अगस्ता वेस्टलैंड घोटाला: इटली कोर्ट ने दो आरोपियों को किया बरी, कहा-नहीं हुआ भ्रष्‍टाचार, CBI बोली- केस पर कोई असर नहीं होगा

मिलान/नई दिल्‍ली: अगस्ता वेस्टलैंड घोटाला केस में इटली की एक अदालत ने रक्षा और विमानन कंपनी फिनमेकेनिका के पूर्व अध्यक्ष गियूसेपे ओरसी को कथित तौर पर घूस के आरोपों से बरी कर दिया है. यह मामला भारत सरकार को 12 अगस्ता वेस्टलैंड हेलिकॉप्टर की बिक्री के 3600 करोड़ रुपये के वीवीआईपी हेलिकॉप्टर सौदे में कथित तौर पर घूस देने के आरोप थे. इटली की अपील कोर्ट ने कहा है कि इस मामले में आरोपियों के खिलाफ भ्रष्‍टाचार के पर्याप्‍त सबूत नहीं है. वहीं सीबीआई के वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा है कि फिनमेकानिका और अगस्ता वेस्टलैंड के पूर्व शीर्ष अधिकारियों गियूसेपे ओरसी और ब्रूनो स्पेगनोलिनी को बरी किये जाने से एजेंसी के मामले पर कोई असर नहीं होगा, क्योंकि उसका मामला मजबूत साक्ष्यों के साथ स्वतंत्र जांच पर आधारित है.

ओरसी को 2014 में गिरफ्तार किया गया था और उन्होंने एयरोस्पेस ग्रुप के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के पद से इस्तीफा दे दिया. बाद में समूह का नाम लियोनार्दो कर दिया गया. सौदा फंसने के वक्त ओरसी अगस्ता वेस्टलैंड का नेतृत्व कर रहे थे और उनपर घूस देने में संलिप्तता का संदेह था.
फर्जी बही-खाते और भ्रष्टाचार के लिए उन्हें साढ़े चार साल जेल की सजा सुनायी गयी थी. इतालवी समाचार एजेंसी एएनएसए के मुताबिक, सहायक कंपनी अगस्तावेस्टलैंड के पूर्व सीईओ ब्रूनो स्पागनोलिनी को भी बरी कर दिया गया. उन्हें इसी आरोप में चार साल जेल की सजा सुनायी गयी थी.
सीबीआई ने कहा कि हमारा मामला बहुत मजबूत सूत्रों ने कहा कि इटली की अदालतों में मामला इतालवी अधिकारियों द्वारा एकत्रित सबूतों पर आधारित है जबकि सीबीआई ने मामले में पूरी तरह स्वतंत्र जांच की है. उन्होंने कहा कि मिलान अदालत के आदेश के बाद भी इटली के अधिकारियों के पास अपील करने का एक विकल्प है. सीबीआई के प्रवक्ता अभिषेक दयाल ने कहा, ‘‘हमने पूरी तरह अलग जांच की है। हमारा मामला बहुत मजबूत है.’’
भारत को 12 लक्जरी हेलिकॉप्टर की बिक्री के मामले में 2012 में शुरू की गयी जांच के बाद ओरसी और स्पागनोलिनी पर मामला दर्ज किया गया था. भारत ने भारतीय वायुसेना को 12 एडब्ल्यू-101 वीवीआईपी हेलिकॉप्टर आपूर्ति करने के लिए फिनमेकेनिका की ब्रिटिश सहायक कंपनी अगस्ता वेस्टलैंड के साथ जनवरी 2014 में अनुंबध खत्म कर दिया. निविदा की शर्तों के उल्लंघन और सौदा सुनिश्चित करने के लिए कंपनी की ओर से घूस देने के आरोपों पर यह अनुबंध रद्द किया गया.

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