आईआईटी रुड़की के शोधकर्ताओं ने सिस्टेमिक कैंडिडिआसिस संक्रमण के उपचार को लेकर महत्वपूर्ण सफलता प्राप्त की

रुड़की, आजखबर। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) रुड़की के शोधकर्ताओं ने पाया कि फंगल स्ट्रेन प्रोटीन टीकाकरण द्वारा माइस मॉडल में सिस्टेमिक कैंडिडिआसिस (सी. ट्रॉपिकलिस) संक्रमण को रोका जा सकता है। सिस्टेमिक कैंडिडिआसिस ड्रग-रेसिस्टेंट फंगल प्रजातियों के कारण होनेवाले संक्रमणों का एक समूह है। मनीषा शुक्ला और सोमा रोहतगी द्वारा माॅलेक्यूलर एंड ट्रांसलेशनल इम्यूनोलॉजी लेबोरेटरी, जैव प्रौद्योगिकी विभाग, आईआईटी रुड़की में किया गया यह अध्ययन अमेरिकन सोसायटी फॉर माइक्रोबायोलॉजी पत्रिका श्इंफेक्शन एंड इम्युनिटीश् में प्रकाशित हुआ है। सिस्टेमिक कैंडिडिआसिस रक्त, हृदय, आंख, मस्तिष्क, हड्डियों और कई अन्य अंगों को प्रभावित करने वाले संक्रमणों के एक समूह को दर्शाता है। यह कैंडिडा फैमिली से संबंधित यीस्ट के कारण होता है। रोग के सामान्य लक्षणों में बुखार और ठंड लगना शामिल है, जिसमें एंटीबायोटिक दवाओं से भी सुधार नहीं आता है। कैंडिडेमिया सेप्टिक शॉक का कारण बन सकता है और इसलिए यह निम्न रक्तचाप, तेज हृदय गति और सांस लेने में तेजी जैसे लक्षणों से संबंधित हो सकता है। एक अनुमान के अनुसार, यह प्रति 1,000 आईसीयू मामलों में से 6.51 मामलों में उपस्थित है, जो भारत में 90,000 मामलों के बराबर है। नॉन-अल्बिकैन्स कैंडिडा प्रजाति के प्रति एक प्रगतिशील बदलाव और ऐंटिफंगल ड्रग- रेसिस्टेंस के उभरने के कारण, कैंडिडाट्रॉपिकलिस प्रजाति के कारण होने वाले सिस्टेमिक कैंडिडिआसिस संक्रमण विशेष रूप से उष्णकटिबंधीय देशों में चिंता का विषय है। टीका और वैकल्पिक इम्युनोथैरेपी विकसित करना महत्वपूर्ण है ष् प्रो. सोमा रोहतगी, मुख्य लेखक और सहायक प्रोफेसर-आईआईटी रुड़की, ने कहा।शोधपत्र की सह-लेखिका मनीषा शुक्ला के अनुसार, ष्कई कारणों से एक सबयूनिट वैक्सीन प्रभावी साबित हो सकता हैष्। शोधकर्ताओं ने दिखाया है कि एसएपी2-पैराप्सीलोसिस टीकाकरण, कैंडिडिआसिस के दौरान ह्यूमोरल और सेलुलर प्रतिरक्षा के माध्यम से चूहों के जीने की संभावना में सुधार कर सकता है। अध्ययन ने यह भी दिखाया कि एसएपी2-स्पेसिफिक एंटीबॉडी की उच्च मात्रा सिस्टेमिक कैंडिडिआसिस के दौरान फायदेमंद होती है। यह शोध एंटी-कैंडिडा टीकों के विकास में भविष्य के अध्ययन का मार्ग प्रशस्त करेगा।
अनुसंधान को एसआरआईसी, आईआईटी रुड़की, डीबीटी रामलिंगस्वामी फैलोशिप और प्रो. सोमा रोहतगी को प्राप्त डीएसटी एसईआरबी ग्रांट से वित्तीय समर्थन मिला।

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