मीट को अहिंसा का नाम देना भगवान महावीर का अपमान- ऊर्जा गुरु अरिहंत ऋषि
– अहिंसा जैसे पावन शब्द को मीट से जोड़ना निंदनीय
– अहिंसा का नाम देने से शाकाहारी नहीं होता मीट
– लैब में बना मीट शाकाहार में शामिल नहीं किया जा सकता
जयपुरः अहिंसा मीट के नाम पर एक बार फिर से बहस शुरू हो गई है। इस बार आध्यात्मिक और मोटिवेशनल स्पीकर ऊर्जा गुरु अरिहंत ऋषि ने इस मुद्दे को उठाया है और सरकार से अहिंसा मीट के नाम में बदलाव किए जाने की मांग की है। शुक्रवार को मीडिया को मीडिया से बात करते हुए अरिहंत ऋषि ने सरकार द्वारा अहिंसा मीट के नाम पर समाज को गुमराह करने की बात कही। इस दौरान उन्होंने केंद्रीय मंत्री मेनका गाँधी के फैसले की भी समीक्षा की और मीट को अहिंसा शब्द से जोड़ने को निंदनीय बताया।
ऊर्जा गुरु ने कहा कि भारतवर्ष योग और आयुर्वेद विज्ञान की जन्मभूमि है। योग का उद्देश्य सात्विक गुणों की वृद्धि करना है, जिससे हम तनावमुक्त रह सकें। ऐसा भारतीय संस्कृति में सैकड़ों वर्षं से माना जा रहा है। भारतीय परम्परा में ऐसी मान्यता है कि हम जैसा खाते हैं वैसा ही बन जाते हैं और यह वैज्ञानिक सत्य है कि मांसाहार हमारे सात्विक गुणों को नष्ट करने का काम करता है। जिस लैब में बने मीट को सरकार अहिंसा मीट का नाम दे रही है, हम इसका विरोध करते हैं। सरकार ने इसके उत्पादन की अनुमति तो दे दी है लेकिन मीट के साथ अहिंसा जैसे पावन शब्द को नहीं जोड़ा जाना चाहिए। ऐसा इसलिए भी क्योंकि यह एक सात्विक शाकाहरी समाज को तो भ्रमिक कर ही रहा है, साथ ही जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी, जिन्हे अहिंसा के मूर्तिमान प्रतीक के रूप में देखा जाता है, उनके जीवन के त्याग और तपस्या के साथ अपमान है। मीट को मीट के रूप में ही देखना चाहिए न कि उसे अहिंसा जैसे शब्द का नाम देकर बाजार में उतारा जाना चाहिए।
बता दें कि पिछले दिनों एक आयोजन के दौरान मेनका गांधी ने कहा था कि बिजली और सूचना तकनीक के बाद अब लैब में ही जानवरों की स्टेम सेल से क्लीन मीट तैयार करना अगली बड़ी उपलब्धि है। हम सामान्य मीट को लैब में बने हुए क्लीन मीट से बदलने के लिए तैयार हैं। उन्होंने कहा था कि आने वाले 5 सालों में ये तकनीक बाजार में पहुंच जाएगी। जानकारों के मुताबिक, अहिंसा मीट को टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके तैयार किया जाएगा। अहिंसा मीट को तैयार करने में किसी जीव की हत्या नहीं होती है। इसे सिर्फ स्टेम सेल की मदद से लैब में ही विकसित किया जा सकता है। इसके लिए जिस जीव का मीट बनाना है, उसका स्टेम सेल लेकर एक पेट्री डिश में रखा जाता है। इसे अमीनो एसिड और कार्बोहाइड्रेड के मिक्सचर के साथ आर्टिफीशियल अनुकूल वातारण मुहैया करा कर तैयार किया जाता है। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार एक स्टेम सेल में एक लाख करोड़ स्टेम सेल बनाने की क्षमता होती है। इसी तरह लैब में एक स्टेम सेल से मीट का पूरा टुकड़ा तैयार कर लिया जाता है।