चुनाव आयोग ने संसदीय पैनल से कहा : हम चुनावों में सरकारी वित्तपोषण का समर्थन नहीं करते

नई दिल्ली: चुनाव आयोग ने एक संसदीय समिति से कहा है कि वह चुनावों में सरकारी वित्तपोषण का समर्थन नहीं करता. आयोग ने कहा कि वह चाहता है कि राजनीतिक दलों द्वारा जिस तरह से धन खर्च किया जाता है, उसमें ‘भारी’ सुधार हों. चुनावों में सरकारी वित्तपोषण का अर्थ है कि सरकार द्वारा राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने के लिए धन उपलब्ध करवाया जाए. जबकि मौजूदा व्यवस्था यह है कि इस काम में निजी या पार्टी फंड का इस्तेमाल किया जाता है.

चुनाव आयोग ने विधि एवं कार्मिक मामलों पर संसद की स्थायी समिति के समक्ष दिए लिखित अभ्यावेदन में कहा, ‘‘चुनाव आयोग सरकारी धन के इस्तेमाल के पक्ष में नहीं है क्योंकि तब राज्य सरकार की ओर से उपलब्ध करवाए गए धन से इतर उम्मीदवारों या अन्य के खर्च पर रोक लगना संभव नहीं होगा.’’ इसमें कहा गया, ‘‘चुनाव आयोग का मानना है कि असल मुद्दों से निपटने के लिए राजनीतिक दलों द्वारा लिए जाने वाले धन से जुड़े प्रावधानों में और इस धन को खर्च किए जाने के तरीके में बदलाव किए जाने की जरूरत है ताकि इस मामले में पूर्ण पारदर्शिता आ सके.’’ यह समिति ईवीएम, पेपर ट्रायल मशीनों और चुनावी सुधारों के मुद्दे की जांच कर रही है.

शुक्रवार को समिति ने चुनाव आयोग और कानून मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ चुनावी सुधारों के मुद्दे पर चर्चा की थी. चुनाव आयोग ने 30 मार्च 2015 की बैठक से पहले के विमर्श में कहा था कि मीडिया विज्ञापनों और रैलियों के रूप में किए जाने वाले चुनाव प्रचार में आने वाले भारी खर्च को ध्यान में रखा जाए तो राजनीति में लगाया जाने वाला ‘‘अपार धन’’ चिंता का विषय है.

चुनाव आयोग के विमर्श पत्र में कहा गया, ‘‘यदि अमीर लोग और कॉरपोरेट किसी राजनीतिक दल या उम्मीदवार को अपनी बात सुनवाने के लिए उन्हें धन देते हैं, तो इससे लोकतंत्र के मूल सिद्धांत कमजोर पड़ते हैं और आर्थिक असमानता से राजनीतिक असमानता पैदा हो जाती है.’’

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