खुद को ‘SC’ समझता था साइको किलर, कहता था- मेरी जुबान से निकला शब्द बन जाता है कानून
फरीदाबाद । छह निर्दोष लोगों की हत्या करने के आरोपी नरेश धनखड़ हमेशा अपने आपको सुप्रीम समझता था। कृषि विभाग में तैनाती के दौरान वह कर्मचारियों ही नहीं, आला अफसरों से यही कहता था कि उसकी जुबान से निकला हर शब्द कानून बन जाता है।
फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने वाले नरेश धनखड़ के अव्यावहारिक व्यवहार के कारण सभी उससे दूरी बनाकर रखते थे। कृषि विभाग में साथी कर्मचारियों से उसकी अक्सर कहासुनी और झगड़े आम बात थी। मूल रूप से बल्लभगढ़ के पास गांव मछगर निवासी नरेश धनखड़ पढ़ाई में बेहद होशियार रहा। वह एग्रीकल्चर में परास्नातक है।
एनडीए की परीक्षा पास करने के बाद वर्ष 2003 में सेना के लिए बतौर लेफ्टिनेंट चयनित हुआ। अव्यावहारिक नरेश की पटरी कहीं भी नहीं बैठी। सेना में उसका बर्ताव ठीक नहीं रहा। इसी कारणवश उसे दो साल बाद ही मेडिकली फिट न होने की वजह से सेवानिवृत्ति दे दी गई।
हालांकि अपनी शिक्षा के आधार पर ही वर्ष 2006 में नरेश धनखड़ कृषि विभाग में आर्मी कोटे से कृषि विकास अधिकारी के पद पर चयनित हो गया। वर्ष 2008 में वह पलवल में तैनात हुआ। करीब दो वर्ष तक वह पलवल में ही तैनात रहा।
इस दौरान विभाग में उसकी किसी से नहीं बनी। उसे हर समय छोटा पद होने के कारण खुन्नस रहता था। शिक्षा के दम पर वर्ष 2010 में वह सीधा सेकेंड क्लास ऑफिसर चयनित हो गया। उसके बाद उसे कुछ राहत मिली। पदोन्नति के बाद तबादला हुआ। वह पलवल से नूंह आ गया।
नूंह में भी उसका कोई यार दोस्त नहीं बना। वहां भी उसकी किसी ना किसी से कहासुनी होती रहती थी। 20 अगस्त, 2008 को उसका फिर पलवल तबादला हुआ। यहां उसे पहले विषय विशेषज्ञ का कार्यभार मिला। जनवरी 20 को कृषि विभाग में एसडीओ का अतिरिक्त पदभार मिला।
आगरा चौक पर पुलिस से झगड़ा होने पर उसे जून 20 में गिरफ्तार किया गया था। तब उसे दो दिन जेल में काटना पड़ा। जेल भोगने के कारण विभाग ने उसे निलंबित भी किया मगर बाद में जांच लंबित करते हुए विभाग ने इसका भिवानी तबादला कर विषय विशेषज्ञ लगा दिया।
हत्यारोपी नरेश धनखड़ दिसंबर से ही अपने दफ्तर से गायब था
कृषि विभाग के भिवानी स्थित दफ्तर में पिछले डेढ़ साल से कार्यरत नरेश धनखड़ दिसंबर से बिना किसी सूचना के गायब था। उसके दफ्तर के अधिकारियों का तो यहां तक कहना है कि यदि वह पलवल नहीं जाता तो भिवानी में कहर बरपाता।
कृषि उपनिदेशक पीएस सभ्रवाल ने बताया कि नरेश ने व 28 दिसंबर को कार्यालय में जोरदार हंगामा किया था। दफ्तर में किसी के साथ भी नरेश के मैत्रीपूर्ण संबंध नहीं थे। नरेश के दफ्तर के अधिकारियों का कहना है कि वह पिछले डेढ़ साल से भिवानी में बतौर विषय विशेषज्ञ कार्य कर रहा था।
उसकी पहले दिन से ही यहां के कर्मचारियों और अधिकारियों के साथ अनबन शुरू हो गई थी। कर्मचारियों को नौकरी से छुट्टी करवाने की आए दिन धमकी देता रहता था।
भिवानी की कृष्णा कालोनी स्थित पीजी में जहां वह रहता था, वहां भी किसी से कोई बातचीत नहीं करता था। पीजी चलाने वाले सन्नी के अनुसार नरेश ऐसा व्यवहार करता था जैसे वीआइपी हो।