बहन की शादी पर गाने ने पहुंचाया मुंबई, और बन गए राज कपूर की आवाज…

नई दिल्ली: ‘मेरा नाम जोकर’ फिल्म में जब राज कपूर गाते हैं ‘जीना यहां, मरना यहां’ या ‘पूरब पश्चिम’ में मनोज कुमार ‘जब कोई तुम्हारा हृदय तोड़ दे’ गुनगुनाते हैं तो ये गाने अच्छे-अच्छों को यादों के गलियारों में भटका देते हैं. यह उस आवाज का जादू है जिसमें दर्द भरा है और शब्दों में रचे—बसे दर्द को बखूबी बयान करती है. कई तो यहां तक कहते हैं कि इसे गाने वाले सिंगर के गाने तो टूटे दिलों और जाम के साथ सुने जाने वाले हैं. जी हां, गायकी में दर्द पिरोने वाला यह सुरों का जादूगर कोई और नहीं सिंगर मुकेश हैं. उनका जन्म 22 जुलाई, 1923 में दिल्ली में हुआ था और 27 अगस्त, 1976 को अमेरिका के मिशीगन में इसने दुनिया को अलविदा कहा. वे वहां कॉन्सर्ट के लिए गए थे. मुकेश ने सबसे ज्यादा गाने कल्याणजी-आनंदजी के साथ किए हैं.

दिल्ली से मुंबई तक का सफर
उनका पूरा नाम मुकेश चंद माथुर था. उनके पिता लाला जोरावर चंद माथुर इंजीनियर थे. वे 10 बहन-भाइयों में छठे नंबर के थे. उन्हें बचपन से ही संगीत का शौक था और वे के.एल. सहगल के बहुत बड़े फैन थे. मुकेश सहगल को कॉपी करने की कोशिश करते. लेकिन पढ़ाई खत्म करने के बाद उन्हें दिल्ली के पब्लिक वर्क विभाग में नौकरी मिल गई. उन्होंने गायकी नहीं छोड़ी. जिस दिन बहन घर से विदाई ले रही थी, मुकेश के लिए वह दिन काफी महत्वपूर्ण निकला. बहन की शादी पर वे गाना गा रहे थे तो उनके दूर के रिश्तेदार और एक्टर मोतीलाल उनकी इस गायकी से काफी इम्प्रेस हुए. बस फिर क्या था. उन्हें मुंबई में एक सहारा मिल चुका था. उन्होंने बोरिया-बिस्तर बांधा और वे मोतीलाल के पास मुंबई पहुंच गए. मुकेश ने पंडित जगन्नाथ प्रसाद से गायकी को निखारा.

(बाएं से) आशा भोंसलेे, मुकेश, लता मंगेशकर, किशोर कुमार और मन्ना डे

एक्टिंग और गायकी में साथ-साथ
साल 1941 की बात है. उन्हें एक फिल्म में काम करने का मौका मिला. फिल्म थी ‘निर्दोष’. उस जमाने में फिल्म के हीरो ही अपने गाने गाते थे. उन्होंने भी ऐसा ही किया. नलिनी जयवंत उनके साथ हीरोइन थी. उनका पहला गाना था, ‘दिल ही बुझा हुआ तो…’ फिर उन्होंने आदाब अर्ज (1943), आह (1953), माशूका (1953) और अनुराग (1956) में काम किया लेकिन फिल्में सफल नहीं सकीं. बतौर प्लेबैक सिंगर उन्होंने मोती लाल की फिल्म ‘पहली नजर (1945)’ से की. फिल्म के डायरेक्टर अनिल बिश्वास थे. इसमें उन्होंने गाना ‘दिल जलता है तो जलने दो…’ गाया.  इस गाने पर सहगल का पूरा असर था. कहा जाता है कि जब सहगल ने यह गाना सुना तो उन्होंने पूछा कि मैंने यह गाना कब गाया, मुझे याद नहीं. मुकेश को जब बताया गया कि उनकी आवाज सहगल से बहुत मिलती है और उन्हें कुछ हटकर गाना चाहिए. फिर उन्होंने अपना एक अलग स्टाइल बनाया.

एक धनवान की बेटी को बनाया हमसफर
मुकेश की प्रेम कहानी भी काफी दिलचस्प है. वे सरल त्रिवेदी रायचंद से इश्क करते थे. सरल के परिवार को ये संबंध पसंद नहीं था. वे धनी परिवार से थीं, जबकि मुकेश अभी संघर्ष ही कर रहे थे. लेकिन 1946 में दोनों ने विवाह कर लिया.

गायकी का सफर 
धीरे-धीरे गायकी में उन्होंने अपनी अलग पहचान बनानी शुरू कर दी. उन्होंने ‘अनोखी अदा (1948)’, ‘मेला (1948)’ और ‘अंदाज (1949)’ में दिलीप कुमार के लिए गाने गाए. उन्होंने यह गाने नौशाद के म्यूजिक डायेक्शन में गाए थे. लेकिन राज कपूर के साथ उनके सुरों ने कमाल ही कर दिया. उनके साथ मुकेश की पहली फिल्म ‘नीलकमल (1947)’ थी, जिसमें उन्होंने राज के लिए पहला गाना गाया. राज ने अपनी पहली फिल्म बतौर डायरेक्टर ‘आग’ बनाई थी और इसमें भी मुकेश को मौका दिया था. मुकेश का अपना पहला फिल्मफेयर पुरस्कार भी राज कपूर की फिल्म के लिए ही मिला. फिल्म थी, अनाड़ी (1959). और गाना थाः सब कुछ हमने सीखा…वे मनोज कुमार की आवाज बनकर भी प्रमुखता से आए. उन्हें 1974 में ‘रजनीगंधा’ फिल्म के कई बार यूं ही देखा है गाने के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया था.  उनका आखिरा गाना ‘सत्यम शिवम सुंदरम’ का ‘चंचल शीतल निर्मल कोमल’ था. जिसे उन्होंने जून 1976 में अमेरिका जाने से पहले रिकॉर्ड किया था.

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