जिस प्रत्याशी का पार्टी ने काटा टिकट, उसको चुनाव आयोग ने दिया पार्टी सिंबल
इलाहाबाद। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में आचार संहिता के फेर में फंसते प्रत्याशियों की खबर आपने खूब पढीं होंगी लेकिन यहां मामला उल्टा है। आयोग के नियम के चलते एक घोषित प्रत्याशी निर्दल हो गया और निर्दल हो चुके प्रत्याशी को नियम ने राजनीतिक दल का चिन्ह देकर प्रत्याशी बना दिया।
मामला इलाहाबाद के प्रतापपुर विधानसभा सीट का है। यह सीट भाजपा- अपना दल गठबंधन के तहत अपना दल को मिली है। यहां से पूर्व में अपना दल ने करन सिंह को टिकट दिया था। बाद में करन का टिकट काटकर बृजेश पाण्डेय को प्रत्याशी घोषित कर दिया गया। जब चुनाव चिन्ह आवंटित हुआ तो करन को अपना दल का सिंबल कप प्लेट मिला। जबकि घोषित प्रत्याशी बृजेश को आयोग ने निर्दलीय घोषित कर चुनाव चिन्ह बैट दे दिया। इससे बृजेश पाण्डेय खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं तो दूसरी ओर करन गुट में जश्न का माहौल है ।
कैसे हुआ यह खेल
दरअसल अपना दल ने करन सिंह को प्रतापपुर सीट से प्रत्याशी घोषित किया लेकिन बाद में टिकट काट कर बृजेश पाण्डेय को टिकट दे दिया। अनुप्रिया पटेल के पति के नजदीकी करन सिंह ने ऊपर से मिले आदेश को देखते हुये अपना नामांकन कर दिया। आखिरी दिन बृजेश पाण्डेय ने आधिकारिक तौर पर भाजपा-अद गठबंधन प्रत्याशी के तौर पर नामंकन किया। जब चुनाव चिन्ह आवंटित होने को हुआ तो आयोग के रिटर्निग अफसर भी अचरज में फंस गये क्योंकि एक दल के दो प्रत्याशी एक ही चिन्ह पाने के लिए अड़े हुये थे। रिटर्निग अफसर के दफ्तर में ऊहापोह की स्थिति खड़ी हो गई। हर पार्टी द्वारा अपने प्रत्याशी को फार्म ए और बी दिया जाता है। जिससे अधिकारी दल अथवा निर्दल का फैसला करते हैं। लेकिन यहां तो ड्रामा बढना था। रिटर्निग अफसर के समक्ष ए व बी फार्म गायब हो जाने का तर्क रखा गया। दफ्तर में रिटर्निग अफसर के सामने ही दोनों पक्षों की बहस शुरू हुई। दोनो ओर से वकीलों ने भी दलील दी।
फिर नियम ने निकाला हल
जब दलील वकील कोई काम न आया तो आयोग ने निर्वाचन प्रतीक आरक्षण के नियमावली 1968 तलब की। जिसके पैरा 13 (क) में दिये गये नियम में कहा गया है कि अगर किसी पार्टी से मिले पत्र में कोई गलती नहीं है और वह नामांकन कर चुका है तो पार्टी को जारी सिंबल उसे दिया जाये। दो प्रत्याशी घोषित होने की दशा में पहले नामांकन करने वाले प्रत्याशी को ही आधिकारिक प्रत्याशी माना जाये और दूसरे प्रत्याशी को मिले पत्र में इस बात का जिक्र हो कि पार्टी द्वारा पहले दिया गया पत्र गलत अथवा रद्द किया गया है ।
नियमावली का मिला लाभ
करन सिंह को इस नियमावली की जानकारी हो गई थी। जिसका फायदा उठाने के लिये करन ने पहले ही नामांकन कर दिया। जबकि अनुप्रिया के पति का नजदीकी होने का भी फायदा मिला वह खुद दिल्ली से आए हुए थे और नामांकन के बाद वापस लौट गए। माना जा रहा है कि अब बृजेश पाण्डेय अपना दल से बगावत करेंगे और करन के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे।
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Source: hindi.oneindia.com