संविधान में बसी बाबा साहेब की आत्मा

एक अजीब सा चलन चल पड़ा है जिसमें डॉ. भीमराव अंबेडकर की जीवन निष्ठाओं के विरोध में हर बात अंबेडकर समर्थन के नाम पर बढ़ाई जा रही है। अंबेडकर संविधान के निर्माता और विषमता के विरोधी थे। लेकिन जो संविधान के विरुद्ध जिहादी तत्वों का समर्थन करते हैं और खुले आम न्यायपालिका तथा न्यायाधीशों पर अपमानजनक शब्द प्रहार करते हैं, वे अंबेडकर का बोर्ड लगा कर जिहादी दलित वामपंथी गठजोड़ का वह जहर फैला रहे हैं। जिनसे सबसे ज्यादा आहत यदि कोई हो रहा है तो वह संविधान में बसी बाबा साहेब की आत्मा है।बाबा साहेब अंबेडकर जीवन भर जातिभेद के विरुद्ध लड़ते रहे, सामाजिक समरसता के लिए काम करते रहे, उनके जीवन का ध्येय समाज को तोड़ना और विखंडित करना नहीं बल्कि विषमता की मानसिकता बदल कर देश और समाज में परिवर्तन लाना था। वह परिवर्तन सबको साथ लेकर ही संभव था। उन्होंने हिंदुओं के पाखंड और दोहरेपन पर कस कर प्रहार किया लेकिन हिन्दू समाज की आत्मीयता के साथ देश के सभी वर्गों को साथ जोड़े भी रखा। उनके लिए तो यह कल्पना ही नहीं हो सकती थी कि उनके नाम पर कुछ लोग देश तोड़ने वाले आतंकवादी जिहादी तत्वों के साथ देंगे तथा अंबेडकर जिन्दाबाद के खोखले नारों की हवा में भारत को बर्बाद करेंगे, ऐसे शब्द भी बोलेंगे। वास्तविकता यह है कि अगर अंबेडकर होते तो अब तक कश्मीर से धारा 370 समाप्त करने का सर्वस्वीकृत वातावरण भी बना दिया होता।

बाबा साहेब अंबेडकर की समरसता में राष्ट्रीयता सर्वप्रमुख थी। उन्होंने बौद्ध मत अंगीकार करने से पहले देश के सभी मतों-मतांतरों का गहन अध्ययन और विश्लेषण किया था। उनके पास ईसाई और मुस्लिम समाज के प्रमुख नेता अपने-अपने मतों की श्रेष्ठता सिद्ध करते हुए पहुंचे थे और हरसंभव प्रयास कर उन्हें इस बात के लिए राजी करना चाहा था कि वे ईसाई या इस्लाम मत को स्वीकार कर लें।अंततः अंबेडकर ने जिस भावना से बौद्ध मत अंगीकार किया वह भारत भारती के प्रति उनकी अनन्य निष्ठा का ही परिचायक था। अपने लाखों अनुयायियों के साथ उन्होंने बौद्ध मत स्वीकार करने के बाद भी जब हिंदू कोड़ बिल का निर्माण किया गया, जिसे हिंदू समाज के लिए सुधारवादी एवं क्रांतिकारी विधेयक माना गया था, तो उसमें उन्होंने नवबौद्धों को शामिल किया था।

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