केंद्र व राज्‍य के मुद्दों पर पूर्व सीएम हरीश रावत का हमला

देहरादून : उत्तराखंड में कांग्रेस भले ही चुनावी मैदान में हार गई हो, लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत सियासी मोर्चे पर हार मानने को तैयार नहीं हैं। दल के भीतर व बाहर तमाम विपरीत हालत के बावजूद वह जिस तरह केंद्र व राज्य सरकार की नीतियों के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं, उससे राजनीतिक हलकों में यह चर्चा आम है कि हरदा ने भविष्य के समीकरणों को अभी से साधना शुरू कर दिया है।

 

फिर चाहे गैरसैंण में विधानसभा सत्र का मुद्दा हो अथवा किसानों की कर्ज माफी का सवाल, हर मामले में उनकी भूमिका स्पष्ट नजर आ रही है। इतना ही नहीं, जीएसटी को लागू करने के तरीके और सांस्कृतिक सरोकार की अनदेखी को लेकर उन्होंने केंद्र व राज्य पर तीखा हमला किया है।

 

 

देवभूमि में वापसी की उम्मीद लगाए कांग्रेस को जो चुनावी झटका लगा, उसके बाद हार की जिम्मेदारी लेते हुए हरदा ने आगे आकर नई लड़ाई की राह पकड़ ली। प्रदेश संगठन के नए अध्यक्ष प्रीतम सिंह और नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश ने जहां राज्य सरकार की घेराबंदी की, वहीं हरीश रावत ने जनता के मुद्दों पर सक्रियता बनाते हुए सियासत की ऐसी राह पर कदम बढ़ाए, जो उन्हें अलग ही दिखा रही है।

 

सौ दिन की भाजपा सरकार में अगर कांग्र्रेस की तरफ से मोर्चाबंदी हुई तो उसमें धुरी हरीश रावत ही रहे हैं। सबसे पहले पुरानी सरकार के फैसलों को पलटने की बात उनके स्तर से ही उठी, उसके बाद गैरसैंण को राजधानी बनाने और फिर सत्र नहीं होने पर संकेतिक विरोध करने के सूत्रधार भी रावत ही रहे।

 

अब एक बार फिर उन्होंने जीएसटी और प्रदेश की योजनाओं को लेकर केंद्र और राज्य सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला है। दरअसल रावत की लड़ाई दो मोर्चों पर है। उन्हें नए सियासी हालात में कांग्रेस के भीतर नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह से आगे बढ़कर खुद को साबित करने की चुनौती है।

 

जीएसटी पर केंद्र पर निशाना, राज्य को सुझाव

जीएसटी को लागू करने के लिए सेंट्रल हॉल से आधी रावत को किए गए उद्घोष को हरीश रावत ने गलत ठहराया। उन्होंने कहा कि देश में छुआछूत जैसी सामाजिक बुराई समाप्त करने, बंधुवा मजदूरी को समाप्त करने, पंचायती राज संशोधन, मनरेगा व सूचना के अधिकार आदि महत्वपूर्ण कानून बने, लेकिन इनकी घोषणा सेंट्रल हॉल से नहीं की गई।

सेंट्रल हॉल में आजादी का जश्न मनाया गया था। सरकार का यह कदम स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का भी अपमान है। राज्य सरकार को सुझाव देते हुए उन्होंने कहा कि  हिमालयी क्षेत्रों में जीएसटी के अनिवार्य पंजीकरण की सीमा अन्य प्रदेशों की भांति 20 लाख रुपये करने के लिए केंद्र के समक्ष पहल करे।

 

जीएसटी के तहत पहले वर्ष 10 लाख रुपये के टर्नओवर वाले व्यापारियों को डिफॉल्टर न घोषित करने की छूट दी है। यह छूट हिमालय क्षेत्र में 75 लाख के टर्नओवर वालों को भी मिलनी चाहिए। केंद्र ने पहले उद्योगों को एक्साइज ड्यूटी की सौ प्रतिशत छूट दी थी। जीएसटी के तहत इसमें 58 फीसद की प्रतिपूर्ति की जा रही है। केंद्र को शेष 42 फीसद के बारे में भी बताना चाहिए कि यह पैसा कैसे दिया जाएगा।

 

आम पार्टी के बाद कंडाली की चाय पिलाएंगे हरदा

प्रदेश के स्थानीय उत्पादों को प्रोत्साहन देने का हवाला देते हुए आम की दावत का आयोजन करने के बाद अब पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत कंडाली, गुलबंशा और पहाड़ी तुलसी की चाय पार्टी देने का मन बना रहा है। इसका मकसद इन उत्पादों की पहचान आगे बढ़ाना है। इतना ही नहीं उनके कार्यकाल में शुरू हुए पर्व हरेला व मेरा गांव, मेरा पेड़ योजनाओं पर अब वह सरकार के इतर खुद आगे कदम बढ़ा रहे हैं। लोगों को पेड़ों के प्रति जागरूक करने के लिए ‘जी रैयां, जागी रैयां’ अभियान चलाने की तैयारी है। इसकी जिम्मेदारी आनंद रावत व मुकेश देवराड़ी को सौंपी गई है।

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