यहां पेड़-पौधे सिखा रहे जीवन जीने को संघर्ष के मायने

उत्तरकाशी : पहाड़ में पहाड़ जैसी जिंदगी सिर्फ इन्सान की ही नहीं है, बल्कि जिंदगी की कठिन डगर तो पहाड़ों को बांधे रखने वाले उन पेड़-पौधों की भी है, जो यहां इन्सान को जिंदगी के असल मायने सिखाते आ रहे हैं। यकीन न हो तो चले आइए गंगा घाटी (उत्तरकाशी) की वादियों में, जहां साधारण से दिखने वाले पेड़ों ने अपने हौसलों की जड़ों से चट्टानों को भी चीर डाला है। ये पेड़ संदेश दे रहे कि इरादे बुलंद हों तो आखिर कोई किसी को कब तक रोक सकता है सीधे खड़े होने से।

गोमुख से निकलने वाली भागीरथी नदी के दोनों ओर कठोर चट्टान वाली खड़ी पहाड़ियां हैं। इनकी ऊंचाई चीड़बासा, गंगोत्री, भैरवघाटी, कोपांग, हर्षिल, डबराड़ी व गंगनानी क्षेत्र में काफी अधिक है। इन पर देवदार, कैल व भोजपत्र के घने जंगल हैं।

इन जंगलों के एक-एक पेड़-पौधे की जिजीविषा देखने लायक है। गंगोत्री हाइवे पर कोपांग स्थित आइटीबीपी (भारत-तिब्बत सीमा पुलिस) कैंप के सामने 15 फीट ऊंची और आठ फीट चौड़ी चट्टान भले ही कितनी मजबूत क्यों न हो, लेकिन सालों से धीरे-धीरे बढ़ रहे एक देवदार के पेड़ ने उसके गुरूर को चकनाचूर कर दिया।

डायनामाइट जैसे विस्फोटक से भी ये मजबूत चट्टानें एक साथ नहीं टूट पाती, लेकिन देवदार के पेड़ ने इस चट्टान को बीचोंबीच से फाड़ डाला। चट्टानों का गुरूर तोडऩे वाला यह अकेला पेड़ नहीं है, यहां तो कदम-कदम पर ऐसी ही जिजीविषा का दीदार होता है।

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