नगर निगम की स्वच्छता समितियों में गड़बड़झाला, कार्यवाही न होने पर उठ रहे सवाल
देहरादून, । नगर निगम की ओर से गठित की गई मोहल्ला स्वच्छता समितियों में तमाम तरह की अनियमितताएं सामने आ रही है लेकिन इस पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं हो पा रही इस को लेकर गंभीर सवाल उठने लगे हैं। गौरतलब है कि शहर की सफाई व्यवस्था सुचारू रूप से करने के लिए नगर निगम ने हर वार्ड में दो-दो मोहल्ला स्वस्थ समितियां गठित कर रखी है जिसके जरिए वार्डों में सफाई व्यवस्था सुचारू रूप से हो सके लेकिन इन समितियों के गठन के बाद भी सफाई व्यवस्था पर कोई खास प्रभाव पड़ता नजर नहीं आ रहा है हैरानी की बात यह है कि वार्डों में पहले से ही स्वच्छता समितियां काम कर रही थी जो कि पहले संबंधित वार्ड के पार्षदों के अधीन थी लेकिन भारी विरोध और अनियमितताओं के चलते इन्हें नगर निगम से संबंधित कर दिया गया था अब इनका वेतन भी सीधे उनके बैंक खातों में आ रहा है जबकि 2019 में वर्तमान नगर निगम बोर्ड ने फिर से हर वार्ड में स्वच्छता समितियां गठित कर दी है जो कि एक बार फिर पार्षदों के अधीन ही रखी गई हैं जिनका वेतन भी पार्षदों की ओर से गठित समिति के जरिए दिया जाता है सूत्रों से पता चला है कि कई वार्डों में इन समितियों में दर्शाए गए कर्मचारी ही नहीं है ऐसे में उनका वेतन कहां और किसे दिया जा रहा है इसका कोई रिकॉर्ड भी नहीं है जबकि इन समितियों का पैसा गठित समिति के बैंक खाते में पहुंचाया जा रहा है जिससे भारी अनियमितता और घोटाले की आशंका जताई जाने लगी है। हैरानी की बात यह है कि यह मामला लगातार पिछले कई वर्षों से सुर्खियों में आता रहा है लेकिन इसको लेकर नगर निगम में मुख्य विपक्षी दल की भूमिका निभा रही कांग्रेस ने कभी कोई आवाज नहीं उठाई जिसको लेकर उसकी भूमिका पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। यहां यह भी बता दें कि कई वार्डों में सफाई कर्मियों से सुपरवाइजर रॉकी अवैध वसूली की चर्चाएं भी लंबे समय से सामने आती रही हैं। सूत्रों के अनुसार सुपरवाइजर प्रत्येक कर्मचारी से महीने की वसूली करता है और उसे काम में छूट प्रदान कर दी जाती है। जबकि सफाई कर्मचारी काम करना चाहता है लेकिन सुपरवाइजर उस पर दबाव डालते हैं कि यदि महीना देगा तो वह एक टाइम की ड्यूटी कर सकता है ऐसे में स्वास्थ्य अनुभाग की कार्यशैली पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। हाल ही में सफाई कर्मचारियों से जुड़ा एक प्रकरण भी सामने आया जिसके चलते लिपिक संवर्ग के एक कर्मचारी को अटैच कर दिया गया था ऐसे कई प्रकरण नगर निगम में सामने आते रहे हैं जिसको लेकर कर्मचारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई यहां तक कि सुपरवाइजर भी मन मुताबिक क्षेत्रों में काम कर रहे हैं यह सब अधिकारियों की मिलीभगत से ही संभव हो रहा है यहां तक कि कर्मचारियों से महीना बांधकर उनसे लाखों रुपए कमाए जा रहे हैं। यह शिकायत है कई बार संबंधित अधिकारियों तक भी पहुंच चुकी है लेकिन वह भी कुछ करने की स्थिति में नजर नहीं आ रहे। ऐसे में इस वित्तीय अनियमितता पर कौन कार्रवाई करेगा यह भी अपने आप में एक बड़ा सवाल बना हुआ है।