बहनों ने भाई, पंडित ने यजमान; पर्यावरण प्रेमियों ने पेड़ों को बांधे रक्षा सूत्र
देहरादून : रक्षाबंधन का त्योहार उत्तराखंड में अनोखे अंदाज में मनाया गया। शुभ मुहूर्त शुरू होते ही बहनों ने भाई की कलाई पर राखी बांधकर उनकी दीर्घायु की कामना की। वहीं पंडितों ने यजमान को और पर्यावरण प्रेमियों ने पेड़ों को रक्षा सूत्र बांधे। वहीं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को उनकी बहन शशि पयाल, निवासी कोठार गांव, यमकेश्वर ने भी राखी भिजवार्इ। उन्होंने कहा कि आज एक बहन नहीं हजारों बहनेंं उनकी लम्बी उम्र की दुआएं मांग रही हैं।
उत्तरकाशी में मातली व डुंडा में रेणुका समिति से जुड़ी महिलाओं ने पेड़ों पर रक्षा सूत्र बांधकर पर्यावरण संरक्षण का संकल्प लिया। चमोली जनपद में भी रक्षा आंदोलन से जुड़़े लोगों ने पेड़ों पर रक्षा सूत्र बांधे।
उत्तराखंड में पंडित की तरफ से यजमान को भी राखी बांधने की परंपरा है। पहले पंडित राखी के प्रतीक के रूप में नाला बांधते थे। अब वे भी घर पर ही राखी निर्मित कर इस दिन यजमान को राखी बांधते हैं। साथ ही उनकी सुख समृद्धि की कामना करते हैं।
रक्षाबंधन का शुभ मुहूर्त दोपहर 11.05 बजे से शुरू हुआ। इसके बाद यह त्योहार परंपरागत तरीके से मनाया गया। महिलाओं ने मंदिरों भी राखी चढ़ाई। गढ़वाल व कुमाऊं में रक्षाबंधन के मौके पर बसों में काफी भीड़ रही। इससे लोगों को परेशानी भी रही। उत्तराखंड सरकार ने रोडवेड की बसों में महिलाओं को उत्तराखंड की सीमा में मुफ्त यात्रा का लाभ दिया। इससे बसों में मारामारी का आलम रहा।
सवा घंटे तक रहा शुभ मुहूर्त
सावन का अंतिम सोमवार को रक्षाबंधन होने के कारण रक्षाबंधन के पर्व का महत्व अधिक हो गया है। लेकिन चंद्रग्रहण होने के चलते राखी बंधने के लिए मात्र सवा एक घंटे का ही शुभ मुहूर्त रहा। चंद्रगहण का सूतक दोपहर 12:33 से शुरू होकर ग्रहण के समाप्त होने तक रात 12:48 बजे तक है| इस दौरान मंदिरों के पट बंद कर दिए गए। जबकि भद्रा सुबह 11:11 बजे तक समाप्त होगी। ऐसे में रक्षाबंधन का श्रेष्ठ समय सुबह 11:11 से दोपहर 12:32 बजे तक था। इसका कारण है कि धर्म सिंधु के अनुसार रक्षाबंधन भद्रा समाप्त होने के बाद सही माना जाता है।
रक्षाबंधन के त्यौहार की उत्पत्ति
धार्मिक कारणों से मानी जाती है। जिसका उल्लेख पौराणिक ग्रंथों में, कहानियों में मिलता है। इस कारण पौराणिक काल से इस त्यौहार को मनाने की यह परंपरा निरंतरता में चलती आ रही है। चूंकि देवराज इंद्र ने रक्षासूत्र के दम पर ही असुरों को पराजित किया और रक्षासूत्र के कारण ही माता लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को राजा बलि के बंधन से मुक्त करवाया। महाभारत काल की भी कुछ कहानियों का उल्लेख रक्षाबंधन पर किया जाता है। अत: इस त्यौहार को हिंदू धर्म की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।
श्रावण पूर्णिमा यानि रक्षाबंधन के दिन ही प्राचीन समय में ऋषि-मुनि अपने शिष्यों का उपाकर्म कराकर उन्हें विद्या-अध्ययन कराना प्रारंभ करते थे। उपाकर्म के दौरान पंचगव्य का पान करवाया जाता है तथा हवन किया जाता है। उपाकर्म संस्कार के बाद जब जातक घर लौटते हैं तो बहनें उनका स्वागत करती हैं और उनके दांएं हाथ पर राखी बांधती हैं। इसलिये भी इसका धार्मिक महत्व माना जाता है। इसके अलावा इस दिन सूर्य देव को जल चढाकर सूर्य की स्तुति एवं अरुंधती सहित सप्त ऋषियों की पूजा भी की जाती है इसमें दही-सत्तू की आहुतियां दी जाती हैं। इस पूरी क्रिया को उत्सर्ज कहा जाता है।