जन आंदोलन से दिल्ली की सियासत में वापसी करेंगे केंद्रीय राज्यमंत्री विजय गोयल
नई दिल्ली । लॉटरी के खिलाफ आंदोलन छेड़कर दिल्ली की सियासत में अपनी धमक बनाने वाले केंद्रीय राज्यमंत्री विजय गोयल एक बार फिर से राजधानी में अपना राजनीतिक रसूख बढ़ाने के लिए जन आंदोलन का सहारा लेने जा रहे हैं।
इस बार वह दिल्ली के सबसे ज्वलंत मुद्दे प्रदूषण को लेकर लोगों के बीच जाएंगे। माना जा रहा है कि इस आंदोलन के जरिये वह दिल्ली की सियासत में वापसी की तैयारी कर रहे हैं। उनकी कोशिश इस आंदोलन के बहाने दिल्ली के प्रत्येक वर्ग तक पहुंचने और ज्यादा से ज्यादा लोगों को जोडऩे की है। इसलिए उन्होंने इसे भाजपा के बजाय स्वयंसेवी संस्था लोक अभियान के बैनर तले शुरू करने की घोषणा की है।
गोयल ने नब्बे के दशक में एक अंक वाली लॉटरी के खिलाफ आंदोलन चलाकर सरकार को इसे बंद करने के लिए मजबूर कर दिया था। उस आंदोलन से इनका सियासी कद भी बढ़ा था। चांदनी चौक से सांसद चुने जाने के साथ ही वह अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री भी बने थे।
पार्टी ने उन्हें वर्ष 2012 में दिल्ली भाजपा की कमान भी सौंपी थी, लेकिन एक वर्ष बाद ही उन्हें इस पद से हटाकर राजस्थान से राज्यसभा में भेज दिया गया था। इनके विरोधियों ने यह प्रचारित करना शुरू कर दिया था कि उन्हें दिल्ली की सियासत से दूर करने के लिए पार्टी हाईकमान ने यह कदम उठाया है।
इसमें कुछ सच्चाई भी लगती है, क्योंकि वर्ष 2013 और 2015 में हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव से भी उनकी दूरी बनी रही। हालांकि, राजस्थान से राज्यसभा पहुंचने के बाद भी वह दिल्ली की सियासत में वापसी का मौका तलाशते रहे हैं।
दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पाने की दौड़ में भी वह शामिल थे। उन्हें दोबारा यह कुर्सी तो नहीं मिली, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल में शामिल होने में जरूर सफल रहे। केंद्रीय खेल राज्यमंत्री रहते हुए भी वह स्लम दौड़ व अन्य कार्यक्रमों की बदौलत दिल्ली में फिर से अपना आधार मजबूत करने की कोशिश करते रहे, लेकिन कुछ महीने पहले मंत्रिमंडल में हुए फेरबदल में उनसे खेल मंत्रालय लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री बना दिया गया।
इससे दिल्ली वापसी की उनकी कोशिश को धक्का लगा, लेकिन अब उन्होंने दिल्ली की जहरीली हवा को मुद्दा बनाते हुए सड़क पर उतरने का एलान कर दिया है। उनका कहना है कि लॉटरी आंदोलन की तरह ही यह आंदोलन भी होगा।
इससे स्वयंसेवी संस्थाओं, रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन, व्यापारिक संगठनों के साथ ही धार्मिक व सांस्कृतिक संगठनों को भी जोड़ा जाएगा। माना जा रहा है कि उन्होंने यह कदम दो साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर उठाया है, जिससे कि मुख्यमंत्री पद के लिए उनकी दावेदारी मजबूत हो सके।