अंधी हो रही भरल के इलाज में विदेशी विशेषज्ञों की मदद

देहरादून : समुद्रतल से साढ़े चार हजार मीटर की ऊंचाई पर गंगोत्री नेशनल पार्क के सबसे दुर्गम और दुरूह परिस्थितियों वाले केदारताल क्षेत्र में भरल (ब्ल्यू शीप) जिस अज्ञात बीमारी से ग्रसित हैं, वह पूर्व में मध्य एशिया के देशों में सामने आ चुकी है। बीमार भरल के अंधा होने जैसे लक्षण सामने आने से चिंतित वन्यजीव महकमा अब अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों के संपर्क में भी है।

इस बीच केदारताल क्षेत्र में दो और ऐसे भरल देखे जाने की पुख्ता जानकारी मिलने के बाद इन्हें पकड़कर लाने को एक विशेष दल भेजा जा रहा है। इसमें नेहरू पर्वतारोहण संस्थान (निम) की मदद ली जाएगी। वहीं, वन्यजीव महकमे के लिए कुछ सुकून की बात ये है कि अज्ञात बीमारी से पीड़ित भरल केवल इसी क्षेत्र में नजर आई हैं।

गंगोत्री नेशनल पार्क में गंगोत्री-केदारताल ट्रैक पर इस साल सितंबर भरल के अज्ञात बीमारी से ग्रसित होने की बात तब सामने आई, जब बीएसएफ के अभियान दल की नजर ऐसी भरल पर पड़ी। भरल की आंखें लाल होने के साथ ही वह बेहद कमजोर भी हो गई थी।

इसके बाद मौके पर पहुंची पार्क प्रशासन की टीम एक पीडि़त भरल को गंगोत्री लेकर आई। तब पता चला कि इस क्षेत्र में भरल में अंधा होने के लक्षण दिख रहे हैं। गंगोत्री में इसका पोस्टमार्टम किया गया, जिसमें भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आइवीआरआइ) बरेली के विशेषज्ञों की फोन पर मदद ली गई। फिर नमूने जांच के लिए आइवीआरआई भेजे दिए गए।

अपर प्रमुख वन संरक्षक वन्यजीव डॉ. धनंजय मोहन के मुताबिक 20 सितंबर को आई रिपोर्ट में भरल को सीवर निमोनिया और लंगवार्म इन्फेक्शन की बात कही गई। बावजूद इसके बीमारी क्या है, इसकी अभी पड़ताल चल रही है।

उन्होंने बताया कि इस बीच केदारताल क्षेत्र में कार्य कर रहे भारतीय वन्यजीव संस्थान के दल ने वहां दो और कमजोर भरल देखे, जिनमें अंधा होने के लक्षण दिखे हैं।

डॉ.धनंजय ने बताया कि इन भरल को लेने के लिए एक विशेष दल केदारताल भेजा जा रहा है। चूंकि, वर्तमान में मौसम खराब है, इसलिए निम के पर्वतारोहियों का सहयोग भी लिया जा रहा है। उन्होंने बताया कि दोनों भरल को पहले गंगोत्री और फिर संभवत: देहरादून लाया जाएगा। यहां आइवीआरआई बरेली का दल इनका परीक्षण करेगा, ताकि बीमारी का पता चलने के साथ ही इसकी रोकथाम को कदम उठाए जा सकें।

डॉ. धनंजय ने बताया कि भरल में जिस प्रकार के लक्षण यहां पाए गए हैं, वैसे पूर्व में मध्य एशिया के देशों में भी मिले। इसे देखते हुए अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों से संपर्क किया जा रहा है। शुक्र, इस बात का है कि यह बीमारी केवल केदारताल क्षेत्र में ही है। गंगोत्री पार्क के अन्य इलाकों में ऐसी भरल नजर नहीं आई हैं। इससे इस बात को भी बल मिलता है कि यह बीमारी संक्रामक नहीं है।

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