सेना के सुस्त आधुनिकीकरण पर मोदी सरकार को फटकार
नई दिल्ली। एक संसदीय समिति ने मोदी सरकार को सेना के सुस्त आधुनिकीकरण के लिए फटकार लगाई है। समिति ने कहा है कि चीन और पाकिस्तान की तरफ से देश की सुरक्षा के लिए खड़े किए जा रहे मौजूदा खतरों के दौरान भी सेना के आधुनिकीकरण में सुस्ती बरती जा रही है। भारतीय सेना कई मोचरें पर कार्रवाई के लिए संसाधनों की कमी से जूझ रही है। इनमें सबमरीन, फाइटर जेट, हॉवित्जर्स और हेलीकॉप्टर्स की कमी के साथ नई जेनरेशन की असॉल्ट राइफल, मशीन गन, बुलेट प्रूफ जैकेट्स और हेल्मेट्स जैसे बेसिक संसाधनों की कमी भी शामिल हैं।
इसके बावजूद थल सेना, नौसेना और वायुसेना आधुनिकीकरण के लिए सरकार से रक्षा बजट में फंड नहीं हासिल कर पा रही हैं। वित्तीय वर्ष 2017-18 के लिए बजटीय प्रावधान प्रस्तावित जीडीपी का महज 1.56 फीसद है। 1962 के चीन युद्ध के बाद से यह न्यूनतम है। मेजर जनरल बीसी खंडूरी (रिटायर्ड) की अध्यक्षता वाली रक्षा की संसदीय समिति ने मंगलवार को सदन के समक्ष दो रिपोर्ट पेश की हैं।समिति ने मिलेट्री के आधुनिकीकरण के लिए जरूरत भर का फंड उपलब्ध नहीं कराने और रक्षा खरीदारी को फास्ट ट्रैक नहीं करने के लिए सरकार की आलोचना की है। इस वित्तीय वर्ष में थल सेना, नौसेना और वायुसेना को आधुनिकीकरण की उनकी मांग की तुलना में क्रमश: महज 60, 67 और 54 फीसद फंड उपलब्ध कराया गया है। कमेटी ने इस बात की आशंका और चिंता जताई है कि फंड की अनुपलब्धता का प्रतिकूल असर सेना के ऑपरेशंस पर पड़ सकता है।
कमेटी के मुताबिक रक्षा मंत्रालय द्वारा इस फंड को भी ठीक योजना बनाकर खर्च न कर पाना स्थिति को और भी बदतर बना रहा है। थलसेना के लिए 42,500 करोड़ रुपये मांगे गए थे लेकिन मिले केवल 25,254 करोड़ रुपये। इसी तरह नौसेना ने 51,065 करोड़ रुपये मांगे थे लेकिन उसे महज 37,841 करोड़ रुपये ही आवंटित किए गए। जबकि वायुसेना को इस वित्तीय वर्ष के लिए 92,496 करोड़ रुपये चाहिए थे। लेकिन उसे भी केवल 59,672 करोड़ रुपये मिले। फंड का उपयोग नहीं करना भी रक्षा मंत्रालय की योजनाओं में कमी की ओर इशारा कर रहा है। साथ ही फंड के उपयोग में लगातार असफल होने का परिणाम वित्त मंत्रालय की तरफ से बजट कटौती के रूप में भी देखने को मिल रहा है। वर्ष 2012 से 2017 के बीच यानी 12वीं पंचवर्षीय योजना में पहले चार सालों में 6,170 करोड़ रुपये खर्च ही नहीं किए जा सके।
भारतीय सेना के तीनों विंग संसाधनों की कमी से जूझ रहे हैं जिसका असर रक्षा तैयारियों पर भी पड़ रहा है। उदाहरण के लिए दो मोचरें पर सशक्त रहने के लिए वायुसेना को कम से कम 45 फाइटर स्क्वॉड्रन्स (हर एक में 18-21 जेट) की जरूरत है। फिलहाल वायुसेना के पास केवल 33 स्क्वॉड्रन्स मौजूद हैं। पुराने जेट्स के रिटायर होने की वजह से 2027 तक इनकी संख्या घटकर 19 और 2032 तक १६ रह जाएगी।
सरकार ने सितंबर 2016 में 59000 करोड़ रुपये में 36 राफेल फाइटर प्लेन का सौदा किया है। हालांकि यह सौदा भी वायुसेना की अलार्मिंग स्थिति को बेहतर बनाने के लिए पर्याप्त नहीं है। पैनल का कहना है कि पिछले वषरें में लगातार इस मुद्दे को उठाया जाता रहा है लेकिन अबतक कोई ठोस उपाय नहीं किए गए हैं। इसी तरह नेवी के पास सिर्फ 13 पारंपरिक डीजल-इलेक्टि्रक पनडुब्बियां हैं। इनके 17 से 32 साल पुराने होने की वजह से एक बार में संख्या बल की केवल आधी क्षमता का ही इस्तेमाल किया जा सकता है