उत्तर प्रदेश जल निगम के लिए तो फिजूल निकला इजरायली समझौता
लखनऊ । इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के आने पर भले ही दिल्ली से लेकर प्रदेश सरकार तक उत्साहित हों, लेकिन जल निगम के लिए इजरायली करार फिजूल ही साबित हुआ है। हालांकि पिछले साल जुलाई में करार होने के दो महीने बाद सितंबर में सरकारी खर्च पर निगम के तीन अफसर इजरायल का दौरा भी आए, लेकिन अब उन्हें लग रहा है कि इजरायल से जल प्रबंधन के करार के बाद हालात बदलना तो दूर, कोई फायदा होना भी मुश्किल है।
पिछले साल जुलाई के पहले हफ्ते में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब इजरायल पहुंचे थे, तब जल निगम के साथ करार के लिए प्रमुख सचिव राजीव कुमार के साथ जल निगम अध्यक्ष जीबी पटनायक के भी जाने का कार्यक्रम था। यह कार्यक्रम टल गया था, लेकिन इजरायल में भारत के राजदूत ने जल निगम की ओर से इजरायल सरकार के साथ जल निगम के लिए करार किया था। जुलाई में करार होने के बाद सितंबर में निगम अध्यक्ष पटनायक, निगम के प्रबंध निदेशक राजेश मित्तल व कानपुर के अधिकारी पीके अग्रवाल इजरायल गए थे। माना जा रहा था कि अधिकारियों के इस दौरे के बाद इजरायल का दल प्रदेश में आकर खामियों के साथ सुधार के बिंदु तलाशेगा। अधिकारियों के मुताबिक इस दल को बीते दिसंबर के आखिरी पखवारे में आना था लेकिन टीम नहीं आई।
जो इजरायल देगा, वह पहले से हमारे पास
जल निगम अधिकारियों का मानना है कि इजरायल से न अब टीम आने की जरूरत है और न ही वहां हुए समझौते की कोई उपयोगिता है, क्योंकि इजरायल ऐसा कुछ नहीं दे रहा जो यहां न हो। निगम के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि महज 80 लाख की आबादी वाला इजरायल छोटा और गरीब देश है। वह हमें आर्थिक सहायता नहीं दे सकता, बल्कि समझौते की आड़ में इजरायल के कारपोरेट ग्रुप यहां काम की तलाश में हैैं। अधिकारियों के मुताबिक इजरायल की सीक्वेंशियल बैच रिएक्टर (एसबीआर) तकनीक से पहले ही यहां सीवेज ट्रीटमेंट प्लान (एसटीपी) चलाए जा रहे हैैं।
पठारी इलाकों से पानी लाने की तकनीक का यहां मुरादनगर से गाजियाबाद तक पानी लाने में प्रयोग हो रहा है। अधिकारियों के मुताबिक डिसैलीनेशन (खारे पानी से नमक निकाल कर पानी को पीने योग्य बनाना) की यहां जरूरत नहीं है, जबकि पानी की मीटरिंग पर इजरायल से अभी कुछ सीखने का मतलब नहीं है, क्योंकि यहां पानी का कनेक्शन मुफ्त है और मीटरिंग की नीति ही नहीं है।