फांसी से पहले जल्लाद मुजरिम के कान के पास आकर क्या कहता है?

मेरठ । शबनम मामले में फांसी की चर्चा एक बार फिर पूरे देश में हो रही है. इससे पहले निर्भया के गुनहगारों की सजा के वक्त लोगों के जहन में फांसी की सजा को लकेर कई सवाल जहन में आए थे. दरअसल, 1983 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के मुताबिक केवल रेयरेस्ट ऑफ द रेयरट के मामलों में ही सजा का प्रावधान है. शबनम की फांसी का वक्त भी बेहद करीब है. ऐसे में शबनम को फांसी देने की तैयारियों के बीच ये जानना और समझना बहुत जरूरी है कि भारत में फांसी देने के क्या नियम हैं. सजा मुकर्रर होने से लेकर डेथ वॉरंट जारी होने के बाद उस वक्त होता है जब जल्लाद मुजरिम को फांसी देता है. जल्लाद आखिरी वक्त में दोषी के कान के पास आकर जो कहता है उसके बारे में भी बहुत कम ही लोग जानते हैं।फांसी की सजा मुकर्रर होने के बाद डेथ वॉरंट जारी होता है. दया याचिका के माध्यम से फांसी पर रोक लगाने के लिए गुहार लगाई जाती है. दया याचिका खारिज होने के बाद डेथ वॉरंट जारी होता है, जिसमें फांसी की तारीख और समय तय होता है. फांसी दिए जाने की आगे की प्रक्रिया जेल मैनुअल के हिसाब से होती है. बिना नियमों के पालन किए फांसी नहीं दी जा सकती. डेथ वारंट जारी होने के बाद कैदी को फांसी की तारीख के बारे में इतल्ला दी जाती है. इतना ही नहीं जेल सुप्रीटेडेंट प्रशासन को भी जानकारी देते हैं।

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