भ्रम मात्र है मोबाइल टॉवर रेडिएशन, शरीर पर इलेक्ट्रोमेग्नेटिक फील्ड का खतरा नहीं: रिपोर्ट

नई दिल्ली: पिछले एक दशक में लोगों में स्वास्थ्य संबंधी सतर्कता तेजी से बढ़ी है. पर जब ‘अति’ हो जाए तो अच्छे प्रयासों में भी लोग खामियां निकालने लगते हैं. इसका ताजा उदाहरण मोबाइल टावर हैं, जिनके रेडियेशन को लेकर लोगों के मन में खौफ पैदा किया जा रहा है. पूरे देश में एक भ्रम फैल रहा है. यहां तक कि इस डर को दूर करने के लिए हजारों मोबाइल टावर हटाने की भी नौबत आ गई हैं और हम कई क्षेत्रों में नए टावर लगाने की तो सोच ही नहीं सकते.

मोबाइल टावर से रेडियेशन

नतीजा सामने है- पूरे भारत में बार-बार कॉल ड्रॉप की समस्या. सूचना प्रौद्योगिकी पर लोक सभा की स्थायी समिति की हालिया रिपोर्ट (सेवाओं की गुणवत्ता एवं कॉल ड्रॉप के मामले) में यह साफ कर दिया गया कि ‘देश में कॉल ड्रॉप के कारणों में एक रेजि़डेंट वेलफेयर एसोसिएशंस द्वारा मोबाइल टावर लगाने पर आपत्ति और विरोध करना है’ लेकिन क्या सचमुच मोबाइल टावर का रेडियेशन इतना नुकसानदेह है? तथ्यों की कड़ी पड़ताल इस भ्रम को तार-तार कर देती है. ॉ

रेडिएशन का कोई प्रमाण नहीं

मोबाइल टॉवर रेडिएशन के मामले में जानकारी देते हुए जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के वरिष्ठ प्रोफेसर फ़रहत बसीर खां ने अपने लेख में कहा है, विश्व स्वास्थ्य संगठन पिछले 30 वर्षों में पूरी दुनिया में प्रकाशित 25,000 से अधिक आलेखों की समीक्षा के आधार पर इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि अब तक कोई प्रमाण नहीं है जिससे इसकी पुष्टि हो कि निम्न-स्तर के इलैक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड्स के संपर्क में रहने का मनुष्य के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है.

संभावित खतरों का वैज्ञानिक सच

सितंबर 2013 के अपने अध्ययन में डब्लूएचओ ने स्पष्ट किया कि ‘अब तक के अध्ययन से इसका कोई संकेत नहीं है कि आरएफ (रेडियो फ्रीक्वेंसी) फील्ड्स जैसे कि बेस स्टेशन के रेडियेशन से कैंसर या अन्य किसी बीमारी का खतरा बढ़ता है.’ संभावित खतरों का वैज्ञानिक सच जानने के लिए डब्लूएचओ ने 1996 में इंटरनेशनल ईएमएफ प्रोजेक्ट की शुरुआत की. इसमें 50 से अधिक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ कई निष्पक्ष संस्थानों की भागीदारी है. डब्लूएचओ की समीक्षा से स्पष्ट है कि नॉन-आयनाइज़िंग रेडियेशन प्रोटेक्शन (ICNIRP) पर अंतर्राष्ट्रीय आयोग के वैश्विक मानकों द्वारा निर्धारित सीमा में EMF एक्सपोज़र का स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ने की कोई जानकारी नहीं है. ICNIRP की निगरानी जारी है और यह सुनिश्चत किया जाता है कि एक्सपोजर के सुरक्षा संबंधी नियम समय की मांग पर खरा उतरे.

सरकार के नियम

इन तथ्यों का ध्यान रखते हुए WHO ने अंतर्राष्ट्रीय मानकों को लागू करने की अनुशंसा की है. सन् 2008 में भारत सरकार ने मोबाइल टावर के EMF रेडियेशन को सीमित रखने के ICNIRP नियमों के अनुपालन की प्रतिबद्धता की. हालांकि अंतर-मंत्रीय समिति की अनुशंसा पर भारत सरकार ने इससे कड़े नियम लागू करने का निर्णय लिया. सन् 2012 में ICNIRP की तुलना में 10 गुना कड़े नियम लागू किए गए. अब चूंकि भारत में पहले ही ICNIRP मानकों से 10 गुना कड़े नियम लागू हैं और WHO ने भी इसकी अनुशंसा की है इसकी कोई वजह नहीं दिखती कि आवासीय क्षेत्रों के लिए इस संबंध में अलग नियम बने जिसकी कुछ लोग मांग कर रहे हैं. वर्तमान सीमाओं पर विचार के लिए 2014 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की गठित समिति ने भी इनकी समीक्षा कर इन्हें पर्याप्त माना.

गौरतलब है कि इस समिति में विज्ञान जगत के तमाम उच्च संस्थानों के सदस्य शामिल थे जैसे कि आईआईटी (खरगपुर, कानपुर, रूड़की, दिल्ली) और भारतीय चिकित्सा शोध परिषद, भारतीय विषविज्ञान शोध संस्थान, लखनऊ और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, दिल्ली आदि. इतना ही नहीं, दूरसंचार विभाग (DOT) ने भारत के कड़े नियमों के अनुपालन के पर्याप्त उपाय किए हैं. सभी BTS (बेस ट्रांसरिसीवर स्टेशन) साइट के लिए सुरक्षा नियमों का अनुपालन करना अनिर्वाय है और इसका DOT के संबंधित TERM (टेलीकम इन्फोर्समेंट रिसोर्स एण्ड मॉनिटरिंग) सेल्स प्रमाणित होना भी अनिवार्य है.

टेलीकम सर्विस प्रोवाइडर

नई BTS साइट्स के लिए व्यावसायिक प्रसारण शुरू करने से पहले TERM सेल को प्रमाण पत्र देना अनिवार्य कर दिया गया है. टेलीकम सर्विस प्रोवाइडर को खुद यह प्रमाणित करना होता है कि संबद्ध नियमों का अनुपालन किया गया और इसका बकायदा आॅडिट किया जाता है.  साथ ही, TERM सेल की फील्ड यूनिट BTS साइटों की नियमित ऑडिट करती है. इसके अतिरिक्त यदि किसी BTS की जनता शिकायत करती है तो TERM सेल इसकी भी जांच करता है. किसी BTS साइट में नियमों का उल्लंघन पाए जाने पर प्रति BTS साइट 10 लाख रु. की पेनैल्टी का प्रावधान है. बार-बार उल्लंघन करने पर BTS को बंद किया जा सकता है. इसके अलावा TEC (टेलीकम इंजीनियरिंग सेंटर) भी निर्धारित मानकों पर नियमित जांच किया करती है.

जांच में खोखला साबित हुआ मोबाइल टावर रेडियेशन

मोबाइल टावर रेडियेशन को लेकर लगे आरोपों की गंभीरता से जांच करने पर इन्हें खोखला पाया गया. हाल के कुछ वर्षों में पंजाब एवं हरियाणा, केरल, चेन्नई, दिल्ली, गुजरात, इलाहाबाद और हिमाचल प्रदेश के उच्च न्यायालयों ने आवासीय क्षेत्रों समेत विभिन्न स्थानों पर मोबाइल टावर रेडियेशन के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक होने के आरोपों को बेबुनियाद पाते ही सिरे से खारिज कर दिया है. गुजरात उच्च न्यायालय (CA No. 5597 / 2014) का कहना है कि यह देखते हुए कि अपेक्षित एक्सपोज़र निर्धारित मानक का अधिक-से-अधिक एक छोटा अंश हो सकता है हमारे पास यह मानने का कोई प्रमाण नहीं है कि बेस स्टेशन के आसपास के निवासियों के स्वास्थ्य के लिए यह एक्सपोज़र खतरनाक है.

मनुष्य के शरीर पर इलैक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड का खतरा नहीं

हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय (CWP 8283 of 2012) भी इसी निष्कर्ष पर पहुंचा कि ‘मनुष्य के शरीर पर इस इलैक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड का कोई खतरा समझ में नहीं आता है. इसके प्रमाण के तौर पर हमारे सामने दो प्रसिद्ध संगठनों WHO और SCENIHR के आज तक के शोध हैं जो स्पष्ट करते हैं कि EMF उत्सर्जन के स्वास्थ्य पर दुष्परिणाम को लेकर किए गए पिछले दो दशकों के तमाम अध्ययनों के बावजूद स्वास्थ्य पर ऐसे किसी प्रतिकूल प्रभाव का संकेत नहीं मिला है.’

दूरसंचार की सुचारु सेवा

गौरतलब है कि EMF उत्सर्जन को लेकर मचे बवाल के बावजूद इसका एक अहम् पहलू है. लोग इस शोर में यह आसानी से भूल गए हैं कि आज भारत के विकास, तरक्की और आधुनिकता के लिए टेलीकम इंडस्ट्री कितनी अहमियत रखती है. सच तो यह है कि सालाना 100,000 नए टावर लगाने की जरूरत है ताकि पूरे भारत में लोगों को दूरसंचार की सुचारु सेवा मिले. आधुनिक तकनीकों जैसे कि 4जी, 5जी और इंटरनेट ऑफ थिंग्स का लाभ जन-जन तक पहुंचे.

लोगों के मन में बैठा डर

कुल मिला कर EMF उत्सर्जन के नियमों पर ज़रूरत से ज़्यादा कड़ाई का खामियाज़ा भुगतना होगा. मोबाइल टावर की ठोस व्यवस्था के अभाव में डिजिटल इंडिया, स्मार्ट सीटीज़, जन धन योजना, स्किल इंडिया, ब्रॉन्ड बैण्ड फॉर ऑल, आदि सरकार की तमाम महत्वाकांक्षी योजनाएं धरी रह जाएंगी. इसलिए आज जरूरत है कि समाज के जानकार लोग मोबाइल टावर रेडियेशन को लेकर मचे बवाल का भांडाफोड़ करें. लोगों के मन में बैठा डर दूर करने में योगदान दें ताकि देश के विकास और खुशहाली के रास्ते में रुकावट नहीं आए. आधुनिक भारत के निर्माण का माननीय प्रधानमंत्री का सपना सच करने के लिए यह जरूरी है.

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