कोरोना काल में उत्तराखण्ड सरकार का असमंजस
इंडिया वार्ता/देहरादून। पूरा देश कोविड-19 यानि कि कारोना वायरस से पीड़ित है और अपने-अपने हिसाब से इस वायरस से लड़ रहा है। उत्तरखण्ड सरकार ने बहुत शुरूआती समय में ही राज्य की सीमाएं सील करके एक सावधानी भरा कदम उठाया था और इस क्रम में उसने कुछ सफलता भी पाई। लेकिन हुआ इतना ही, सरकार के स्तर पर बहुत मुस्तैदी दिखाई देने लगी, लेकिन कई बार सरकार के अधिकारी असमंजस में ही दिखाई दिए।सरकार का असमंजस निजी स्वार्थों के चलते दिखाई दिया। पहले सरकार ने कहा कि स्कूल तीन महीने की फीस नहीं लेंगे, लेकिन जैसे ही निजी स्कूलों ने मुख्यमंत्री राहत कोष को एक छोटा सा नजराना प्रस्तुत किया, अगले ही दिन सरकार के सुर बदल गये और उसने अपना आदेश निरस्त कर दिया। अब यह कह दिया गया कि ऑन लाईन पढ़ाई कराने वाले स्कूलों को ट्यूशन फीस लेने का अधिकार है। इसलिए सभी निजी स्कूलों ने ऑन लाईन के नाम पर अपने बच्चों को होम वर्क देना शुरू कर दिया और फीस के नोटिस भी अभिभावकों को मैसेज किये जाने लगे। सरकार इस दिशा में कोई बयान अब नहीं दे रही है।अभी लखनऊ के एक विधायक और उनके सागिर्दों को उत्तराखण्ड में पिकनिक मनाने के लिए पास जारी कर दिया गया। मीडिया की खबरों और उ.प्र. सरकार के स्पष्टीकरण के बाद उन्हें रोका गया और वापिस अपने राज्य भेज दिया गया। लेकिन सवाल उठता है कि ऐसे समय में पास जारी कैसे हुआ वह भी पिकनिक के लिए।सरकार के पास इस समय में कोई ब्लूप्रिंट ऐसा नहीं जिससे इस बीमारी से लड़ा जा सके। केवल लॉकडाउन ही एक मात्र रास्ता दिखाई दे रहा है, लेकिन उसमें भी कई तरह की छूट दे दी गई। सरकार की स्वास्थ्य सेवाएं पहले ही कोमा में थी, उस पर कोरोना ने इस कोमा को और गम्भीर बना दिया है। लेकिन सरकार के स्तर पर मौज चल रही है। सरकार के अधिकारियों ने इस कोरोना काल में प्रमोशन आरम्भ कर दिये हैं। सरकार के पास अपने कर्मचारियों को वेतन देने के लिए पैसे नहीं है, इसके बावजूद प्रमोशन का गुल खिलाया जा रहा है। उत्तराखण्ड में ऐसा लगता है कि नौकरशाही पूरी तरह से बेलगाम हो चुकी है और सरकार मौन होकर उनका समर्थन करने में ही अपनी भलाई समझ रही है। पूरे राज्य में आम आदमी सरकार से दुखी है लेकिन चाटुकार सरकार को यह भरोसा दिलाने में कामयाब हैं कि सरकार बहुत अच्छा कार्य कर रही है। जैसे सावन के अंधे को हरा हरा ही दिखाई देता है। पुरानी कहावतें सच साबित हो रहीं हैं, लेकिन सरकार के कानों में जूं तक नहीं रेंग रही है। आज जबकि कठोर निर्णय लेने का समय था। सभी तरह के फिजूल खर्चें रोकने का समय था। तब सरकारी अधिकारी अपने वेतन वृद्धि और शाहबाजी के लिए सरकार को निर्णय लेने के लिए बाध्य कर रहे हैं। पूरे राज्य के हजारों लोग देश के विभिन्न शहरों में फंसे हुए हैं। उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। गुजरात से कई लोग बस किराये पर लेकर देहरादून पहुंच गये है लेकिन सरकार के स्तर पर कोई कारगर योजना दिखाई नहीं दे रही है। दिल्ली, नोएडा, गाजियाबाद, गुड़गांव आदि में हजारों श्रमिक अपने हालात पर आंसू बहा रहे हैं, लेकिन सरकार सिर्फ अधिकारियों को नियुक्त करती है, पर वह कोई समुचित कार्यवाही नहीं कर पाते हैं।
अभी भी समय है कि सरकार अपने स्तर से अन्य राज्यों में फंसे लोगों की सुध ले और अपने असमंजस से बाहर निकलकर कोई सार्थक कदम उठाए, अन्यथा समय बहुत क्रूर है। आज शान्त दिखाई देने वाले उत्तराखण्ड के जन सामान्य में जो रोष अन्दर ही अन्दर सुलग रहा है, वह कहीं ज्वालामुखी बनकर फट न जाए।