यूपी में भाजपा का चेहरा
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने 2019 के लोकसभा चुनाव से लगभग एक साल पहले ही उत्तर प्रदेश में नेतृत्व को लेकर एक बड़ा फैसला किया है। कहने को तो कहा जा सकता है कि 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद ही भाजपा ने गोरखपुर के तत्कालीन सांसद और पूर्वांचल के प्रभावशाली हिन्दू चेहरा माने जाने वाले योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाकर यह संदेश दे दिया था कि अब यहां का नेतृत्व कौन संभालेगा। उस समय भी नेतृत्व जरूर श्री योगी को मिला था लेकिन भाजपा का चेहरा श्री नरेन्द्र मोदी ही थे। श्री योगी के मुख्यमंत्री बनने के बाद सरकार का लगभग सवा साल पूरा हो चुका है और इस बीच यूपी में कई उथल-पुथल भी हुए हैं। गोरखपुर और फूलपुर संसदीय क्षेत्रों के उप चुनाव में भाजपा की पराजय के बाद पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने जिस तरह से प्रतिक्रिया जतायी थी उससे लगा कि श्री योगी को भी कठघरे में खड़ा किया जा सकता है लेकिन उनके बारे में कोई भी नकारात्मक बात सुनने में नहीं आयी। अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तरफ से सार्वजनिक रूप से कहा गया है कि यूपी मिशन-2019 में भाजपा योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ेगी। संघ का यह बहुत बड़ा फैसला है क्योंकि बिहार जैसे राज्य में जब नीतीश कुमार को लेकर जद (यू) नेताओं ने बयान दिया था तब भाजपा की तरफ से यही कहा गया कि चुनाव में श्री नरेन्द्र मोदी ही चेहरा होंगे। वहां श्री सुशील मोदी भाजपा के नेता हैं और सरकार में भी उप मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाल रहे हैं।उत्तर प्रदेश में राजनीति बहुत तेजी से बदली है। भाजपा ने जब 2014 में लोकसभा चुनाव लड़ा था तब पूर्वांचल की क्षेत्रीय पार्टी अपना दल से समझौता किया और उस समय श्री मोदी की प्रचण्ड लहर भी चल रही थी। नतीजा भाजपा के बेहद अनुकूल रहा। बसपा जैसी नम्बर दो की विपक्षी पार्टी का पूरी तरह से सफाया हो गया था। इसके बाद 2017 का विधानसभा चुनाव आया और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष एवं तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने राजनीति की दशा और दिशा को समझ लिया लेकिन उस समय वह परिस्थितियों के आगे मजबूर थे। उनके परिवार में जो घमासान छिड़ा हुआ था उसका प्रभाव तो पड़ना ही था लेकिन उसी समय से उन्होंने भाजपा के खिलाफ विपक्षी दलों की एकजुटता के महत्व को समझ लिया था। अखिलेश यादव ने कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। बसपा प्रमुख सुश्री मायावती तब तक गठबंधन के महत्व को नहीं समझ पायी थीं। इसका नतीजा यह हुआ कि भाजपा ने एक बार फिर बिखरे विपक्ष का फायदा उठाया और प्रचण्ड बहुमत से उसकी सरकार बन गयी। सपा और कांग्रेस की दोस्ती से
विधायक जुटाने में कोई फायदा नहीं हो पाया लेकिन सपा और बसपा के दूसरे स्थान पर रहने वाले प्रत्याशियों को देखकर सुश्री मायावती और अखिलेश यादव दोनों को यह आभास हो गया कि बिना एकजुटता के भाजपा का विजय रथ नहीं रोका जा सकता। इस बीच लगभग 12 राज्यों में भाजपा ने सरकार बना ली।
इधर योगी आदित्यनाथ अपने तरीके का रामराज्य चला रहे थे तो
उधर, अखिलेश यादव और सुश्री मायावती ने भाजपा को गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा के अतिप्रतिष्ठित उप चुनाव में घेरने का चक्रव्यूह बनाया। भाजपा सचमुच उस समय अति विश्वास में थी जैसा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा भी लेकिन कैराना के उपचुनाव में जब अखिलेश यादव ने चौधरी अजित सिंह के राष्ट्रीय लोकदल को बहुत ही चतुराई से अपने साथ जोड़ा और कांग्रेस ने भी अपना प्रत्याशी न उतारकर मोर्चे में शामिल होने का सबूत दे दिया, तब भाजपा को अपना चिंतन नये सिरे से करना पड़ रहा है। इस चिंतन में योगी आदित्यनाथ ही सबसे विश्वसनीय चेहरा नजर आते हैं। बताया जाता है कि गोरखपुर उप चुनाव में श्री योगी चाहते थे कि गोरखमठ से ही जुड़े किसी व्यक्ति को प्रत्याशी बनाया जाए लेकिन उस समय भाजपा नेतृत्व ने उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया था। अब यूपी के हालात देश के किसी भी राज्य की अपेक्षा भाजपा के लिए मुश्किल भरे हैं। पश्चिम बंगाल, ओडिशा (उड़ीसा), केरल और तमिलनाडु में भी भाजपा को उतनी कठिन लड़ाई का सामना नहीं करना पड़ेगा जितना उत्तर प्रदेश में।
बिहार जैसे राज्य में नीतीश कुमार अगर साथ छोड़ भी दें तब भी भाजपा को कोई परेशानी नहीं होगी क्योंकि जद(यू) और राजद अलग-अलग हो गये हैं। यूपी के बारे में तो पहले से ही कहा जाता था कि यहां के जातीय समीकरण जिस तरह के बन गये हैं उसमें सपा और बसपा ही एक साथ खड़े हो जाएं तो कोई उन्हें पराजित नहीं कर सकता। इस समय तो कांग्रेस और रालोद भी इनके साथ हैं।इसलिए लखनऊ से लेकर दिल्ली तक बैठकें करके मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश के राजनीतिक समीकरण पर ही विचार किया गया। संघ और भाजपा दोनों को मालूम है कि श्री नरेन्द्र मोदी ही पार्टी की नैया को पार लगा सकते हैं। भले ही मोदी की वह लहर इस समय नहीं है जैसी 2014 में थी लेकिन गुजरात में फिर से सरकार बनाने, असम, हिमाचल, मणिपुर में कांग्रेस से सत्ता छीनने और वामपंथियों के सबसे मजबूत गढ़ त्रिपुरा में भी भाजपा की सरकार बनाने का श्रेय नरेन्द्र मोदी को ही जाता है। श्री मोदी के चेहरे को भाजपा लम्बे समय तक बरकरार रखना चाहती है। उत्तर प्रदेश में श्री योगी को चेहरा बनाने का एक कारण यह भी हो सकता है। इसीलिए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने यूपी में मिशन-2019 की सफलता की जिम्मेदारी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कंधों पर डाल दी है। इसके लिए श्री योगी को खुलकर फैसले लेने की स्वतंत्रता भी मिली है। संघ ने उन्हें दलितों और पिछड़ां को साथ लेकर चलने की सलाह दी है इसका कारण यह कि सपा को जहां पिछड़े वर्ग की पार्टी कहा जाता है, वहीं बसपा को दलितों की पार्टी माना जाता है। अल्पसंख्यक मुसलमान इन दोनों के साथ जुड़े हैं। संघ ने विपक्ष की जातीय गणित की काट के लिए समग्र हिन्दुत्व की रणनीति बनायी है। राममंदिर के मुद्दे को जोरशोर से फिर उछाला जाने लगा है। विश्व हिन्दू परिषद के नव निर्वाचित अन्तरराष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु सदाशिव कोकजे के बाद मुख्यमंत्री योगी ने भी अयोध्या में राममंदिर मर्यादा के साथ बनाने की बात कही है। भाजपा के सौंपे दायित्व को श्री योगी ने संभाल लिया है।