तलाक तलाक तलाक कहने से तलाक नहीं होता, मस्जिदों से भी ऐलान
लखनऊ । तीन बार तलाक कह देने से तलाक नहीं होता, यह तरीका गैर शरई है। कुरआन इसकी निंदा करता है। इससे लोगों के घर बर्बाद हो रहे हैं। इसलिए एक साथ तीन तलाक देने से बचें। आज ऐसी एक मुहिम रामपुर में दिखी जहां मस्जिदों से तकरीर करके एक बार में तीन तलाक देने से बचने की सलाह दी गई। जमीयत उलमा-ए-हिंद ने तीन तलाक के खिलाफ मुहिम शुरू की है। यही नहीं बड़ी संख्या में मुस्लिम विद्वान और मौलाना इस बारे में लोगों को जागरूक करने में लगे हैं। उल्लेखनीय है कि पैगंबर मोहम्मद साहब और पहले खलीफा हजरत अबू बकर रजि अल्लाह तआला अनहू के दौर में भी एक बार में एक तलाक का कानून था।
समझाया तीन तलाक गैर शरई
रामपुर मे एक साथ तीन तलाक के विरोध में शुक्रवार को कई मस्जिदों में इमामों ने तलाक को लेकर जुमे की नमाज के दौरान तकरीर की। उन्होंने नमाजियों को समझाया कि एक साथ तीन तलाक देना दुरुस्त नहीं है। इससे लोगों के घर बर्बाद हो रहे हैं। इसलिए एक साथ तीन तलाक देने से बचें। मौलाना असलम जावेद कासमी ने कहा कि अगर मियां-बीवी में तकरार होती है तो पहले दोनों खानदानों के बुजुर्ग उन्हें समझाने की कोशिश करें। इसके बाद भी अगर बात नहीं बनती है और तलाक की नौबत आ जाती है तो पति एक साथ तीन तलाक न देकर सिर्फ एक तलाक दे।
रामपुर की इन मस्जिदों में तकरीर
मदरसा फैजुल उलूम थाना टीन की मस्जिद अबुबक्र सिद्दीक में मुफ्ती अमीर अहमद, रेलवे स्टेशन के सामने मुस्लिम मुसाफिरखाने की मस्जिद में मुफ्ती मोहम्मद साजिद, मस्जिद ए उमर गूजर टोला में मुफ्ती मोहम्मद कुर्बान और मस्जिद मुस्तफा मोहल्ला खटकान में मौलाना मोहम्मद साजिद ने तकरीर की। मौलाना कासमी ने बताया कि रामपुर में 100 से ज्यादा मस्जिदों में जमीयत उलमा ए ङ्क्षहद से जुड़े इमाम हैं। इनमें ज्यादातर इमामों से तीन तलाक के खिलाफ मुहिम चलाने की बात की गई है। अब तमाम इमाम लोगों को तीन तलाक से होने वाले नुकसान के बारे में बता रहे हैं और समझा रहे हैं कि वे एक साथ तीन तलाक हरगिज न दें।
शरई तरीका तीन महीने का
अहले हदीस के अध्यक्ष इकबाल अहमद ने कानपुर में कहा कि तलाक देने का शरई तरीका तीन महीने का है। मुस्लिम बुखारी शरीफ के हदीस नंबर 1472 से ये सिद्ध है। उन्होंने कहा कि बुखारी शरीफ के जिल्द नौ पेज 362 में फतेहउल-बारी में स्पष्ट है कि इस्लाम के दूसरे खलीफा हजरत उमर फारुक रजि. के दौर में जब कोई एक बार में तीन तलाक दे देता था तो उसे लागू तो कर देते थे पर 80 कोड़े मारने का हुक्म देते थे। उनका कहना है कि पैगंबर मोहम्मद साहब के दौर में जब दीन मुकम्मल हो गया तो उन्हीं का हुक्म मानेंगे क्योकि उनके दौर में एक बार में एक तलाक को ही मान्यता थी। गौरतलब है कि तीन तलाक की शिकार हजारों महिलाएं अपनी और बच्चों की परवरिश करने के लिए जूझ रही हैं।
कोर्ट के बजाय दारुलकजा आएं
तीन तलाक पर मचे घमासान को देखते हुए जुमे की नमाज में मस्जिदों से लोगों को जागरूक किया गया। मुस्लिमों को आकर्षित करने के लिए तकरीर हुई कि निकाह, तलाक, खुला, मुस्लिम समस्याओं को हल कराने के लिए कोर्ट जाने के बजाय दारुलकजा से संपर्क करें। शहरकाजी मौलाना आलम रजा खां नूरी व मुफ्ती-ए-शहर मौलाना मुफ्ती रफी अहमद निजामी के आह्वान पर मस्जिदों में पेशइमाम ने जुमा की नमाज के पूर्व शरई कानूनों की जानकारी दी। शहर काजी ने कहा कि किसी भी समस्या के निदान को दारुलकजा, दारुल उलूम अशरफिया अहसानुल मदारिस जदीद रजबी रोड पर मुफ्ती हजरात से संपर्क करें ताकि कुरआन व हदीस की रोशनी में फैसला दिया जा सके।