सात महीने तक रहें सतर्क, धरती से महज 300 किमी ऊपर मंडरा रहा है ‘चीनी’ खतरा
नई दिल्ली । आपने एक कहानी सुनी होगी। आसमान गिर रहा है। एक डरपोक खरगोश आम के पेड़ के नीचे सोया था। उसके ऊपर पेड़ से आम गिरा। उसकी नींद खुली और उसने चिल्लाना शुरू किया आसमान गिर रहा है भागो। वह भागता गया, जितने जानवर मिलते गए वह भी आसमान गिरने के डर से बचने के लिए उसके पीछे भागते रहे। सभी चिल्ला रहे थे आसमान गिर रहा है। जब वह शेर के पास पहुंचे तो उसने पूछा कहां गिर रहा है आसमान। जब वह उस जगह पर पहुंचे तो एक आम के अलावा कुछ नही था। लेकिन जो हम बताने जा रहे हैं वो आम नहीं है बल्कि आसमानी खतरा है। वो खतरा प्राकृतिक भी नहीं है, बल्कि चीन द्वारा पैदा किया गया खतरा है।
38 साल पहले अमेरिकी अंतरिक्ष केंद्र स्काईलैब के धरती पर गिरने की सूचना से लोग सहम गए थे, हालांकि इस घटना में कोई गंभीर नुकसान नहीं हुआ। अब 2011 में अंतरिक्ष भेजा गया चीन का पहला अंतरिक्ष केंद्र तियानगोंग-1 कुछ ही महीनों में धरती पर गिरने वाला है। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के मुताबिक यह इस साल अक्टूबर से लेकर अगले साल अप्रैल तक कभी भी, कहीं भी गिर सकता है। इससे जनहानि होने की भी आशंका जताई गई है। यह पृथ्वी से तीन सौ किमी से भी कम ऊंचाई पर आ गया है।
2011 में तियानगोंग हुआ था लांच
– 25 जनवरी, 2009 को पहली बार तियानगोंग-1 का मॉडल चीनी नव वर्ष के कार्यक्रम में पेश किया गया।
– 29 सितंबर, 2011 को इसे लोंग मार्च 2एफ/जी रॉकेट से लांच करके पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित किया गया।
– तियानगोंग -1 की लंबाई 10.4 मीटर है
– तियानगोंग-1 8506 किग्रा वजनी है
– 3.35 मीटर है व्यास
– 1 अक्टूबर 2017 तक पृथ्वी के लगाए 34,479 चक्कर
जब डर गई दुनिया
पूर्व में अंतरिक्ष केंद्रों के धरती पर गिरने की घटनाओं से दुनिया सकते में आ चुकी है।
सल्युत-7
1982 में लांच किए गए सोवियत संघ के सल्युत-7 ने अनियंत्रित होने के बाद सात फरवरी, 1991 को पृथ्वी के वातावरण में प्रवेश किया। यह घटना अर्जेंटीना के कैपिटन बर्मुडेज शहर के ऊपर हुई। इसका कचरा प्रशांत महासागर में बिना आबादी वाले हिस्से में गिरा।
स्काईलैब
1973 में लांच पहले अमेरिकी अंतरिक्ष केंद्र स्काईलैब ने 11 जुलाई, 1979 को पृथ्वी के वातावरण में प्रवेश किया। पूरी दुनिया में आशंकाओं के साथ डर का माहौल तारी हो गया। इसका बड़ा हिस्सा तो जल गया। लेकिन कई हिस्से ऑस्ट्रेलिया के पर्थ शहर में गिरे। लेकिन इसमें कोई हताहत नहीं हुआ।
100 किग्रा का कचरा पहुंचेगा जमीन तक
चीन के मुताबिक 8,506 किग्रा वजनी तियानगोंग-1 जब अगले कुछ महीनों में पृथ्वी के वातावरण में प्रवेश करेगा तब वह जल जाएगा। लेकिन इसके बाद भी इसका करीब 100 किग्रा हिस्सा कचरे के रूप में जमीन पर गिरेगा। लेकिन यह कहां गिरेगा, इसका अंदाजा अभी नहीं लग पाया है। चीन का कहना है कि वह अंतरिक्ष केंद्र पर लगातार नजर रखे हुए है।
बना चीनी रिकॉर्ड
11 जून, 2013 को दूसरे चीनी मानव अंतरिक्ष अभियान शेनझू-10 को लांच किया गया। तियानगोंग-1 के लिए यह दूसरा और अंतिम अभियान था। इसने अंतरिक्ष में सर्वाधिक दिनों का चीनी अंतरिक्ष अभियान का रिकॉर्ड बनाया।
पहली चीनी महिला अंतरिक्ष यात्री
चीन की पहली महिला अंतरिक्ष यात्री लियू यांग को तियानगोंग-1 पर पहले चीनी मानव अंतरिक्ष अभियान शेनझू-9 के तहत भेजा गया था। लियू समेत तीन अंतरिक्ष यात्रियों का यह अभियान 16 जून, 2012 में लांच हुआ। 18 जून को अंतरिक्ष यान तियानगोंग-1 से जुड़ा। शेनझू-9 29 जून को मंगोलिया में उतरा।
चार साल का अभियान
तियानगोंग-1 को पहले दो साल के अभियान के लिए लांच किया गया था। लेकिन 2013 में शेनझू-10 अभियान के बाद इसे भविष्य में इस्तेमाल के लिए स्लीप मोड में डाल दिया गया। लेकिन इससे अंतरिक्ष संबंधी जानकारी लगातार मिलती रही। 21 मार्च, 2016 को चीन के मैन्ड स्पेस इंजीनियरिंग ऑफिस ने साढ़े चार साल की सेवा लेने के बाद इसकी डाटा सर्विस को बंद कर दिया। पिछले साल सितंबर में तियानगोंग-1 से संपर्क टूट गया। इसके बाद यह लगातार अपनी कक्षा से नीचे गिर रहा है।
बड़ा अंतरिक्ष केंद्र स्थापित करेगा चीन
चीन 2022 तक अंतरिक्ष में एक बड़ा केंद्र स्थापित करने की योजना पर काम कर रहा है। इसी के चलते उसने 1992 में प्रोजेक्ट 921-2 या तियानगोंग प्रोग्राम नामक अंतरिक्ष कार्यक्रम शुरू किया। इसके तहत 2011 में पहला अंतरिक्ष केंद्र तियानगोंग-1 और 15 सितंबर, 2015 को दूसरा अंतरिक्ष केंद्र तियानगोंग-2 लांच किया। तीसरा अंतरिक्ष केंद्र तियानगोंग-3 निर्माणाधीन है। तियानगोंग-2 अब भी अंतरिक्ष में है।
मील का पत्थर था ‘मीर’ स्पेस स्टेशन
दुनिया के पहले परमानेंट स्पेस स्टेशन मीर को नष्ट हुए आज 17 वर्ष हो चुके हैं। 23 मार्च 2001 को भारतीय समयानुसार 11 बजकर 29 मिनट पर न्यूजीलैंड और चिली के बीच के यह समुद्र की तलहटी में समा गया था। मीर ने करीब 15 वर्षों तक अपनी सेवाएं दी थीं। अंतरिक्ष विज्ञान में मीर के योगदान को नकारा नहीं जा सकता है। यह अंतरिक्ष में एक मील का पत्थर था। ‘मीर’ शब्द रूसी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है शांति। जून 1997 में मीर स्पेस स्टेशन के मालवाहक प्रोग्रेस यान के टकराने से इसको काफी नुकसान पहुंचा था। दरार पड़ने के बाद इसमें से ऑक्सीजन का रिसाव शुरू हो गया था। जुलाई 2000 में मीर अंतरिक्ष स्टेशन को नीदरलैंड की एक कंपनी मीर कार्प्स ने लीज पर लिया। धीरे-धीरे इसके रख-रखाव में दिक्कतें शुरू होने लगी थी लिहाजा इसको पृथ्वी की कक्षा डी ऑरबिट से हटाकर समुद्र में गिराने का फैसला किया गया था।
23 मार्च, 2001 को मीर स्पेस् स्टेशन को डिस्ट्राय करने की प्रकिया शुरू हुई। इसके हिंद महासागर के ऊपर से होता हुआ ईस्ट अफ्रीका के टोंगा फिर इंडोनेशिया के ऊपर से पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश किया। इसमें एंट्री के बाद यह हजार से अधिक टुकड़ों में बंट गया था। 130 टन के मीर अंतरिक्ष स्टेशन का 100 टन भार वायुमंडल में ही जल गया और छोटे-छोटे टुकड़ों के रूप में 30 टन का भार जलती हुई अवस्था में न्यूजीलैंड में वेलिंग्टन स्थान से 1800 मील की दूरी पर पूर्व में समुद्र में गिरा।
काम्पटन गामा किरण प्रेक्षणशाला
वर्ष 2000 में 14 टन के काम्पटन गामा किरण प्रेक्षणशाला को डिस्ट्रॉय करने के लिए अमेरिका इसको पृथ्वी पर वापस लेकर आया था। यूएस कंट्रोल रूम के मुताबिक पृथ्वी के वातावरण में आने के बाद करीब 80 किमी. की हाइट पर जलने लगा था। करीब 70 किमी. की ऊंचाई पर यह कई टुकड़ों में बंट गया था।