उच्च हिमालय में खिलखिला रहे ब्रह्मकमल
– मध्य रात्रि के बाद अपने पूरे यौवन पर होता है यह फूल
देहरादून। समुद्रतल से 12 हजार फीट से लेकर 15 हजार फीट तक उगने वाला देवपुष्प ब्रह्मकमल इन दिनों चमोली और रुद्रप्रयाग जिलों के उच्च हिमालयी क्षेत्र में छठा बिखेर रहा है। दुर्लभ प्रजाति का यह पुष्प अमूमन जून के आखिर में खिलना शुरू हो जाता है और सितंबर तक देखने को मिलता है। भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण, देहरादून के वरिष्ठ विज्ञानी डॉ. अंबरीष कुमार बताते हैं कि कुछ स्थानों पर अक्टूबर में भी ब्रह्मकमल को देखा जा सकता है। लेकिन, इस साल यह केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग और नंदा देवी बायोस्फीयर रिजर्व में बहुतायत में देखा जा रहा है। इसकी वजह लॉकडाउन में उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पर्यटकों की आवाजाही न होना भी है। इसे उत्तराखंड के राज्य पुष्प का दर्जा हासिल है।
ब्रह्मकमल को पवित्रता और शुभ का प्रतीक माना गया है। ब्रह्मकमल का अर्थ ही है ‘ब्रह्मा का कमल’। यह पुष्प भगवान शिव को भी अत्यंत प्रिय है। सावन में भक्त ब्रह्मकमल से ही भगवान शिव का अभिषेक करते हैं। यह फूल केदारनाथ और बदरीनाथ धाम में पूजा के लिए भी प्रयोग में लाया जाता है। ब्रह्मकमल का वैज्ञानिक नाम सोसेरिया ओबोवेलाटा है। सफेद रंग का यह फूल 15 से 50 सेमी ऊंचे पौधों पर वर्ष में केवल एक ही बार खिलता है, वह भी सूर्यास्त के बाद। मध्य रात्रि के बाद यह फूल अपने पूरे यौवन पर होता है। यह अत्यंत सुंदर और चमकते सितारे जैसे आकार का मादक सुगंध वाला पुष्प है।
मान्यता है कि रात को खिलते समय अगर इस पर किसी की नजर पड़ जाए तो उसके लिए यह बेहद शुभ होता है। ब्रह्मकमल स्वतरू उगने वाला फूल है और इसका विस्तार भी प्राकृतिक रूप से ही होता है। हालांकि, नंदा देवी बायोस्फीयर रिजर्व, केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग और बदरीनाथ वन प्रभाग में इसके संरक्षण के लिए कार्य हो रहा है। वन विभाग ट्रांसप्लांट के जरिये इसे ऐसे स्थानों पर रोप रहा है, जहां अभी इसका फैलाव नहीं है। इसके अलावा बीज से भी इसे उगाने की योजना है। केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग के प्रभागीय वनाधिकारी अमित कंवर बताते हैं केदारपुरी की पहाड़ी पर ध्यान गुफा के आसपास ब्रह्मकमल की वाटिका तैयार करने की योजना बनाई गई है। ताकि यात्री इसके दर्शनों से आनंदित हो सकें।