सरकार की चेतावनी के बावजूद अध्यक्ष बने ठाकुर प्रह्लाद

देहरादून : राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के अधिवेशन में सरकार की चेतावनी के बावजूद ठाकुर प्रह्लाद सिंह को नौवीं बार परिषद का अध्यक्ष चुना गया। हालांकि, अधिवेशन के दौरान गहमागहमी का माहौल रहा और परिषद के कुछ सदस्यों ने सरकार की ओर से सेवानिवृत्त कर्मचारियों को लेकर फैसला आने के बाद इसका विरोध भी किया। आखिरकार परिषद अपने सभी सदस्यों को साधने में सफल रही और ठाकुर प्रह्लाद सिंह एक बार फिर अध्यक्ष चुन लिए गए।

नगर निगम टाउन हॉल में परिषद का अधिवेशन आयोजित हुआ। हालांकि, हल्का-फुल्का विरोध शुरू हो गया था, जब हल्द्वानी के अध्यक्ष चंद्रशेखर सनवाल ने मंच से कहा कि हर बार दून में ही क्यों अधिवेशन आयोजित होता है और क्या परिषद के पास एक नेता के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं है, जो इस जिम्मेदारी को निभा सके।

तब उनके अन्य भी समर्थक साथ खड़े हो गए। खैर, पदाधिकारियों ने उस समय मामला शांत करा दिया। इसके बाद जब शाम को नई कार्यकारिणी गठित करने की प्रक्रिया शुरू हुई तो महामंत्री पद के लिए पांच दावेदार सामने आ गए।

इस समय भी कार्यक्रम स्थल पर हंगामे जैसी स्थिति पैदा हो गई और कई सदस्य पुराने पदाधिकारियों को दोबारा चुनने पर अपनी आपत्ति दर्ज कराने लगे। लेकिन, यहां भी परिषद अपने सदस्य को साधने में सफल रही।

नई कार्यकारिणी के रूप में अध्यक्ष के अलावा नंद किशोर त्रिपाठी को कार्यकारी अध्यक्ष, प्रदीप कोहली को महामंत्री, अरुण पांडे को कार्यकारी महामंत्री, पीके शर्मा को वरिष्ठ उपाध्यक्ष, गिरीश कांडपाल को संप्रेक्षक निर्वाचित किया गया।

इसी के साथ दून शाखा का गठन करते हुए ओमवीर सिंह को अध्यक्ष, भोपाल सिंह को कार्यकारी अध्यक्ष, एच ममगाईं को वरिष्ठ उपाध्यक्ष और राकेश शर्मा को संप्रेक्षक निर्वाचित किया गया।

इस दौरान डीएस असवाल, आरएस बिष्ट, शक्ति प्रसाद भट्ट, एमपी शाही, कमल जोशी, दीपक पुरोहित, अर्जुन सिंह परवाल, अंजू बडोला, वीके धस्माना, गुड्डी मटूड़ा, सीपी सुयाल, वीरेंद्र सजवाण, गिरीजा शंकर, भोपाल सिंह, एनएस कुंद्रा आदि मौजूद रहे।

संयुक्त परिषद ने खेला दांव

सरकार के फैसले के बाद राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद ने भी नई कार्यकारिणी के गठन में दांव खेल दिया। पहली बार परिषद ने अध्यक्ष और महामंत्री के साथ कार्यकारी अध्यक्ष और कार्यकारी महामंत्री नियुक्त किए हैं। यदि शासन ऐसे में कोई कार्रवाई करें तो परिषद के पास अपना बचाव करने का विकल्प रहेगा।

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