कमलनाथ संभालेंगे मध्यप्रदेश कांग्रेस की कमान, सिंधिया बनेंगे लोकसभा में उप नेता?

नई दिल्ली: कांग्रेस मुख्यालय के आजकल के सन्नाटे को शाम 6 बजे के आसपास मोहन प्रकाश मुर्दाबाद और अरुण यादव मुर्दाबाद के नारों ने तोड़ दिया. कांग्रेस की खबर की तलाश में रहने वाले पत्रकार फौरन उसे अपने कैमरे और मोबाइल में कैद करने को लपके.

मोहन प्रकाश मध्यप्रदेश के इंचार्ज हैं और अरुण यादव प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष. मध्यप्रदेश से एआईसीसी पहुंचे कुछ कार्यकर्ता दोनों पर स्थानीय संगठन चुनाव से पहले मनमाने तरीके से सात ब्लॉक अध्यक्ष बदलने का आरोप लगा रहे थे. उनका कहना था कि मध्यप्रदेश में संगठन चुनाव का ऐलान हो चुका है लेकिन उससे पहले ही व्हाट्सएप मैसेज के जरिए सात ब्लॉक अध्यक्षों को बदल दिया गया है. यह कार्यकर्ता इसी बाबत अपनी शिकायत लेकर कांग्रेस मुख्यालय पहुंचे थे. उनका आरोप है कि घंटों इंतजार कराने के बाद भी मोहन प्रकाश उनसे नहीं मिले. फिर नारेबाजी शुरू हो गई.

इस बीच एक दूसरा घटनाक्रम आगे बढ़ चुका था. विदेश से लौटने के बाद कमलनाथ पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिलने पहुंचे. इससे इस चर्चा को और बल मिला कि उन्हें मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है. दरअसल यह चर्चा कई हफ्तों से चल रही है. अब जाकर उसे अमली जामा पहनाने की तैयारी है.

इस मीटिंग को कमलनाथ के बतौर हरियाणा इंचार्ज एक रिपोर्ट कार्ड पेश करने के मौके के तौर पर भी देखा जा रहा है. हरियाणा में भूपिंदर सिंह हुड्डा खेमा पूरी कमान अपने हाथ में चाहता है. न सिर्फ प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर वह अशोक तंवर की विदाई चाहता है बल्कि कांग्रेस विधायक दल की नेता के तौर पर किरण चौधरी को भी हटाना चाहता है. लाल पगड़ी के खिलाफ भारी पड़ रही गुलाबी पगड़ी की इस लड़ाई को ऐसे सुलझा पाना कमलनाथ के लिए एक बड़ी चुनौती है कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे.

ख़ैर, लौटकर कमलनाथ को नई मिलने वाली जिम्मेदारी की चर्चा के सवाल पर आते हैं. मध्यप्रदेश के अध्यक्ष अरुण यादव को हटाकर कमलनाथ को कमान देने में सवाल यह था कि ज्योतिरादित्य सिंधिया को इस बात के लिए कैसे तैयार किया जाए. अमरिंदर सिंह के पंजाब का मुख्यमंत्री बनने के बाद लोकसभा कांग्रेस के उपनेता का पद खाली है. पूरी उम्मीद है कि सिंधिया को उपनेता बना दिया जाए. राहुल की नई बन रही टीम में उन्हें महासचिव बनाने की भी बात है.

पर सवाल फिर भी है कि सिंधिया मध्यप्रदेश की अपनी विरासत को इस तरह दिल्ली में ‘सेटल’ होकर छोड़ देंगे? वह भी तब जब 2013 चुनाव में वे दिग्विजय सिंह जैसे पुराने नेता की इच्छा से अलग कैंपेन कमेटी के प्रमुख बनाए गए थे. ये अलग बात है कि तब सिंधिया पार्टी को कामयाबी नहीं दिला पाए. अब अगले साल वहां चुनाव होना है और शिवराज सिंह चौहान के 15 साल के एंटी इंकम्बेंसी की उम्मीद में कांग्रेस अपने लिए सत्ता पलट का एक मौका देख रही है. सिंधिया ये मौका हाथ से जाने देना नहीं चाहेंगे. खासतौर पर तब जब 2019 का लोकसभा चुनाव और दिल्ली दोनों अभी दूर की कौड़ी हैं!

अब AICC में हुई नारेबाज़ी को समझने की कोशिश करते हैं. एक मित्र बताते हैं कि मोहन प्रकाश को इंचार्ज के तौर पर न तो कमलनाथ चाहते हैं न सिंधिया. ऐसे में कुछ अदने से कार्यकर्ता बिल्ली मार दें तो क्या बुराई है! किसी का नाम भी नहीं आएगा और काम हो जाएगा.

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