फेसबुक न वाट्सएप किया इस्तेमाल, बना नीट में स्टेट टॉपर
देहरादून : दून निवासी ऋतिक चौहान आल इंडिया 317 रैंक हासिल कर नीट के स्टेट टापर बने। जिपमर व एम्स की प्रवेश परीक्षा के बाद यह उनकी लगातार तीसरी कामयाबी है। इन परीक्षाओं में भी उन्होंने सर्वोच्च स्थान हासिल किया था। ऋतिक ने पिछले तकरीबन एक साल से न तो स्मार्टफोन इस्तेमाल किया और न सोशल मीडिया ही। उनका कहना है कि ऐसी परीक्षाएं पास करने के लिए आपको कई बार समाज से कटना पड़ता है। अशोक पार्क निरंजनपुर निवासी ऋतिक के पिता विनोद कुमार चौहान एमडीडीए में अवर अभियंता हैं और मां सुंदर देवी गृहिणी। बड़ा भाई शुभम एमटेक कर रहा है। सफलता के मंत्र के बारे में पूछे जाने पर ऋतिक ने कहा कि लक्ष्य को लेकर कड़ी मेहनत, सुनियोजित ढंग से पढ़ाई और एकाग्रचित रहना ही सफलता की सीढ़ी है। तनाव से मुक्ति पाने के लिए वह योग का सहारा लेते हैं। उन्हें गिटार बजाना और बैडमिंटन भी खासा पसंद है। वह कहते हैं कि पढ़ाई के दौरान यह शौक ही उन्हें रिफ्रेश करते हैं।सुबह के वक्त वह जीव विज्ञान और दिन में रसायन व भौतिक विज्ञान पढ़ा करते थे। शाम का वक्त रिवीजन के लिए रखा था। अविरल क्लासेस के निदेशक डीके मिश्रा ने बताया कि ऋतिक ने एम्स के साथ ही जिपमर में भी सफलता हासिल की है। पहली बार उत्तराखंड का कोई छात्र जिपमर में चयनित हुआ है। यह संस्थान के साथ ही पूरे प्रदेश के लिए गौरव का विषय है। असफलता से भी ली सीख ऋतिक को यह सफलता एक बार में नहीं मिली। इसके लिए उन्होंने कड़ी मेहनत की और एक साल ड्रॉप भी किया। गत वर्ष उन्होंने सेंट ज्यूड्स से 95.5 प्रतिशत के साथ 12वीं की। नीट और एम्स की परीक्षा दी, लेकिन परिणाम मन मुताबिक नहीं मिला। एम्स में उनकी रैंक 5382वीं थी तो नीट में 32 हजार पार। इसलिए एक साल सब कुछ भुलाकर कड़ी मेहनत की और अब सफलता उनके कदम चूम रही है। दादा से ली प्रेरणा डॉक्टर बनने की प्रेरणा ऋतिक को अपने दादा डॉ. अचपल सिंह चौहान से मिली। वह एक फिजिशियन हैं और बिहारीगढ़ में निजी प्रैक्टिस करते हैं। ऋतिक कहते हैं कि आगे चलकर वह कार्डियोलॉजी में विशेषज्ञता हासिल करना चाहते हैं। पहाड़ के दुरूह क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं का हाल उन्हें विचलित करता है और वह पर्वतीय क्षेत्र में सेवा देने के इच्छुक हैं।