इंदिरा गांधी के इमरजेंसी प्लान से अमेरिका और सीआईए भी अनजान
वाशिंगटन। वर्ष 1975 भारत में इमरजेंसी लगाने की जो एतिहासिक घटना हुई, उसके बारे में अमेरिका को या तो बिल्कुल जानकारी नहीं थी या फिर बहुत थोड़ी जानकारी थी। अमेरिका की सेंट्रल इंटेलीजेंस एजेंसी (सीआईए) के डॉक्यूमेंट्स से तो यही पता चलता है। सीआईए के करीब 930,000 डाक्यूमेंट्स को सीआरईएसटी, जो कि सीआईए की अर्काइव है, उस पर रिलीज किया गया है जिनसे यह जानकारी मिली है।
12 मिलियन पेज के डॉक्यूमेंट्स
जो डॉक्यूमेंट्स सीआईए ने ऑनलाइन जारी किए हैं वे 12 मिलियन पेज के हैं और इन डॉक्यूमेंट्स में सन 1940 से अब तक के रिकॉर्ड दर्ज हैं। साउथ एशिया को लेकर जो भी जानकारियां वे बहुत ही कम जानकारी देने वाली हैं। इन डॉक्यूमेंट्स से एक बात साफ है कि भारत के परमाणु कार्यक्रम को करीब से देखा गया था। इस कार्यक्राम पर रोजाना ब्रीफिंग हुई लेकिन यह भी बड़ी निराशाजनक थी। जून 1975 में इलाहाबाद हाईकोर्ट की ओर से अभियान का उल्लंघन करने की दोषी ठहराई गई इंदिरा गांधी के बारे में सीआईएस ने सलाह दी थी कि उन्हें अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए। 18 जून 1975 को आए सीआईए के मेमोरेंडम के मुताबिक, ‘श्रीमती गांधी अपने हाथ से कुर्सी जाने नहीं देना चाहती हैं। यहां कि वह अपने करीब वाई बी चव्हाण और जगजीवन राम को भी अस्थायी तौर पर सत्ता नहीं सौंपना चाहती हैं।’ सीआईए के डॉक्यूमेंट्स की मानें तो वह नहीं चाहती थीं कि जगजीवन राम के हाथ में सत्ता जाए क्योंकि उन्हें लगता था कि वह बहुत ही महत्वाकांक्षी हैं और उन्हें वापस सत्ता नहीं सौपेंगे।
संजय गांधी से नाखुश थीं इंदिरा
वर्ष 2013 में विकीलीक्स की ओर से जारी केबल्स के मुताबिक सीआईए ने प्रधानमंत्री के करीबी सूत्रों से वर्ष 1975 से 1977 तक कई अहम जानकारियां हासिल कीं। इन जानकारियों से ही आपातकाल के बारे में कुछ अहम बातों का
पता चला। आठ अगस्त 1975 को सीआईए यह मानने लगी थी कि इंदिरा गांधी का सबसे बड़ा गुण है कुछ प्रतिबंधों के साथ राजनीति करने की इच्छा। इमरजेंसी के दौरान भारत में जब स्थितियां तनावपूर्ण हो रही थी, 23 पेज का एक डॉजियर इंदिरा गांधी के करीबियों के बारे में अक्टूबर 1975 में आया था। इस डॉजियर के मुताबिक इंदिरा वैरागी होती जा रही थीं और उन्होंने अपनी कैबिनेट को भी काफी करीब रखा था। इन डॉक्यूमेंट्स की मानें तो इंदिरा गांधी अपने बेटे संजय गांधी के नीतिगत फैसलों में शामिल होने से खुश नहीं थीं। उनकी मां के करीबियों के बीच संजय गांधी का कद बढ़ रहा था और इस बात से वह काफी नाखुश थीं। हालांकि संजय ने अपनी मां को नियंत्रित नहीं किया और वह सारे फैसले लेती रहीं।
Source: hindi.oneindia.com