बाल कविता – कालू बन्दर
कालू बंदर है बहुत परेशान,
भारी गर्मी से वो होता हैरान।
बादल कभी – कभी है दिखते,
ना जाने फिर क्यों नही टिकते।
प्रभु से फिर करने लगा गुहार,
प्रभु कर दो बारिश की बौछार।
उमड़ – घुमड़ कर बादल आये,
कालू झूम-झूम कर नाचे गाये।
तन – मन कालू के हो गए तृप्त,
बारिश जंगल मे हुई जबरदस्त।
दूर हो गयी जंगल से गर्मी की मार,
कई दिन बरसे बादल बारम्बार।
नीरज त्यागी
ग़ाज़ियाबाद ( उत्तर प्रदेश ).
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65/5 लाल क्वार्टर राणा प्रताप स्कूल के सामने ग़ाज़ियाबाद उत्तर प्रदेश 201001