कांग्रेस और भाजपा अपना जनाधार बढ़ाने के लिए हर कोशिश में जुटे

देहरादून, । उत्तराखंड में लोकसभा चुनावों की बिसात बिछने के साथ ही बागियों के सियासी बाग में बहार आ गई है। बागी नेताओं के दबाव का असर दिखने लगा है। चुनावी रणभेरी बजने के बाद कांग्रेस और भाजपा अपना जनाधार बढ़ाने के लिए हर कोशिश में जुट गए हैं। इससे विधानसभा चुनाव लड़ चुके ज्यादातर नेताओं की घर वापसी का रास्ता तैयार हो गया है। इनमें कई पूर्व विधायक और निजी जनाधार रखने वाले नेता भी शामिल हैं। दो साल पहले विधानसभा चुनाव के दौरान टिकट नहीं मिलने से भाजपा के 12 और कांग्रेस के 18 नेताओं ने पार्टी के अधिकृत उम्मीदवारों के खिलाफ चुनाव लड़ा। तब इन्हें दोनों पार्टियों से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। बगावत करने वाले इन नेताओं में से कई ने मिलकर उत्तराखंड जनता मोर्चा बना लिया था। मोर्चा की कुछ अरसा पहले बैठक भी हुई। अब लोकसभा चुनाव का ऐलान होने के बाद दोनों दलों पर बागियों की घर वापसी का दबाव बन चुका है। इसका असर भी दिखने लगा है। हालांकि, बड़े नेताओं की आपत्ति से कुछेक नेताओं की वापसी नहीं होने वाली। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की 16 मार्च को दून की रैली में पार्टी ने बसपा में जहां तोड़फोड़ की वहीं, भाजपा के निष्कासित कुछ नेताओं की भी पार्टी में ज्वाइनिंग कराकर जनता में संदेश देने की कोशिश की। अब ऐसे बागी नेताओं पर भी पार्टी की नजरें टिकी हैं, जिनका अपने इलाकों में अच्छा प्रभाव है। दूसरी ओर, भाजपा में भी बागियों के वापसी का क्रम शुरू हो गया है। भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) रामलाल ने हाल ही में देहरादून दौरे के दौरान बागियों के प्रति नरम रुख अख्तियार करने के संकेत दिए थे। इसी कड़ी में कांग्रेस नेता और पूर्व में भाजपा से रुड़की के विधायक रहे चुके सुरेश जैन और केदारनाथ की पूर्व विधायक आशा नौटियाल को पार्टी में शामिल करा लिया गया है। कई और बागियों को जल्द शामिल करवाए जाने की तैयारी है। कांग्रेस ने भी बागी चुनाव लड़े कविंद्र ईष्टवाल (चौबट्टाखाल), लक्ष्मी अग्रवाल (सहसपुर), राजेश्वर पैन्यूली (प्रतापनगर) और सुभाष चौधरी के लिए दरवाजे खोल दिए।

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