सदस्य के रूप में विश्वविद्यालय से जुड़ गए। बाद में वे 1959 में इलिनोइस विश्वविद्यालय, उरबाना-शैम्पेन, यूएसए चले गए, जहां उन्होंने 1961 में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की।पीएचडी डिग्री प्राप्त करने के बाद, डॉ. आर्या विश्वविद्यालय लौट आए। उन्होंने भूकंप इंजीनियरिंग विभाग की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। वह 1971 में भूकंप इंजीनियरिंग विभाग के प्रमुख के पद पर आसीन हुए, 1988 में प्रो-वाइस-चांसलर बने और 1989 में सेवानिवृत्ति के बाद भी एमेरिटस प्रोफेसर के रूप में अपनी सेवाएं प्रदान करते रहे। सेवानिवृत्ति के बाद भी वह पेशेवर जीवन में सक्रिय रहे और 88 वर्ष की आयु में अंतिम सांस लेने तक देश की सेवा करते रहे।इंजीनियरिंग की दुनिया में प्रोफेसर आर्या की एक खास पहचान है, जिनके संरचनात्मक इंजीनियरिंग, भूकंप इंजीनियरिंग और आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में अग्रणी योगदान ने उन्हें अपने जीवनकाल में ही एक लेजेंड बना दिया। आईआईटी रुड़की उनकी कर्म भूमि थी, जहाँ 36 वर्ष की अपनी सेवा के दौरान, उन्होंने एक शिक्षक के रूप में ख्याति अर्जित की। उनके छात्र उन्हें हमेशा छोटे और बहुमंजिला भवनों, धनुषाकार और शेल संरचनाओं, पुलों, बांधों और परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के डायनामिक विश्लेषण और संरचनाओं के डिजाइन में अविस्मरणीय ज्ञान प्रदान करने के लिए याद करेंगे। अपने कार्यकाल के दौरान, उन्होंने रुड़की विश्वविद्यालय तथा भारत और दुनिया के कई अन्य संस्थानों में पेशेवरों को प्रशिक्षित करने के लिए भूकंप इंजीनियरिंग के विभिन्न क्षेत्रों में कई विशेष पाठ्यक्रम पेश किए। वे कई पत्रों और पुस्तकों के लेखक और सह-लेखक भी रहे, जिनमें से कई उनकी सेवानिवृत्ति के बाद लिखे गए थे। एक पेशेवर के रूप में उनकी अनूठी विशेषता एक अनिश्चित इको-सिस्टम के बावजूद जटिल संरचनात्मक समस्याओं के लिए अभिनव इंजीनियर और उपयुक्त व्यावहारिक समाधान की तलाश थी।प्रोफेसर आर्या ने कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में अपनी सेवाएं दी। वे इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ़ अर्थक्वेक इंजीनियरिंग के सह-स्थापना थे और 1977-84 के दौरान एसोसिएशन के निदेशक रहे। वे संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों जैसे यूनेस्को, यूनाइटेड नेशंस ह्यूमन सेटलमेंट्स प्रोग्राम (यूएनसीएचएस), यूनाइटेड नेशंस सेंटर फॉर रिज़नल डेवलपमेंट (यूएनसीआरडी) और विश्व बैंक के सलाहकार भी रहे। भारत सरकार ने उन्हें राष्ट्रीय भूकंपीय ज़ोनिंग समिति में प्रमुख के पद पर नेशनल सिज़्मिक अड्वाइज़र के रूप में सेवा देने, भारत के पहले वल्नरबिलिटी एटलस के विकास का नेतृत्व करने और यूएनडीपी द्वारा प्रायोजित भूकंप कम करने की क्षमता कार्यक्रम के अनुकरण का नेतृत्व करने के लिए आमंत्रित किया था। उन्होंने भूकंप इंजीनियरिंग कोड पर गठित समिति के अध्यक्ष के रूप में भारतीय मानक ब्यूरो में अपना योगदान दिया। बिहार राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (बीएसडीएमए) प्रारंभिक वर्षों में संस्थान की नींव मजबूत करने में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए हमेशा उनका आभारी रहेगा।अपने उत्कृष्ट अकादमिक, अनुसंधान और पेशेवर योगदान के लिए, प्रोफेसर आर्या कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित हुए। संयुक्त राष्ट्र ने उन्हें 1997 में सबसे प्रतिष्ठित डीएचए-ससाकावा आपदा निवारण पुरस्कार से सम्मानित किया। भारत सरकार ने उन्हें 2002 में पद्म श्री से सम्मानित किया। भारतीय राष्ट्रीय इंजीनियरिंग अकादमी ने उन्हें 2002 में अपने लाइफटाइम कंट्रीब्यूशन अवार्ड से सम्मानित किया। इलिनोइस विश्वविद्यालय और आईआईटी रुड़की ने उन्हें विशिष्ट पूर्व छात्र के पुरस्कार से सम्मानित किया था। भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी और इंडियन नेशनल एकेडमी ऑफ़ इंजीनियरिंग ने उन्हें फेलो चुना था। उनके द्वारा प्राप्त अन्य पुरस्कारों में फेडरेशन ऑफ इंडियन चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री अवार्ड (1986); इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंजीनियर्स (भारत) के राष्ट्रीय डिजाइन पुरस्कार (1987); खोसला राष्ट्रीय पुरस्कार (1980); इंडियन सोसाइटी ऑफ अर्थक्वेक टेक्नोलॉजी (1982) का जय कृष्ण पुरस्कार और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान का पहला डिजास्टर मिटिगेशन अवार्ड (2006) शामिल है।एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक, इंजीनियर, शिक्षक और लीडर होने के अलावा, डॉ. आर्या एक समर्पित परोपकारी और मानवतावादी व्यक्ति थे। रुड़की क्षेत्र में उनके सबसे उल्लेखनीय योगदानों में आनंद स्वरूप आर्या सरस्वती विद्या मंदिर, रुड़की (1996) की स्थापना और मार्गदर्शन तथा 2019 में उनके निधन से कुछ महीने पहले आयुर्वेदिक और होम्योपैथिक औषधालयों की स्थापना शामिल है।आईआईटी रुड़की डॉ. आर्या की यादों और योगदान को हमेशा के लिए संजोकर रखेगी। आनंद स्वरूप आर्या इंस्टीट्यूट चेयर प्रोफेसरशिप संकाय और छात्रों की आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करेगी। वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से आयोजित चेयर प्रोफेसरशिप की घोषणा कार्यक्रम में उनके परिवार के सदस्यों, आईआईटी रुड़की के संकाय, सैकड़ों प्रशंसकों, सहकर्मी, पेशेवर और दुनिया भर के छात्रों ने भाग लिया। इस अवसर पर, आर्या परिवार ने अपने प्रिय डॉ. आर्या को श्रद्धांजलि अर्पित की और कहा “व्यावहारिक रूप से समस्याओं को हल करने के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी को प्रयोग में लाना प्रोफेसर आर्या का जुनून था। उनकी पहली वर्षगांठ के अवसर पर, आईआईटी रुड़की में उनके नाम पर इंस्टीट्यूट चेयर प्रोफेसरशिप की स्थापना करने पर हमें गर्व है। हम आशा करते हैं कि यह लोगों को शिक्षा और अनुसंधान में उत्कृष्टता प्राप्त करने और इसे राष्ट्र के उत्थान के लिए उपयोग में लाने के लिए प्रेरित करेगा। डॉ. आर्या के सम्मान और स्मृति में इंस्टीट्यूट चेयर की स्थापना करने के लिए आर्या परिवार आईआईटी रुड़की का आभारी है। ””संस्थान के एक पूर्व छात्र के नाम पर और पूर्व छात्र द्वारा प्रायोजित इंस्टीट्यूट चेयर प्रोफेसरशिप और इस अवसर पर उनके परिवार की उपस्थिति ने इस आयोजन को हमारे लिए विशेष रूप से यादगार बनाया है,” आईआईटी रुड़की के निदेशक प्रो. अजीत के चतुर्वेदी ने कहा। उन्होंने आगे कहा “प्रो. आर्या वास्तव में एक लीजेंड थे, जिन्होंने जीवन भर भूकंप इंजीनियरिंग और आपदा प्रबंधन प्रयासों को मजबूत किया। आईआईटी रुड़की एक पूर्व छात्र और एक संकाय सदस्य के रूप में उनके योगदानों पर गर्व करता है। आईआईटी रुड़की श्रीमती कौशल्या देवी आर्या और उनके बच्चों का विशेष आभारी है, जिनके डोनेशन ने इस चेयर प्रोफेसरशिप को वास्तविक रूप प्रदान किया। प्रो. आर्या के संस्थान को इस महान सेवा के लिए भावी पीढ़ी आर्या परिवार को धन्यवाद देगी।”