नौ दिन के बदले में अगर आप दक्षिणा के रूप में कुछ देना चाहो तो.. कुसंग छोड़ देना :  मोरारीबापू

बुद्ध के निर्वाण की पुण्यभूमि कुशीनगर में गत नौ दिन से कथा-पाचक पू.मोरारीबापू के द्वारा रामकथा का गायन हो रहा था। आज विश्राम के दिन, प्रारंभ में बापू ने कथा के यजमानश्री के विधापूर्ण और सुविधापूर्ण आयोजन को लेकर संतोष व्यक्त किया है
था। और उनके सुपुत्र – मानस वाटिका के नव-पुष्प – के सरल और स्नेहयुक्त वक्तव्य को सराहा। कथा प्रवाह को आगे बढ़ाते हुए राम वनवास के प्रसंग की विशद चर्चा करते हुए बापू ने कहा कि सुख और दुःख सापेक्ष है। जीवन में यदि सुख को नारायण समझा जाए तो दुःख को भी नारायण समझना पड़ेगा।  राम सहित चारों भाई ब्याह करके अयोध्या लौटे, उसके बाद अयोध्या में सुख-समृद्धि की कोई सीमा न रही। इस बीच, राम वनवास का दुःख आ पड़ा। राम वनवास का कारण कैकेई के द्वारा किया गया मंथरा का दु:संग था। इस प्रसंग की चर्चा करते हुए बापू ने कहा कि नौ दिन के बदले में अगर आप दक्षिणा के रूप में कुछ देना चाहो तो.. कुसंग छोड़ देना। बुरे लोगों का संग बड़ों-बड़ों की बुद्धि को भ्रष्ट कर देता है। जिसकी कोख से भरत जैसा संत प्रकट हुआ उस कैकेई को भी कुसंग ने पकड़ लिया। दशरथजी की कैकेई के प्रति विशेष आसक्ति को लक्ष्य करके बापू ने कहा स्त्री को प्यार बहुत दो लेकिन इतने भी आसक्त न हों कि उनके मोह के पिंजड़े में आप फंस जाओ। स्त्री के नेत्र-बाण जिसको नहीं लगते, क्रोध जिसके चित्त को जलाता नहीं और लोभ का फंदा जिसके गले में पड़ता नहीं वह तो दूसरा राम है।
    दशरथजी को अपने जीवन की अंतिम क्षणमें श्रवण के मां-बाप की याद आई। आशीर्वाद और शाप की स्मृति समय पर आती है। किसी का दिल दुखाया हो और किसीके भीतर से आह निकल गई हो तो मौके पर यह सब
स्मृति आती हैं। तुम लाख भूलने की कोशिश करो, भूल ना पाओगे। किए हुए कर्मों का फल ब्रह्मा के बाप को भी भोगना पड़ता है तो हमारी क्या विसात! भरतजी को राज्य देने की बात आई तब भरतजी ने कहा, मैं पद का आदमी नहीं हूं, पादुका का आदमी हूं। राज-प्राप्ति मेरा पथ्य नहीं है, राम-प्राप्ति मेरा पथ्य है। बापू ने आगे कहा कि बुजुर्ग लोगों के आशीर्वाद लेकर ही शुभ कार्य का आरंभ करना क्योंकि उनके अनुभव मार्गदर्शक होते हैं।
*अभिवादनशीलस्य नित्यं वॄद्धोपसेविनः । चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम् ॥*
 बुजुर्गों का आदर करने से व्यक्ति के आयुष्य, विद्या, बल और यश बढ़ते हैं। लंका में हनुमानजी की पूंछ जलाई गई और परिणाम स्वरूप पूरी लंका जलने लगी। बापू ने इसका तत्त्वार्थ बताते हुए कहा कि लंकावासी खुद की ईर्ष्या में खुद जल रहे हैं। दूसरों की ईर्ष्या करनेवाले को ऐश्वर्य मिल भी जाए, शांति नहीं मिलेगी। स्वर्ग का नंदनवन मिल भी जाए, निद्रा नहीं मिलेगी। बापू ने हनुमानजी को परम बुद्ध, परम अरिहंत बताया।
     जब तक प्रयाग में गंगा, यमुना, सरस्वती बहती हैं, तब तक रामकथा अखंड चलती रहेगी। कथा के अंत में, बापू ने कहा कि कलयुग है इसलिए तीन काम करना – राम का स्मरण करना, आप जिस किसी को मानते  हैं। रामको गुनगुनाओ और रामकी कथा का श्रवण करो। यह हैं…सत्य, प्रेम और करुणा। क्योंकि सुमिरन करना सत्य का।  प्रेम के बिना गायन नहीं होता और करुणा के बिना रामकथा का श्रवणलाभ नहीं मिलता।

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