‘देहरादूनी’ दिखने में सुंदर, स्वाद में लाजवाब; पर गर्मी से बेहाल
देहरादून : दिखने में जितनी सुंदर, स्वाद में उतनी ही लाजवाब। यही तो है देहरादून की पहचान में शुमार रोज सेंटेड लीची (देहरादूनी) की खासियत। ये बात अलग है कि बदलते वक्त की मार देहरादूनी पर भी पड़ी है। शहरीकरण की अंधी दौड़ में क्षेत्रफल पहले की अपेक्षा बेहद घट गया है। अब जो बाग बचे हैं, वे मौसम की मार से बेजार हैं।
वर्तमान में भी जिस तरह से पारा उछाल भर रहा है, उससे लीची की गुणवत्ता और उत्पादन प्रभावित होने की आशंका से बागवानों के माथे पर चिंता की लकीरें पड़ने लगी हैं। वजह ये कि हाल में अंधड़-ओलावृष्टि से लीची को पहले ही काफी नुकसान हो चुका है।
आमतौर पर लीची के लिए तापमान 35 डिग्री सेल्सियस तक और वातावरण में आर्द्रता 60 फीसद से अधिक होनी चाहिए।
इस लिहाज से देखें तो दून में इन दिनों पारा 37 से 40 डिग्री तक पहुंच रहा है। ऐसे में नमी घटने और फिजां में गर्माहट घुलने से लीची के फटने और गिरने की आशंका बढ़ जाती है। जिला उद्यान अधिकारी एसके श्रीवास्तव बताते हैं कि फल अब पकने की ओर बढ़ रहा है और जून के पहले हफ्ते तक सुर्ख रोज सेंटेड लीची बाजार में आने लगेगी।
श्रीवास्तव के मुताबिक लीची के लिए यह वक्त बेहद अहम है। नमी बनाए रखने के लिए लीची के पेड़ों पर छिड़काव करने के साथ ही जड़ों को पानी दिया जाना चाहिए। पानी में बोरान भी डाला जाना चाहिए, ताकि लीची फटे नहीं और मिठास भी बढ़ जाए। उन्होंने बताया जिले में कलकतिया और बेदाना प्रजातियों के पेड़ भी हैं।
लीची का क्षेत्रफल (हेक्टेयर में)
डोईवाला———–146.86
रायपुर—————50.48
सहसपुर————-63.92
विकासनगर———85.31
कालसी—————25
चकराता—————2.43
इतिहास के पन्नों में दून की लीची
लीची की खेती दून में 1890 से शुरू हुई। हालांकि, शुरुआत में लोगों को लीची की खेती नहीं भायी, लेकिन 1940 के बाद से किसानों का रुख लीची की ओर बढ़ा। 1970 आते-आते देहरादून लीची का प्रमुख उत्पादक बन गया। तब डालनवाला, माजरा, वसंत विहार, कौलागढ़, राजपुर रोड, चकराता रोड, रायपुर रोड समेत अन्य क्षेत्रों में करीब चार हजार हेक्टेयर में लीची के बगीचे थे। अब दून से बगीचे लगभग पूरी तरह गायब हो चुके हैं। अब बस ग्रामीण क्षेत्रों में ही बगीचे देखने को मिलते हैं और क्षेत्रफल चार हजार हेक्टेयर से घटकर 374 हेक्टेयर पर आ गया है।