भारत में सरकार छोड़ सब होगा प्राइवेट
अब यह व्यंग्य की बात नहीं रही कि भारत में सरकार को छोड़ कर हर चीज का निजीकरण हो जाएगा! केंद्र सरकार के पीयूष गोयल जैसे मंत्री कई बार कह चुके है कि, सरकार का काम कारोबार करना नहीं होता है। सवाल है कि सरकार का काम कारोबार करना नहीं होता है पर सेवा देना तो होता है? भारत एक लोक कल्याणकारी राज्य है और इसके बुनियादी उसूलों के मुताबिक लोगों को सम्मानपूर्वक जीवन जीने के लिए जिन चीजों की जरूरत होती है उन्हें मुहैया कराना सरकार की जिम्मेदारी है। रेलवे स्टेशन और रेलगाड़ियों से लेकर हवाईअड्डों, कंटेनर कॉर्पोरेशन, शिपिंग कॉर्पोरेशन, हाइवे परियोजनाओं, एअर इंडिया, भारत पेट्रोलियम तक सबका निजीकरण होने वाला है और हम विनिवेश की नहीं बल्कि असली निजीकरण की बात कर रहे हैं, जिसमें नियंत्रण करने वाले हाथ बदल जाएंगे। यह पिछली बार वाजपेयी सरकार में अरुण शौरी ने किया था। ऐसा लगता है कि नरेंद्र मोदी अंततः अपने इस विचार पर अमल करने जा रहे हैं कि बिजनेस सरकार का काम नहीं है।सरकार कारोबार से बाहर निकलने के बहाने सारी सेवाओं से बाहर निकलने जा रही है। लोक कल्याणकारी राज्य के तौर पर देश जो सेवाएं अपने नागरिकों को अब तक देता रहा है यह सरकार उन सेवाओं से बाहर निकल रही है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में बने अधिकार प्राप्त मंत्री समूह ने सरकारी विमानन कंपनी एयर इंडिया को बेचने के लिए टेंडर के मसौदा पत्र को मंजूरी पहले ही दे दी है। सरकार ने पहले भी इसे बेचना चाहा था पर तब खरीदार नहीं मिले थे सो, नियमों में कई बदलाव कर दिए गए। सरकार 76 फीसदी की बजाय सौ फीसदी हिस्सेदारी बेच रही है और साथ ही इसके संचालन के लिए सरकार ने हजारों करोड़ रुपए का जो कर्ज दिया था उसे बिक्री की शर्तों से हटा दिया गया है। यानी जो इसे खरीदेगा उसे वह कर्ज नहीं चुकाना होगा। इसके साथ ही सरकार ने रेलवे के निजीकरण की ओर भी ठोस कदम उठाए हैं। हालांकि सरकार कह रही है कि वह रेलवे का निजीकरण नहीं कर रही है पर असल में वह देश की सबसे बड़ी ट्रांसपोर्ट सेवा, जिसे भारत की लाइफ लाइन बोलते हैं और जो हर दिन दो करोड़ से ज्यादा यात्रियों को सेवा दे रही है उसे निजी हाथ में देने जा रही है। सरकार की ओर से ‘यात्री रेलगाड़ियों में निजी भागीदारी’ के लिए एक विचार पत्र जारी किया गया था, जिसे मंजूर कर लिया गया है। इसके मुताबिक सरकार एक सौ यात्रा रूट्स पर डेढ़ सौ निजी गाड़ियों को चलाने की अनुमति देने जा रही है। दिल्ली से लखनऊ बीच चलने वाली तेजस ट्रेन इसकी एक बानगी है।कुछ समय पहले वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 20 करोड़ के आर्थिक पैकेज के ऐलान के वक्त कई बेहद अहम आर्थिक सुधारों का ऐलान भी किया था। उन्होंने कहा था कि अब कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं होगा, जिसमें निजी क्षेत्र को काम करने का मौका नहीं मिलेगा। वित्त मंत्री के कहने का अर्थ साफ है, हर क्षेत्र का निजीकरण कर दिया जाएगा। उन्होंने जोर देकर कहा कि सरकार कुछ स्ट्रैटेजिक क्षेत्र चुनेगी, जिन्हें नोटिफाई किया जाएगा। इस क्षेत्र में सार्वजनिक कंपनी को काम करने का हक होगा। वे बनी रहेंगी और पहले की तरह ही अहम भूमिका निभाती रहेंगी। लेकिन इस क्षेत्र में भी निजी क्षेत्र को काम करने का मौका मिलेगा, यानी सरकारी क्षेत्र का एकाधिकार खत्म हो जाएगा। उन्होंने कहा कि इन नोटिफाइड स्ट्रैटेजिक क्षेत्रों में एक या अधिकतम दो बड़ी सरकारी कंपनियां रहेंगी। यदि अधिक कंपनियां हुईं तो उनका विलय कर दिया जाएगा। इसके अलावा निजी क्षेत्र की कंपनी काम करेगी। इसके अलावा तमाम क्षेत्रों में निजी कंपनियां होंगी वे ही काम करेंगी। उन्हें प्रोत्साहित किया जाएगा और सरकारी कंपनियां उन क्षेत्रों में काम नहीं करेंगी। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि केंद्र शासित प्रदेशों में बिजली कंपनियों का निजीकरण होगा। इससे बिजली उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा। बिजली वितरण का निजीकरण होने से उपभोक्ताओं को बेहतर सेवा मिलेगी। उन्होंने कहा यह पायलट परियोजना होगी। इसके सफल रहने पर बाकी राज्य भी इसे लागू करेंगे। इससे बिजली क्षेत्र में स्थिरता आएगी। बिजली उत्पादन कंपनियों को समय पर भुगतान हो सकेगा। साथ ही सब्सिडी डीबीटी के माध्यम से दी जाएगी। सरकार के इस कदम से बिजली कंपनियों के साथ ग्राहकों को भी फायदा हो सकता है।मोदी सरकार का हर सेक्टर में ही निजीकरण पर जोर है। भारत पेट्रोलियम, एयर इंडिया और बिजली के बाद बैंकिंग सेक्टर में भी मोदी सरकार बड़े पैमाने पर निजीकरण करने की तैयारी कर रही है। इकनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक सरकार के थिंक टैंक नीति आयोग ने इस तरह का प्रस्ताव पेश किया है, जिस पर सरकार की ओर से विचार किया जा रहा है। दरअसल सरकार का मानना है कि लंबे समय तक टैक्सपेयर्स की रकम को बैंकों को बेलआउट पैकेज देने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। बता दें कि 1969 में देश में बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया था, लेकिन मोदी सरकार का शुरू से ही सरकारी कंपनियों के निजीकरण पर जोर रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक पंजाब ऐंड सिंध बैंक, बैंक ऑफ महाराष्ट्र और इंडियन ओवरसीज बैंक के निजीकरण से इस प्रक्रिया की शुरुआत की जा सकती है। बीते कुछ सालों में कई सरकारी बैंकों का आपस में विलय हुआ था, जिनमें ये तीनों ही बैंक शामिल नहीं थे। ऐसे में इनके निजीकरण से ही शुरुआत की जा सकती है। कहा जा रहा है कि नीति आयोग ने सरकार को सलाह दी है कि बैंकिंग सेक्टर में लंबे समय के लिए निजी निवेश को मंजूरी दी जानी चाहिए। यही नहीं आयोग ने देश के बड़े औद्योगिक घरानों को भी बैंकिंग सेक्टर में एंट्री करने की अनुमति देने का सुझाव दिया है। हालांकि ऐसे कारोबारी घरानों को लेकर यह प्रावधान होगा कि वे संबंधित बैंक से अपने समूह की कंपनियों को कर्ज नहीं देंगे। बता दें कि मोदी सरकार ने कई बैंकां का आपस में विलय कर दिया है। बीते तीन सालों में सरकारी बैंकों की संख्या 27 से 12 हो गई है। फिलहाल देश में सिर्फ 12 सरकारी बैंक ही रह गए हैं।बैंकां का राष्ट्रीयकरण सदियों से भारतीय किसान का खून चूस रही महाजनी सभ्यता पर एक मारक चोट थी। 1969 में हुए 14 बड़े बैंकों के राष्ट्रीयकरण ने गरीब को सहारा दिया लेकिन नब्बे के बाद धीरे-धीरे इस नीति को पलट दिया गया। बैंक गरीबों पर सख्त होने लगे और धन्नासेठों के लिए परम उदार। महासेठों ने बेहिसाब कर्ज लिया और पी गए। पिछले कुछ वर्षों में यह प्रक्रिया तेजतर होती चली गई। माल्या, ललित, नीरव इसी प्रक्रिया की देन हैं। जाहिर है फिर पटरी पर लाने की जरूरत है। लेकिन लगता ऐसा है कि घोटालों का नाम लेकर बैंकां के पूर्ण निजीकरण की योजना बनाई जा रही है। अब तक का हर अनुभव बताता है कि निजीकरण से घोटाले नहीं रुकते। बस कागजी रूप से वैध हो जाते हैं क्योंकि विधि विधान ही निजी हाथों में चला जाता है। असलियत में घोटालों का आकार विकराल हो जाता है। निजी अस्पताल और स्कूल इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। वे खुले हाथों पब्लिक को लूट रहे हैं लेकिन उनकी लूट कानूनी समझी जाती है, इसलिए घोटाले की श्रेणी में आती ही नहीं। बैंकों के निजीकरण के बाद भी यही होगा। घोटाले पकड़े नहीं जाएंगे क्योंकि उन्हें वैध रूप दे दिया जाएगा। लूट विकराल रूप से और बढ़ जाएगी जो आखिर आपके खून पसीने की कमाई की ही होगी। किसान के पास डूबते को जो तिनके का एक सहारा है, वह भी छिन जाएगा। बैंको का निजीकरण राष्ट्र के निजीकरण की प्रक्रिया की आखिरी कड़ी होगी। देश की गर्दन पर एक प्रतिशत थैलीशाहों का शिकंजा पूरी तरह कस जाएगा। हो सके तो बचिए। ऐसा मत होने दीजिए। (हिफी)