मैक्स अस्पताल ने आयोजित किया जागरूकता अभियान

हल्द्वानी, । जोड़ों की समस्याओं की शिकायत लेकर आने वाले अधिक से अधिक युवा रोगियों के साथ, मैक्स हॉस्पिटल वैशाली ने हल्द्वानी टुडे में जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया। इंटरएक्टिव सेषन के बाद जोड़ों को बदलने से संबंधित जांच शिविर का आयोजन किया गया, और इस तरह प्री स्क्रीनिंग के साथ जीवन की बेहतर गुणवत्ता के बारे में जनता को जागरूक भी किया गया।हल्द्वानी, । जोड़ों की समस्याओं की शिकायत लेकर आने वाले अधिक से अधिक युवा रोगियों के साथ, मैक्स हॉस्पिटल वैशाली ने हल्द्वानी टुडे में जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया। इंटरएक्टिव सेषन के बाद जोड़ों को बदलने से संबंधित जांच शिविर का आयोजन किया गया, और इस तरह प्री स्क्रीनिंग के साथ जीवन की बेहतर गुणवत्ता के बारे में जनता को जागरूक भी किया गया। यहां आयोजित एक पत्रकार वार्ता में मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, वैशाली के निदेशक-ऑथोर्पेडिक्स, डॉ. बीएस मूर्ति ने कहा, ‘इस अवसर के माध्यम से, हम उम्मीद करते हैं कि हमने विशेष रूप से सर्दियों के दौरान होने वाले आथोर्पेडिक रोगों की उचित समय पर पहचान के महत्व को लेकर लोगों को जागरूक किया। क्योंकि अक्सर लोग जोड़ों के दर्द की उपेक्षा तब तक करते रहते  हैं, जब तक कि यह परेशानी का सबब न बन जाए। हम इस अवसर का लाभ उठाते हुए भारत में बढ़ती आथोर्पेडिक समस्याओं के बारे में समाज को संवेदनशील बनाना चाहते हैं। आज की पीढ़ी निष्क्रिय व सुस्त जीवनशैली जीने की आदी हो चुकी है – लंबे समय तक एक ही स्थिति में बैठे रहते हैं और कार्यस्थलों पर ज्यादातर गलत मुद्रा अपनाते हैं। इसके अलावा, देर रात तक नाइट शिफ्ट वाली ड्यूटी, धूम्रपान, कंप्यूटर के सामने लंबे समय तक काम करना और अनियमित खान-पान के चलते आथोर्पेडिक समस्याएं एक जीवन शैली की बीमारी बन चुकी है। शराब की अधिक खपत और सिगरेट पीने में इजाफा (जो उच्च कैल्शियम चुराने वाले होते हैं) से हड्डियों की बीमारी होने का खतरा अधिक होता है। नतीजतन, अपेक्षाकृत युवा लोगों में जोड़ों की समस्याओं का विकास होता जा रहा है और घुटने के दर्द और हड्डियों के रोगों से युवा वर्ग पीड़ित हो रहे हैं। 35 वर्ष की आयु के बाद पुरुषों और महिलाओं दोनों की हड्डियों का घनत्व 0.3 से 0.5 प्रतिशत कम हो जाता है।’ खराब और निष्क्रिय जीवनशैली, तेजी से बढ़ती मोटापे की आबादी और जोड़ों की समस्याओं के उपचार के तरीकों में प्रगति के बारे में जागरूकता की कमी के चलते उम्र के ढलान पर युवा रोगियों की संख्या में इजाफा होता जा रहा है। सर्वोत्कृष्ट परिणाम प्राप्त करने के लिए प्रारंभिक जांच के महत्व को समझना जरूरी है, क्योंकि इसी से अपेक्षित उपचार को नियत समय पर शुरू किया जा सकता है। डॉ. मूर्ति ने आगे बताया, ‘ऑस्टियोआर्थराइटिस और घुटने से संबंधित बीमारियों का एक प्रमुख कारण है मोटापा, जिसमें शरीर के कुल वजन की तुलना में घुटने का भार 6 गुना ज्यादा बढ़ जाता है, जिसका सीधा असर जोड़ों पर पड़ता है। शरीर के अत्यधिक वजन का अपक्षयी जोड़ों के विकारों से सीधा संबंध है और ऐसी समस्या यदि युवावस्था में हो तो, उम्र की ढलान में इस तरह की बीमारियों के विकास की आषंका तीन गुणा ज्यादा होती है। यद्यपि उपचार की उन्नत तकनीकी विकल्प की उपलब्धता है, इसके बावजूद इस तरह की समस्याओं को रोकने के लिए जनता के बीच जागरूकता फैलाना अत्यावश्यक है।’ 40 साल से अधिक आयु वर्ग के लगभग 30 फीसदी युवा वयस्कों में जांच के दौरान जोड़ों की समस्याएं सामने आई हैं और ऐसे में घुटने के प्रतिस्थापन का विकल्प को चयन किया जाता है। खान-पान की गलत आदतें और फ्रोजन तथा जंक फूड पर बढ़ती निर्भरता के कारण सूजन की समस्याएं होने लगती हैं, जिसके चलते जोड़ों के कार्टिलेज और कोशिकाओं पर हमला होता है और जो किघुटने में दर्द और गठिया के रूप में परिलक्षित होता है और आर्थराइटिस की समस्या हो जाती है।

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