सकारात्मक सूचनाओं और विचारों का हो आदान-प्रदान : चिदानंद सरस्वती

ऋषिकेश, । परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने देशवासियों से विनम्र निवेदन किया कि चैत्र पूर्णिमा का विशेष स्नान है उसे  भाव भक्ति के साथ अपने घर में ही सम्पन्न करे, अपने परिवारवालों के साथ रहें तथा एकदूसरे का सहारा बने। ’’कुम्भ मेला’’ दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव है जिसे यूनेस्को ने ’’ग्लोबल इनटैन्जिबल कल्चरल हेरिटेज’’ मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर के रूप में स्थान दिया है, यह भारत के लिये गर्व का विषय है। यह भारतीय संस्कृति का उज्ज्वल भविष्य और भारत का आलोकमय उत्थान दर्शाता है। आध्यात्मिकता, साधना, भारतीय दर्शन, संस्कृति के साथ सद्भाव, समरसता और समानता का संदेश देेता है पावन आध्यात्मिक उत्सव है ’’कुम्भ मेला’’।कुम्भ सनातन काल से चला आ रहा एक पावन उत्सव है जिसमें स्नान का विशेष महत्व है इसके माध्यम से सम्पूर्ण जगत के समक्ष भारतीय सांस्कृतिक आदर्श का प्रकाश प्रकाशित होता है। इसमें अध्यात्म, लोकमंगल, सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया, सर्वभूतहिते रताः, वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना से विश्व कल्याण के कार्य किये जाते है। यह आयोजन सांस्कृतिक उदारता और समन्वयशीलता का विशिष्ट उदाहरण प्रस्तुत करता है। कुम्भ मेला, मानवता और सार्वभौमिकता का संदेश प्रसारित करता है। इक्कीसवीं सदी में वैज्ञानिक और तकनीक विकास के युग में भी भारत अपने गौरवशाली एवं ऐतिहासिक परम्पराओं को पूरी आस्था के साथ आयोजित करता है। कुम्भ मेला, 12 वर्ष के अंतराल में आयोजित किये जाने वाला दिव्य महोत्सव है जिसे भारतीय पूरी आस्था और समर्पण के साथ आयोजत करते हैं। अब तक कुम्भ के तीन शाही स्नान सफलतापूर्वक सम्पन्न हुये कल विशेष स्नान है इसमें हम सभी भारतवासियों को ध्यान रखना होगा कि सात्विक व एकल स्नान किया जाये। इस कोरोना काल में  भारत सरकार, डब्ल्यू एच ओ और यूनिसेफ द्वारा जारी की गयी गाइडलाइन का पालन किया जाये। एक बात हमेशा ध्यान रखें कि ‘जान है तो जहान है’। भावावेश में आकर कोई कार्य न करें, अपनी, अपने परिवारवालों की तथा देशवासियों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुये प्रतीकात्मकय भावनात्मक गंगा स्नान करें।कुम्भ मेला आस्था का विषय है इसलिये आस्था, व्यवस्था और सुरक्षा के साथ स्नान किया जाये। आस्था और व्यवस्था का संगम है कुम्भ मेला, अगर इसमें व्यवस्था नहीं रहगी तो आस्था टूटेगी इसलिये व्यवस्था के साथ आस्था भी बनी रहे और परम्परा भी बचे इसलिये एकल स्नान किया जाये।
संत समाज ने हमेशा वही किया जिसमे मानवता का हित समाहित है। संत समस्या नहीं समाधान हैं, संतों ने तो हमेशा समाधान दिये हैं और कुम्भ तो हमेशा समाधान ही देता रहा है। जब समाज में समस्यायें आयी तो संतों ने कुम्भ में बैठकर चिंतन किया और समाधान निकाले इसीलिये कुम्भ केवल अमृत मंथन ही नहीं आत्ममंथन की यात्रा है। समाज में जो समस्यायेें व्याप्त होती हैं और जिस दिशा की आवश्यकता होती है संत समाज उस का समाधान करने की पूरी कोशिश करते हैं।

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