हरीश रावत क्यों हारे दोनों सीट, त्रिवेन्द्र रावत को क्या करना होगा 2022 में विधायक बनने के लिए

हरीश रावत को कांग्रेस को हारने के कारणों के आत्मन्थन करने की जरूरत है तो वहीं वर्तमान मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत को बीजेपी को उत्तराखंड में मिले प्रचण्ड बहुमत से जीतने के कारणों को जानने की जरूरत है। अगर दोनों रावतों ने तुरन्त ही जल्दी निर्णय नही लिए तो आने वाले विधान सभा चुनाव 2022 में निराशा ही हाथ लगेगी , 2019 में लोकसभा चुनाव के साथ ही विधान सभा चुनाव हों सकते हैं तो ये भी सम्भव है कि उत्तराखंड के विधान सभा चुनाव भी 2019 में ही हो जाएँ , जैंसे केंद्र सरकार के विचार में है कि पूरे देश में लोकसभा और राज्यों के विधान सभा के चुनाव एक साथ करवाये जाएं।

पूर्व सीएम हरीश रावत ने अपने मुख्यमंत्री काल में जो निर्णय लिए वो निर्णय ही उनकी हार के कारण बने जैंसे अपनों से ज्यादा भरोसा दूसरों पर किया गया जिनको उत्तराखण्ड के विकास से कोई लेना देना नही था, इस बात को हरीश रावत मार्च 2016 में हुए घटनाक्रम के बाद भी नही समझ पाये और अपनी राज्य विरोधी नीतियों को लेकर चलते रहे। मसलन अपने गृह क्षेत्र अल्मोड़ा व पिथौरागढ़ की उपेक्षा कर मैदानी क्षेत्र में चुनाव लड़ने जाना, जिस अल्मोड़ा पिथौरागढ़ ने उनको शून्य से शिखर तक पंहुचाया उसकी ही उपेक्षा कर दी और हरिद्वार ऊधमसिंह नगर तक अपने को सीमीत कर दिया। यह बात पहाड़ की जनता के समझ में इस तरह आई की हरीश रावत अब पहाड़ का नही रहे, वह तो मैदानी क्षेत्र के विकास पर ही ध्यान दे रहे हैं इसलिए अपना वोट बीजेपी को देने में ही फायदा है , दूसरा मैदानी सीटों (हरिद्वार ग्रामीण व किच्छा) पर उनके विपक्षियों द्वारा यह प्रचार किया गया कि हरीश रावत ने अपने गृह क्षेत्र कुमाऊँ में अपने विधायक कार्यकाल में कोई विकास कार्य नही किए, इसलिए हार की डर के वजह से मैदान में आकर चुनाव लड़ रहे हैं , जो हरीश रावत के दोनों सीटों पर हारने का कारण भी रहा। इसी तरह के कई गलत निर्णयों को लेकर और अति आत्मविश्वास के कारण कांग्रेस उत्तराखंड में 11 सीटों पर सिमट गयी और खुद सीएम अपने चुनाव भी हार गए।
बीजेपी को प्रचण्ड बहुमत मिल गया त्रिवेन्द्र रावत के हाथों में सीएम की कमान आ गयी। अब देखने वाली बात होगी की त्रिवेन्द्र रावत दूसरे रावत से कुछ हटकर काम करते हैं कि उन्ही के ढ़र्रे को आगे बढ़ाते हैं , लम्बे समय तक अगर राज्य की बागडोर सँभालनी है तो विकास के नए आयाम स्थापित करने होंगे , नियुक्तियों में पारदर्शिता लानी होगी भारी भरकम खर्चे का बोझ राज्य पर नही डालने होंगे। समाज कल्याण के माध्यम से चलाई जाने वाली योजनाओं को बन्द करके रोजगार के अवसर पैदा करने होने। अपने कार्यकर्ताओं को आवश्यकता से ज्यादा लालबत्ती नही बांटनी होंगी।
पीएम मोदी का मन्त्र:
*न फ्री में कुछ दूंगा न फ्री में कुछ लूंगा लेकिन रोजगार के इतने साधन पैदा कर दूंगा की हरेक हाथ को काम मिल जाएगा* की नीती प्रमुखता से लागू करनी होगी.

10 पर्वतीय जनपदों में रोजगार के साधन प्राथमिकता के आधार पर तैयार करने होंगे। तभी त्रिवेन्द्र रावत लम्बी रेस जीत पाएंगे ।

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