बेरोजगारों को लूटती सरकार

–                         स्वामी रामेश्वरानन्द सरस्वती ‘बापू’

इधर देखने में आ रहा है कि सरकार और सरकारी अधिकारी अपने स्वार्थ के लिए बेरोजगार बच्चों को अपना निशाना बनाने लगे हैं। थोड़े से पैसे के लिए सरकार और उसके नुमाइंदों ने ऐसी परियोजना पर कार्य करना शुरू कर दिया है जिसे निम्नतर स्तर की घटना कहा जा सकता है। मनुष्य होने के सारे पैमाने समाप्त करके पशुता की श्रेणी में सरकारी लोगों ने स्वयं को खड़ा कर लिया है। आपने भी सुना होगा, प्रायः ही अखबारों में छपता रहता है, टी0वी0 में समाचार चलते रहते हैं कि आज अमुक प्रदेश में सिपाही भर्ती परीक्षा में पर्चा लीक हो गया और सरकार ने परीक्षा रद्द की दी।
अभी-अभी गुजरात में पुलिस भर्ती की परीक्षा आयोजित की गई थी, भर्ती नौ हजार बच्चों की होनी थी लेकिन इन नौ हजार नौकरियों को पाने के लिए कोई नौ लाख के करीब बच्चों ने फार्म भरे। जिसमें सवर्ण बच्चों को 112 रुपये फीस चुकानी पड़ी, जो उन्होंने सरकार को दी, जिसके आधार पर सरकार के खाते में लगभग 70 से 80 करोड़ रुपया जमा हुआ, जो पुलिस विभाग के पास पहुंचा होगा। बिना कुछ किये सरकारी विभाग ने लगभग अस्सी करोड़ रुपये कमा लिये और कमाये किससे? सवाल यह बड़ा है कि आखिर किससे? इनको कहना सिर्फ इतना ही पड़ा कि पर्चा लीक हो गया है इसलिए परीक्षा रद्द की जाती है। इतना कहने के लिए किसी अधिकारी या कर्मचारी ने ही कुछ लाख रुपये लेकर पर्चा लीक करवा दिया होगा। अब वह करीब नौ लाख बच्चे जो बेरोजगार हैं, जिनके पास कोई काम नहीं है, पढ़ लिखकर वह नौकरी के लिए भटक रहे हैं। जिनके माता-पिता उनसे कह रहे हैं कि अब तुम पढ़-लिखकर जवान हो गये हो, जाओ और पैसा कमाओ। उनकी जेब में एक रुपया भी नहीं है। वह फार्म भरने के लिए अपने माता-पिता से पैसे लेते हैं और परीक्षा देने के लिए दूसरे दूरस्थ शहरों में जाने के लिए भी खर्च माता-पिता से मांगते हैं। इनमें से कितने बच्चे ऐसे होंगे जो  किसी न किसी से पैसे उधार मांगकर गये होंगे। किसी ने माँ पिता से लिये होंगे, किसी ने पड़ोसी से मांगे होंगे, किसने क्या-क्या किया होगा? कहना मुश्किल है। उन बच्चों को सरकारी अधिकारियों ने अपना टारगेट बनाया है, उनकी जेबों में पड़े सौ-दो सौ रुपये भी यह सरकारी मुलाजिम ले उड़े। बच्चों को परीक्षा केन्द्रों पर बुलाया, बहुत दूर-दूर से बच्चे बसों में, ट्रेनों में सफर करके परीक्षा केन्द्रों पर पहुंचे, रेलवे स्टेशनों और सड़कों पर रातें बिताईं, क्योंकि होटलों में रहने के लिए उनके पास खर्च नहीं था और सुबह उन्हें बताया गया कि पर्चा लीक होने के कारण परीक्षा रद्द कर दी गई।
अब सवाल यह उठता है कि परीक्षा रद्द करने के बाद जो धन सरकारी विभाग में जमा हुआ है, क्या फार्म भरने वाले बच्चों को वह धन वापिस किया जायेगा? यही नहीं सब बच्चों के घरों से परीक्षा केन्द्रों तक आने-जाने का खर्च भी उन बच्चों को वापिस किया जायेगा? शायद नहीं। क्योंकि यह मांग बहुत दिनों से चल रही है कि बच्चों के द्वारा भरी गई फीस उस स्थिति में वापिस की जानी चाहिए, यदि सरकारी विभाग की लापरवाही से पर्चा लीक होता है, या फिर किसी भी कारण से परीक्षा रद्द होती है। ऐसी स्थिति में बेरोजगार बच्चों के खर्च की भरपाई सरकार के उस विभाग द्वारा करनी चाहिए। लेकिन सरकारें मानने को तैयार नहीं हैं। गलती सरकार करे और भरपाई बेराजगार बच्चे करें। जिन्हें रोजगार देना सरकार की जिम्मेदारी है, वही सरकार बेरोजगार बच्चों को लूटने में लग गई है। अब ऐसा पूरे देश में आये दिन हो रहा है। कोई भी राज्य इस बीमारी से बचा नहीं है। लगभग सभी राज्य सरकारें ऐसा कुकृत्य कर चुकी हैं और आगे नहीं होगा ऐसा भी नहीं कहा जा सकता है। क्योंकि सरकार की चाल वैसी ही है, वह जांच आयोग बनायेगी और कई वर्षों में वह अपनी रिपार्ट सरकार को देगी, वह भी किसी को पता नहीं चलेगा। फिर वह रिपोर्ट इतनी अस्पष्ट होगी कि उसमें कोई जिम्मेदार अधिकारी या कर्मचारी सीधे तौर पर आरोपी सिद्ध नहीं होगा। और यदि कुछ संकते दिये भी गये होंगे तो अधिकारी उसे बचाने के लिए सभी द्वार खोल देंगे, सारे सरकारी प्रयास किये जायेंगे उसे बचाने के। सरकारी लोग एक ऐसे लोक के वासी हो गये हैं जहां आम आदमी की पहुंच अब नहीं रही। वह लोग अपने लोगों को बचाने के लिए किसी भी अन्य बेरोजगार लोक के लोगों को निशाना बना सकते हैं। उनके पास सत्ता की शक्ति है और नियमों से खेलने वाले उनके सरकारी मुलाजिम भी। ऐसी परिस्थिति में आम आदमी कहां जाए, क्या करे? क्या वह इन सरकारी मुलाजिमों के द्वारा लुटता रहे? सवाल और भी हैं।
हमें तो यह साजिश लगती है कि पहले फार्म भरवा लो और फिर अपने ही किसी कर्मचारी को इस बात के लिए पटा लो कि उसके मुकद्मा लड़ने का खर्च हम उठा लेंगे तुम जांच में आ जाना कि तुमने ही पर्चा लीक कराया है, पहले तो ऐसी व्यवस्था है कि वह पकड़ा ही नहीं जायेगा और यदि पकड़ा गया तो उसकी जांच इतनी धीमी चलेगी कि तब तक वह रिटायर हो जायेगा। ऐसी मिली भगत से करोड़ों रुपया कमाया जा सकता है। ऐसा हो रहा है, इसमें संदेह की कोई गुंजाइश नहीं है, क्योंकि एक बार हो तो गलती है, लेकिन यदि बार-बार हो तो समझो किसी साजिशस के तहत ही किया जा रहा है। जिस तरह से आज के समाज में बलात्कारियों को बच्चे आसान टारगेट लगते हैं, वैसे ही सरकारी अधिकारियों को यह नया टारगेट मिल गया है बेरोजगार बच्चे। जिस बच्चे के पास खाने के लिए दो वक्त की रोटी नहीं है, मजूदरी भी मुिश्कल से मिलती है, ऐसे बच्चों को अब सरकारी मुलाजिमों ने अपना नया टारगेट बनाना शुरू किया है।
आखिर इन अधिकारियों का पेट कब भरेगा? इन्हें इतने बड़े वेतन मिलते हैं कि एक वेतन में कई-कई परिवार पाले जा सकते हैं, लेकिन यह लोग बेराजगार बच्चों को लूटने में लगे हुए हैं। इन बेशर्मों को आखिर कब शर्म आयेगी? सरकार कुछ कड़े कदम क्यों नहीं उठाती है, ऐसे व्यक्तियों की पहचान करके उन्हें आजीवन कारावास की सजा देनी चाहिए, जो इस तरह का कुचक्र रचते हैं। जो लोग पर्चा लीक करते हैं, ऐसे लोगों को सिर्फ नौकरी से ही नहीं निकाला जाना चाहिए, बल्कि उन्हें जीवन भर के लिए जेल में कठोर श्रम की सजा मिलनी चाहिए। इस साजिश में जितने भी लोग शामिल हों उन सबको कठोरतम सजायें होनी चाहिए। एक बार सजा मिलनी शुरू हो जाय तो निश्चित मानिये कि ऐसी घटनाओं पर रोक लगेगी। लेकिन ऐसा लगता नहीं है। कितनी बार ऐसा हो चुका है, और आगे ऐसा नहीं होगा, इसकी भी कोई गारंटी नहीं है, क्योंकि सरकार अपने नुमाइंदों को इसके लिए दण्डित नहीं करती है और न ही ऐसी कोई संभावना दिखती है कि उन्हें भविष्य में भी दण्डित किया जायेगा।
भ्रष्टाचार की दीमक ने देश को ऐसे चाट लिया है कि अब खोखले खण्डहर बचे हैं। किसी भी विभाग में जाओ बिना पैसे के अब कोई कार्य नहीं होता है। मोदी से लोगों को उम्मीदें थीं, पर अकेला क्या करेगा, जब आदमी ही बेईमान हो गया है। सब कहते हैं कि मोदी यह कर रहा है, मोदी वह कर रहा है, मोदी तो ठीक है तुम क्या कर रहे हो?  हर सवाल हमसे शुरू होता है और हमीं पर खत्म होता है। मोदी कुछ नहीं कर सकता है, जब तक कि हम उनका साथ न दें। हमें साथ देना होगा, हर उस ईमानदार आदमी का जो समाज के लिए कुछ करना चाहता है। हर सरकारी आदमी भ्रष्ट है, या फिर उस भ्रष्टतम संजाल का हिस्सा है जो आदमी को आदमी नहीं मानता है। हमें ऐसे लोगों को चिंहित करना होगा जो ईमानदार हैं और उनका साथ देना होगा। कोई मोदी कुछ नहीं कर सकता है, जब तक कि समाज उसका साथ न दे। समाज को साथ देना होगा, जागरुक होना होगा। भ्रष्टाचारियों सावधान हो जाओ, इस तरह बेरोजगार बच्चों के पैसे खाकर तुम्हारे बच्चे सुखी नहीं होंगे इतना याद रख लेना। नौ लाख बच्चों की बद्दुआ लगेगी, उनके माता-पिताओं की बद्दुआ लगेगी, तुम्हारे जन्म-जन्म बर्बाद हो जायेंगे।

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