उत्तराखंड में पहली बार तैयार किए जा रहा है सेब का क्लोन
नई टिहरी, [अनुराग उनियाल]: अब सेब के पौधे लगाने को बीज और कलम पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। वानिकी महाविद्यालय रानीचौरी में पहली बार सेब को क्लोनिंग के जरिए उगाने का प्रयोग किया जा रहा है। टिश्यू कल्चर विधि से महाविद्यालय की प्रयोगशाला में सेब के 3000 पौधे तैयार किए गए हैं। प्रदेश में अपनी तरह का यह पहला प्रयोग है। अब तक कलम उगाकर सेब के पौधे तैयार किए जाते थे।
वानिकी महाविद्यालय रानीचौरी अब क्लोनिंग के तहत सेब के पौधे तैयार करेगा। उत्तराखंड में पहली बार इस तरह से सेब के पौधे तैयार किए जा रहे हैं। अभी तक कलम रोपकर ही सेब के पौधे तैयार किए जाते थे, लेकिन अब महाविद्यालय ने टिश्यू कल्चर विधि से सेब के तीन हजार पौधे तैयार कर दिए हैं। प्रयोगशाला में रसायनों की मदद से यह नर्सरी तैयार की गई है।
इस विधि से हिमाचल प्रदेश का देश-दुनिया में प्रसिद्ध एम-11 डेलिशियस सेब के पेड़ से पत्ती और जड़ों के सैंपल लेकर जार में पौधे बनाने की शुरुआत की गई। इसके लिए मिट्टी में मिलने वाले पोषक तत्व निश्चित तापमान पर रसायन के रूप में जार में रखे गए। प्रयोग सफल रहा और पौधों में जड़ निकलनी शुरू हो गई हैं। पौधे डॉ. तेजपाल बिष्ट और देवप्रकाश कोठारी की देखरेख में तैयार हो रहे हैं।
हम पहली बार टिश्यू कल्चर से उगा रहे हैं सेब के पौधे
इस संबंध में वानिकी महाविद्यालय, रानीचौरी (टिहरी गढ़वाल) के डीन प्रो. सीएम शर्मा का कहना है कि हम पहली बार टिश्यू कल्चर से सेब के पौधे उगा रहे हैं। यह प्रयोग अभी तक सफल रहा है। तीन हजार पौधे तैयार हो गए हैं, जिन्हें नर्सरी में रोपित किया जाएगा। कुछ समय बाद इन्हें सेब लोगों में वितरित किया जाएगा।
सेब उगाने का परंपरागत तरीका
पहले सेब का बीज बोया जाता है। जब पौधा तैयार हो जाता है, तब अच्छी प्रजाति के सेब की कलम उसमें लगाई जाती है। एक साल में पौधा तैयार होने के बाद उसे खेतों में लगाया जाता है।
नई तकनीक से फायदा
-सेब के पेड़ पर बीमारी कम लगेगी।
-बीमारी लगने पर उसे आसानी से दूर किया जा सकेगा।
-अच्छी पैदावार मिलेगी।