जवां उम्मीदों के साथ 18वें वर्ष में दाखिल उत्तराखंड
देहरादून : आज गुरुवार को उत्तराखंड 18वें वर्ष में प्रवेश कर गया। इस वक्फे में सालाना 1.62 लाख करोड़ जीएसडीपी और 1.60 लाख प्रति व्यक्ति आमदनी समेत आर्थिकी के चमकदार आंकड़ों के बूते राज्य ने देश में अपनी विशेष पहचान कायम की। सेवा के अधिकार के तहत सरकारी सेवाओं का दायरा बढ़ाने, ग्रामीण क्षेत्रों को खुले में शौच से मुक्ति दिलाने, नई प्रोक्योरमेंट नियमावली, डिजिटल लेन-देन समेत सुशासन की दिशा में नई पहल की गईं तो ऑल वेदर रोड, ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल परियोजना, चार धाम रेलवे नेटवर्क और नई केदारपुरी जैसे महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट के बूते आर्थिक हैसियत के साथ ही अपार संभावनाओं वाले पर्यटन क्षेत्र के विकास बड़ा आधार बनने की उम्मीदें जवां हुई हैं।
हालांकि, इस सबके बीच पर्वतीय राज्य में सुगम और दुर्गम क्षेत्रों के बीच आर्थिक, सामाजिक और विकास की असमानता की चौड़ी होती खाई को पाटने की गंभीर चुनौती बनी हुई है। यह भी तय है कि इस चुनौती से निपटकर ही पर्वतीय क्षेत्रों से पलायन की समस्या से निजात मिल सकेगी।
राज्य जब स्थापना के 17 वर्ष पूरे कर रहा है तो उसके पास अन्य राज्यों की तुलना में बेहतर आर्थिकी के आंकड़े हैं। इस अवधि में एक दौर ऐसा भी आ चुका है, जब राज्य की विकास दर ने 14 फीसद से ज्यादा की छलांग लगा दी थी, लेकिन यह सब राज्य को विशेष दर्जा और विशेष औद्योगिक पैकेज के बूते मुमकिन हो सका।
फिलहाल मंदी के देशव्यापी दौर में भी उत्तराखंड की विकास दर ने अन्य राज्यों की तुलना में तेजी से नीचे की ओर गोता नहीं लगाया है। वर्ष 2013 में आपदा के कहर से उबरकर धार्मिक पर्यटन और तीर्थाटन पटरी पर लौटने में कामयाब हो रहा है। हालांकि, इस चमकदार पहलू के पीछे की स्याह तस्वीर राज्य की मौजूदा सबसे बड़ी चिंता और चुनौती दोनों है।
राज्य गठन के इतने वर्षों बाद भी जल, जंगल और प्राकृतिक सुंदरता जैसे संसाधनों का उत्तराखंड के चहुंमुखी विकास में उपयोग नहीं हो सका है। इन तीनों संभावनाओं पर पर्यावरण और पारिस्थितिकीय बंदिशों का पहरा है। वन और जल संपदा के नियोजित और वैज्ञानिक दोहन की भी अनुमति नहीं मिलने का नतीजा है कि उत्तराखंड सिर्फ उपभोक्ता राज्य बनकर रह गया है।
इन बंदिशों के चलते ही मजबूत आधारभूत संरचना का विकास नहीं हो सका है। अब केंद्र के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट ने उत्तराखंड के अधूरे रह गए सपनों में रंग भरने की उम्मीदें जगाई हैं। ये उम्मीदें कब तक परवान चढेंगी, ये केंद्र और राज्य की सरकारों की दृढ़ इच्छाशक्ति पर निर्भर करता है।