खतरों को भापे,कही हो ना जाये शिकार
मस्तिष्क के किसी भाग में जब खून का दौरा अचानक बंद हो जाता है या रुक जाता है तो मस्तिष्क का वह हिस्सा काम करना बंद कर देता है। आघात की गंभीरता इस बात पर निर्भर करती है कि मस्तिष्क का वह विशेष हिस्सा कितना बड़ा है तथा कितने समय के लिए खून का दौरा रुका रहा।
पिछले दिनों अनिल के दादाजी जिनकी आयु लगभग 63 वर्ष है, को ब्रेन स्ट्रोक हुआ। स्ट्रोक होते ही उनका शरीर लगभग निर्जीव-सा हो गया, उनके लकवा खाए अंगों की चेतना जाती रही। वे अपने शरीर को अपनी मर्जी से हिलाडुला भी नहीं सकते। हालांकि उनका इलाज अब भी चल रहा है परन्तु डॉक्टरों के अनुसार उनमें एक सीमा तक ही सुधार होगा।
मस्तिष्क के किसी भाग में जब खून का दौरा अचानक बंद हो जाता है या रुक जाता है तो मस्तिष्क का वह हिस्सा काम करना बंद कर देता है। आघात की गंभीरता इस बात पर निर्भर करती है कि मस्तिष्क का वह विशेष हिस्सा कितना बड़ा है तथा कितने समय के लिए खून का दौरा रुका रहा। आघात से मस्तिष्क के उस विशेष हिस्से के न्यूरान नष्ट हो जाते हैं और वहां सूजन आ जाती है और वह काम करना बंद कर देता है। इसके परिणाम स्वरूप मस्तिष्क का वह हिस्सा शरीर के जिन भागों का नियन्त्रण करता था वे निर्जीव हो जाते हैं, उनकी क्रिया करने की शक्ति खत्म हो जाती है। इस स्थिति को पक्षाघात कहते हैं।
कई कारण ऐसे हैं जिनसे मस्तिष्क में खून के दौरे में रुकावट आ जाती है जैसे मस्तिष्क की किसी संकरी हो चुकी धमनी में रक्त का थक्का फंस जाना। यदि धमनी फट जाए और उससे खून मस्तिष्क में भीतर ही बिखरने लगे तो भी ब्रेन स्ट्रोक हो सकता है। ऐसा भी हो सकता है कि धमनियां पूरी तरह स्वस्थ हों और शरीर में किसी दूसरे भाग में जमे खून का कतरा आकर धमनी में खून के दौरे में रुकावट पैदा कर दे, इससे भी आघात हो सकता है। जब आघात किसी संकरी धमनी में खून का थक्का फंसने से होता है तो उसे थ्रॉम्बोटिक स्ट्रोक कहते हैं। यह आघात प्रायः प्रातःकाल में होता है। प्रायः रोगी की आंख खुलने से पहले ही वह लकवाग्रस्त हो चुका होता है। शुरुआती एक−दो दिन में लकवा बढ़ भी सकता है। इस दौरान रोगी बेहोश हो सकता है। होश में होने पर भी रोगी पूरी तरह निष्क्रिय रहता है।