उत्तराखंड: सात सालों में 10 गुना बढ़ा भूस्खलन का खतरा
देहरादून। उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों में भूस्खलन का खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है। हालिया सात साल के आंकड़ों के अनुसार भूस्खलन की घटनाओं की संख्या 10 गुना से ज्यादा बढ़ चुकी है। कुछेए साल ऐसे भी गुजरे हैं जब ये घटनाएं तीस गुना तक ज्यादा थी। वैज्ञानिक बढ़ते भूस्खलनों के लिए पर्वतीय क्षेत्रों में बारिश के पैटर्न में बदलाव और मानवीय गतिविधियों की वजह से पर्वतों के आकार और उनके ढलान में हो रहे परिवर्तन को वजह मानते हैं।यदि समय रहते इस ओर ध्यान न दिया गया तो समस्या आगे और भी बढ़ सकती है। हालिया कुछ समय में राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों में भूस्खलन की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं। चंपावत में इस मानसून सीजन में भूस्खलन की वजह से राष्ट्रीय राजमार्ग 104 बार बंद हुआ। टिहरी में अब तक भूस्खलन की 14 घटनाएं हो चुकी हैं। जबकि पिछले साल अब तक केवल आठ भूस्खलन ही हुए थे। न केवल चंपावत और टिहरी बल्कि प्रदेश के सभी पर्वतीय जिलों में यही हालात है। यदि पिछले सात साल के आंकडों पर नजर डाले तो काफी भयावह तस्वीर सामने आती है। डीएमएमसी के रिकार्ड के अनुसार वर्ष 2015 में महज 33 घटनाएं रिकार्ड की गई थी। जबकि वर्ष 2018 में यह संख्या 496, और वर्ष 2020 तक इन घटनाओं की संख्या 972 तक पहुंच गई थी। इस साल अब तक 132 भूस्खलन की घटनाएं रिकार्ड की गई हैं।